पद्मश्री पुरातत्ववेत्ता "डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर" (एक परिचय)

डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर का जन्म 4 मई, 1919 को मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र के नीमच शहर में हआ था। उनकी विशिष्ट शैक्षणिक वृत्ति ने उन्हें भारत में शैल कला अध्ययन के 'पितामह' की उपाधि दी। 1954 के बाद से उन्होंने भारत और विदेशों में यथा यूरोप, उत्तरी अमेरीका और मध्य पूर्व में शैलकला पर व्यापक सर्वेक्षण कार्य किया। अनुमानतः यह मानाजाता है कि उन्होंने अकेले भारत में लगभग 4000 अलंकृत शैलाश्रयों की खोज की और उनका आलेखन किया। 1957 में उन्होंने भीमबैठका के चित्रित शैलाश्रयों की खोज की, जिससे 2003 में यूनेस्को द्वारा विश्वदाय स्थल के रूप में अंकित किया गया था।


सक्रिय स्वतन्त्रता सेनानी डॉ. वाकणकर को 1975 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक "पद्मश्री' सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। वह विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे और कई पुरातात्विक सर्वेक्षणों में शामिल हुए। उन्होंने चम्बल और नर्मदा नदी घाटी का सर्वेक्षण किया। इनके अतिरिक्त सूखी सरस्वती नदी की घाटी की भी खोज की। उन्होंने भारत और विदेशों में विभिन्न पुरास्थलों पर पुरातात्विक उत्खनन कार्य भी किया।


डॉ. वाकणकर सिक्कों एवं अभिलेखों के भी विशेषज्ञ थे, उनके पास सिक्कों एवं अभिलेखों का संग्रह था, जो अब वाकणकर शोध संस्थान में रखे हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने संस्कृत, प्राकृत और ब्राह्मी में दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के कई शिलालेखों का अध्ययन किया। डॉ. वाकणकर ने 6 पुस्तकें और 400 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किए। उन्होंने उज्जैन में वाकणकर इडोलॉजिकल कल्चरल रिसर्च ट्रस्ट की स्थापना की। आज वाकणकर शोध संस्थान में 7500 से अधिक शैलचित्र कला के आरेखों का संग्रह है, जो स्वयं डॉ. वाकणकर द्वारा बनाई गई थी।


मुख्य योगदान-


अनुसंधान - उन्होंने भारत में 4000 से अधिक शैलाश्रयों की खोज की और उनका अध्ययन किया, साथ ही यूरोप और अमेरिका में भी शैलाश्रयों और शैलचित्रों की भी खोज की।


पुरातात्विक सर्वेक्षण एवं उत्खनन -


उन्होंने चम्बल और नर्मदा नदी घाटियों का सर्वेक्षण किया एवं महेश्वर (1954), नावदाटोली (1955), मनोटी (1960), आवरा (1960), इन्द्रगढ़ (1959), कायथा (1966), मन्दसौर (1974 और 1976), आजादनगर (1974), दंगवाड़ा (1974 व 1982), रूनिजा (1980), इंग्लैण्ड में वर्कोनियम रोमन स्थल (1961) और फ्रांस में इनकॉलिव (1962) पुरास्थलों का उत्खनन करवाया।


सहकार्य - एच.डी. सांकलिया, मॉर्टिमर व्हीलर, काशीनाथ कृष्ण लेले, अनन्त वामन वाकणकर, एस.दीक्षित, रॉबर्ट ब्रुक्स, जेरी जैकबसन, एन.आर. बनर्जी, एस.बी. डीईओ, एम.के. धवलीकर, तिलनेर।


खोज एवं उद्ववाचन - गुप्त, मौखरी, खैरागढ़, ऑस्ट्रिया, रोम, पेरिस, फ्रेंकफर्ट और अमेरिका में उनके द्वारा आयोजित कई प्रदर्शनियां उनका एकात्मक प्रयास स्वरूप था। अखिल भारतीय कालिदास पेंटिंग और मूर्तिकला प्रदर्शनियों के संस्थापक और निदेशक।


ग्रहित पद - भारत कला भवन, ललित कला संस्थान, रॉक आर्ट इंस्टीट्यूट, उज्जैनीय निदेशक, उत्खनन विभाग, पुरातत्व संग्रहालय, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन प्रांतीय बौद्धिक प्रधान, संस्कार भारती, भारतय अध्यक्ष, थियोसोफिकल सोसायटी, उज्जैन, संरक्षक, कला पत्रिका आकार, उज्जैनय प्रमुख, बाबा साहेब आप्टे इतिहास संकलन समिति (मध्यप्रदेश और गुजरात), मध्यप्रदेश, अखिल भारतीय कालिदास समारोह समिति आदि के सदस्य।


विदेश यात्रा एवं अधिछात्रवृत्ति - 1963 में उन्होंने डोरबाजी टाटा ट्रस्ट यात्रा अनुदान पर यूरोप की यात्रा की, 1961 और 1963 तक उन्होंने फ्रांस सरकार की छात्रवृत्ति पर शोध कार्य किया, 1966 में उन्हें अमेरिकन शैलाश्रयों पर कार्य के लिए अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा निमंत्रण दिया गया, 1981 में उन्होंने कापो दी पोंटे, इटली में शैलाश्रय पर आयोजित संगोष्ठी में भाग लिया। .