श्री ललित शर्मा का डॉ. वाकणकर से वर्ष 1986-1988 ई. में सम्पर्क के दौरान शिष्य रूप में उनके स्वर्गवास से पूर्व ' 'भारती कला भवन' में हुई एक महत्वपूर्ण भेटवार्ता के कुछ अंश:
शैलाश्रयों के प्रति आपका रूझान कब व किन परिस्थितियों में हुआ? सन् 1950 ई. में शैलाश्रयों की ओर मेरा रूझान हुआ था, जब मैं भोपाल में मनुआ भांग स्थान की टेकरी पर घूमने गया था। वहां मैंने एक गुफा देखी, उत्सुकता वश मैं उसमें प्रवेश कर गया। देखा तो अन्दर एक विशाल चट्टान पर गेरू, रंग का शेर बना हुआ था। जि…
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कला एवं पुरातत्त्व जगत के कीर्तिकलश "पद्मश्री डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर
पद्मश्री की उपाधि, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के पुरातत्त्व प्रमुख का पद, विदेश यात्राएं अथवा सामाजिक प्रतिष्ठा कभी उनके जीवन में बाधक नहीं बनी। वे सचमुच में बहुत बड़े आदमी थे। उनके बड़प्पन के समक्ष कोई भी नतमस्तक हो जाता था पर वे उसे समान स्तर पर बैठाकर बात करते थे। आत्मीयता का ऐसा विस्तार उनके ज…
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पद्मश्री पुरातत्ववेत्ता "डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर" (एक परिचय)
डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर का जन्म 4 मई, 1919 को मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र के नीमच शहर में हआ था। उनकी विशिष्ट शैक्षणिक वृत्ति ने उन्हें भारत में शैल कला अध्ययन के 'पितामह' की उपाधि दी। 1954 के बाद से उन्होंने भारत और विदेशों में यथा यूरोप, उत्तरी अमेरीका और मध्य पूर्व में शैलकला पर व्यापक …
डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर : इतिहास पथ के महायात्री
स्व. विष्णुश्रीधर वाकणकर हमारी उजली विरासत के ऐसे ही उजले राजपथ हैं जो पीढ़ियों को उनके सार्थक गंतव्य तक पहुंचाने की सामर्थ्य रखते हैं। यह वर्ष डॉ. वाकणकर का जन्मशती वर्ष है। वे 4 मई 1919 को नीमच में जन्मे थे तथा 3 अप्रैल 1988 को उनका निधन हुआ। उन्होंने अपना सारा जीवन कर्मयोगी की भांतिजीया। उन्होंन…
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सोशल मीडिया और आधी आबादी के सरोकार
कभी घर के बड़े-बुजगों के कहने पर मताधिकार का उपयोग करने वाली महिलाएं अब सोशल मीडिया के माध्यम से अच्छे-बुरे नेताओं की पहचान कर मताधिकार का अपने विवेक से उपयोग करने लगी हैं। विभिन्न प्रोडक्ट्स की लांचिंग और कैम्पेनिंग के साथ-साथ सोशल मीडिया पत्र-पत्रिकाओं व पुस्तकों की लांचिंग का एक महत्वपूर्ण जरिया…
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नौ खंडीय काला-गोरा भैरव मंदिर
राजस्थान के सवाईमाधोपुर शहर के प्रवेश द्वार के पास एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित भैरूजी का मंदिर वास्तुकला का अनूठा नमूना है। भैरव देव की उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि ये शिव के अंश से उत्पन्न हए हैं और उन्होंने गर्वोन्मत ब्रह्माजी के पांचवें सिर को अपने नख से काट डाला था तथा उस कपाल को लेकर काश…
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