भारतीय खान-पान: एक समृद्ध परम्परा

भारत में करीब पाँच हज़ार साल से खान-पान की विभिन्न शैलियाँ विकसित होनी शुरू हो गई थीं। आजकल देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित खान-पान की विभिन्न शैलियों में इतनी विविधताएं हैं कि उनका आपस में तालमेल ही नज़र : अंतर से स्पष्ट है कि भारतीय सभ्यता निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर रही है।



भारत में खान-पान की सदियों से समद्ध परम्परा रही है। खान- पान की जितनी शैलियाँ और व्यञ्जन भारत में पाए जाते हैं, उतने विश्व के किसी अन्य भाग में देखने में नहीं आते। पौराणिक कथाओं से लेकर आज तक भा रत में कई तरह के खाने पीने के प्रचलन का संकेत मिलता है। वर्तमान में जो इतिहास प्रचलित है, उसमें बताया जाता है कि ईसा से करीब 1500 साल पहले आर्य लोग गंगा के मैदानों में बसने लग गए थे और खेती करने लगे थे। इसके साथ ही विभिन्न प्रकार के भोजन तैयार करने का सिलसिला शुरू हुआ। शुरू में भोजन का मुख्य आधार चावल, गेहूं, जौ और अन्य मोटे अनाज थे। बाद में इनके साथ सब्जियों और मसालों का उपयोग शुरू हुआ। इसके अलावा मांसाहारी भोजन भी प्रचलित था। गेहूं और जौ के आटे की रोटियां उत्तरी और पश्चिमी भारत का प्रमुख भोजन रहीं, जो आज तक चला आ रहा है, जबकि पूर्वी और दक्षिणी भारत में मुख्य भोजन चावल है। मध्य युग में ज्यादातर भारतीय अनाज, फल, सब्जियों और दूध तथा दूध से बनी वस्तुओं का सेवन करते थे। पश्चिमी इतिहासकार इसे भारत में शाकाहार की शुरुआत मानते हैं। ईसा पूर्व छठी शताब्दी से बौद्ध और जैन धर्म के अहिंसा के सिद्धांत प्रचलित होने के कारण शाकाहार का निरंतर विकास होता चला गयाइसके बाद भारत में विश्व की अन्य संस्कृतियों का आगमन हुआ, जिससे खान-पान की शैलियों में काफी बदलाव हुआ। भारत में प्रवासियों, व्यापारियों और आक्रमणकारियों के आने से खान-पान की विभिन्न शैलियाँ विकसित हुईं। एक अन्य मत के अनुसार भारत में करीब पाँच हजार साल से खान-पान की विभिन्न शैलियाँ विकसित होनी शुरू हो गई थीं। आजकल देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित खान- पान की विभिन्न शैलियों में इतनी विविधताएं हैं कि उनका आपस में तालमेल ही नजर नहीं आता। भोजन में मसालों के उपयोग और भोजन पकाने के तौर-तरीकों में अंतर से स्पष्ट है कि भारतीय सभ्यता निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर रही है।



अरब-आक्रमणकारी अपने साथ धनिया, जीरा और कॉफी लेकर आए थे। धनिया और जीरा को भारतीय मिर्च और हल्दी में मिलाकर करी बनाने का सिलसिला शुरू हुआ। पारसियों के भारत में आने के बाद यहाँ बिरियानी का चलन शुरू हुआ। मुगलों के आने के बाद सूखे मेवों का प्रचलन बढ़ा और नये तरह के मांसाहारी और शाकाहारी व्यञ्जन बनने लगे। आज जो टमाटर, मिर्च और आलू भारतीय पाक शैली के मुख्य खाद्य-पदार्थ हैं, वे पुर्तगालियों के माध्यम से भारत पहुंचे थे। पुर्तगालियों ने भारत में शक्कर का चलन भी शुरू किया, जिससे पहले मीठे में केवल फलों और शहद का प्रयोग होता था। अफगानिस्तान से हिंदू-शरणार्थी अपने साथ तंदूर लेकर लाए, जिससे नये व्यञ्जनों की नयी श्रृंखला विकसित हुई। ब्रिटिश लोगों ने भारतीयों में चाय पीने की आदत डाली और चाय उगाने के लिए आदर्श जलवायु होने के कारण भारत तेजी से विश्व में चायप्रेमियों की श्रेणी में शामिल हो गयाब्रिटिश लोगों ने भारतीयों के खाने के ढंग को भी बदलने का प्रयास किया और पहली बार भारत में भोजन के लिए कांटे-छुरी चाकू का इस्तेमाल शुरू हुआ। रसोई में बैठकर खाने की जगह डायनिंग टेबल पर खाने की परम्परा विकसित हुई।



