भाटी स्कूली बस्तों का निकाला समाधान


सरकार की अनेक योजनाएँ हैं जिनके जरिये कई स्कूलों में बच्चों को मुफ्त किताबें, ड्रेस और दोपहर का भोजन उपलब्ध कराया जाता है, जिससे गरीब बच्चे भी शिक्षा हासिल कर सकें। इसके बावजूद बच्चों के सामने सबसे बड़ी परेशानी एक बढ़िया स्कूल बैग की आती है। बच्चों की इसी समस्या को दूर करने की कोशिश की है उदयपुर के मनीष माथुर ने। मनीष ने उदयपुर के एक कॉलेज से बी.बी.ए. क रने के बाद 2009 में एम.बी.ए. किया। तीन साल अलग-अलग जगहों पर नौकरी के दौरान मनीष ने देखा कि उदयपुर के आस-पास कई जनजातीय इलाके हैं जहाँ के सरकारी स्कूलों में बच्चों को अप्रैल-मई में जो किताबें मिलती थीं, वे बारिश में भीगने के कारण अगस्त-सितंबर तक फट जाती थीं और जब फरवरी-मार्च तक उनकी परीक्षाएँ होती थीं, तब तक उनके पास वे किताबें किसी काम की नहीं होती थीं। मनीष का मानना है कि आज हम चाहे कितनी भी विकास की बातें कर लें, लेकिन गाँवों में आज भी कक्षा 1 से 5वीं तक के बच्चे जमीन पर ही बैठकर पढ़ाई करते हैं और घर पहुँचने पर उन्हें लाइट न होने पर लैंप की रोशनी में ही पढ़ाई करनी पड़ती है। इस वजह से उनकी रीढ़ पर बुरा असर पड़ने के साथ कम रोशनी की वजह से आँखें भी कमजोर हो जाती हैं। मनीष ने तय किया कि वे एक ऐसा बैग बनाएँगे जो इन बच्चों के लिए फायदेमंद हो और उनकी किताबें भी सुरक्षित रहें। 6 महीने के परिश्रम के बाद अक्टूबर 2014 में उन्होंने एक ऐसा बैग तैयार किया जो उनकी सोच के अनुसार था। मनीष ने अपने इस बैग को नाम दिया येलो' । इस बैग की खासियत यह है कि स्कूल आते-जाते समय यह स्कूल बैग का काम करता है, साथ ही बारिश और पानी का इस बैग पर कोई असर नहीं पड़ता, क्योंकि यह बैग पॉलीप्रोपलीन से बना है। किताबें रखने के साथ यह बैग पढ़ाई के दौरान 35 डिग्री के कोण पर टेबल का काम भी करता है। इस बैग में एक सोलर एलईडी बल्ब लगा है जिससे बच्चे रात में आराम से उजाले में पढ़ाई कर सकें। इस काम में उनके दोस्तों के साथ परिवार के लोगों ने आर्थिक सहायता की है। केवल 200 ग्राम के इस बैग में कोई भी जोड़ नहीं है और इसे सिर्फ एक सीट से ही तैयार किया गया है जिससे इसकी सलाई न उधड़े। यह बैग बिना किसी परेशानी के एक साल तक आराम से चल सकता है। मनीष ने जब येलो बैग' को बाजार में उतारने की तैयारी की तब उन्होंने सोचा कि मैंने जिन बच्चों को ध्यान में रखकर इस बैग को तैयार किया है, वे तो 50 रुपये की कोई चीज़ भी नहीं खरीद सकते जबकि यह बैग 799 रुपये का है, इसे वे कैसे खरीदेंगे। मनीष ने तब इसे एनजीओ, कॉर्पोरेट और सरकारी विभागों के जरिये इस बैग को गरीब बच्चों तक मुफ्त पहुँचाने के बारे में सोचा। उन्होंने औद्योगिक और व्यापारिक घरानों, जिनमें महिंद्रा एंड महिंद्रा, एलएनटी, टाटा, एचडीएफसी आदि के जरिये करीब 5 हजार बैग अब तक चेन्नई, कोयम्बटूर, मुंबई, कल्यान, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के गरीब बच्चों को बाँट चुके हैं। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय से भी उनकी बात चल रही है। इसके अतिरिक्त कई दूसरे संगठनों से भी इस बैग के बारे में वे बात कर रहे हैं।