भारतीय भोजन में जड़ी-बूटियां और मसाले महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैंअलग-अलग व्यञ्जनों के मसाले भी अलग-अलग होते हैं। मसालों में गरम मसाला सबसे महत्त्वपूर्ण मिश्रण है और भारतीय भोजन का अत्यन्त आवश्यक अंग है। भारत के प्रत्येक राज्य का गरम मसाले का अपना ख़ास मिश्रण है। मसालों एवं जड़ी-बूटियों की भूमिका केवल भोजन पकाने तक ही सीमित नहीं है। प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में रोग-निदान के इनके गुणों का वर्णन किया गया है। हालांकि आज की पीढ़ी के ज्यादातर लोगों को मसालों और जड़ी-बूटियों के औषधीय गुणों का ज्ञान नहीं है। खुशबू और स्वाद ज्यादा हावी हो गया है।



भारतीय भोजन-शैलियों में उत्तर भारतीय भोजन शैली सम्भवतः सबसे लोकप्रिय है। उत्तर भारत में ज्यादातर गेहूँ पैदा होता है, इसलिए परम्परागत तौर पर इस क्षेत्र के भोजन के साथ कई तरह की रोटियों- नान, तंदूरी रोटी, चपाती या परांठे का सेवन किया जाता है। समोसा सम्भवतः उत्तरी भारत का सबसे पसंदीदा नाश्ता है। दही से बननेवाली लस्सी भी एक स्वादभरा पेय है। गुलाबजामुन और मोतीचूर के लड्डू इस इलाके की पसंदीदा मिठाई हैं। उत्तर भारत के कुछ रोचक व्यञ्जनों में रेशमी कबाब, सींक कबाब, शामी कबाब, काश्मीरी पुलाव, तंदूरी चिकन और मटन हैं। कश्मीरी भोजन-शैली में सबसे महत्त्वपूर्ण सामग्री मटन है जिसकी 30 से अधिक किस्में हैं। काश्मीरी भोजन-शैली की अनोखी विशेषता यह है कि इसमें जिन मसालों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें तलने के बजाय उबाला जाता है जिससे अनोखा खुशबूदार जायका मिलता है। पंजाबी भोजन-शैली मध्य एशियाई और मुगलई भोजनशैलियों से प्रभावित है। दाल, सरसों का साग और मक्के की रोटी, तंदूरी रोटी, मीट करी, रोगन जोश और भरवां परांठे- पंजाबी भोजनशैली के कुछ लोकप्रिय व्यञ्जन हैं। अवधी भोजनशैली में पारसी, काश्मीरी, पंजाबी और हैदराबादी शैलियों का समावेश दिखता है। अवध में भोजन पकाने की दम शैली का जन्म हुआ, जिसमें दम अर्थात् धीमी आँच पर एक बड़ी हांडी में खाद्य-पदार्थों को बंद कर गरम करके पकाया जाता है।



दक्षिण भारतीय भोजन शैली में विभिन्न व्यञ्जन तवे पर सेंके जाते हैं, जैसे डोसा, उत्तपमा आदि, जिसके साथ सांबर का उपयोग किया जाता है। सांबर पतली दाल से बनाया जाता है। इसके अलावा दक्षिण भारत में समुद्री भोजन की भी एक विशेष श्रृंखला है। यह क्षेत्र करी पत्ता, इमली और नारियल के प्रयोग के लिए भी जाना जाता है। आंध्रप्रदेश अपनी हैदराबादी भोजनशैली के लिए विख्यात है जो मुगलई शैली से काफी प्रभावित है। परम्परागत हैदराबादी व्यञ्जनों में बिरियानी, चिकन कोरमा और शीर खुरमा प्रमुख हैं।


कर्नाटक की भोजनशैली इसके तीन पड़ोसी दक्षिण भारतीय राज्यों के समान हैं और यह उत्तर में स्थित महाराष्ट्र और गोवा की भोजनशैली से भी मिलती-जुलती हैं। कर्नाटक में भोजन पकाने की दो प्रमुख शैलियां हैं- ब्राह्मण भोजनशैली, जो पूरी तरह शाकाहारी है और कुर्ग की भोजनशैली, जो मांसाहारी व्यञ्जनों के लिए मशहूर है। तमिलनाडु की चेट्टीनाड भोजनशैली के व्यञ्जन गर्म और ताजे पिसे हुए मसालों से भरपूर होते हैं और इसकी विशिष्टकता चेट्टीनाड के लोगों की कुलीन जीवनशैली को प्रदर्शित करती है।


केरल में अप्पम और स्टीव, उली थीयाल और सर्वव्यापी बनाना-चिप्स कुछ सबसे मशहूर व्यञ्जन हैं। केरल के उत्तरी भाग में या मालाबार तट में मुस्लिम मोप्लाह-भोजनशैली का वर्चस्व है। यहाँ के अनेक व्यञ्जनों में अरब प्रभाव अच्छी तरह दिखाई देता है जैसे कि अलीसा, जो गेहूँ एवं मांस का दलिया होता है। मध्य केरल का दक्षिण भाग वह क्षेत्र है जहाँ सीरियाई ईसाई भोजन कला आज भी दिखाई देती है। सीरियाई ईसाइयों का केरल की भोजनशैली में भारी योगदान है। इसमें शामिल व्यञ्जनों में होपर, डक रोस्ट, मीन वेविचथू (रेड फिश करी), वस्टे और स्ट्यू प्रमुख हैं।


बंगाली भोजनशैली में सरसों के तेल के साथ काली मिर्च पर बहुत अधिक जोर दिया जाता है तथा इसमें अधिक मात्रा में मसालों का प्रयोग होता है। यह भोजनशैली मछली, सब्जी, मसूर की दाल और चावल के साथ अपने तीखे जायके व खुशबू के लिए विख्यात है। ताजे मीठे पानी की मछली इसकी सबसे अनोखी विशेषताओं में से एक है। बंगाली मछली को कई तरह से बनाते हैं जैसे कि उबालकर, दम देकर पकाकर या नारियल के दूध या सरसों के बेस पर सब्जियों एवं सॉस के साथ उबालकर।


ओडीशा का भोजन आम तौर पर तीखा और हल्का मसालायुक्त होता है। यहाँ के भोजन में मछली और अन्य समुद्री  जीव, जैसे केकड़ा और झींगा बहुत लोकप्रिय हैं।


भारत के पूर्वी राज्यों, जैसे- सिक्किम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, असम, नागालैंड के भोजन में उनकी भौगोलिक स्थितियों के कारण नाटकीय रूप से काफ़ी अंतर है। ये क्षेत्र तिब्बत, चीन तथा पश्चिमी भोजनशैली से भी काफी प्रभावित हैं। पश्चिमी भारत में राजस्थानी भोजनशैली काफ़ी विविधतापूर्ण है। यहाँ के राजशाही युग में शिकार के चलन से जहाँ मांसाहारी व्यञ्जन विकसित हुए, वहीं मारवाड़ या जोधपुर के सभी भोजन शाकाहारी हैं जिनके लोकप्रिय व्यञ्जन चूरमा, लड्डू एवं दाल-बाटी हैं। राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्र की सब्जी कैर सांगरी के बारे में तो यहां तक कहा गया है कि कैर कुमटिया सांगरी काचर बोर मतीर। तीनूं लोकां नहिं मिले, तरसे देव अखीर।। अर्थात् कैर, कुमटिया, सांगरी, काचर, बेर और मतीरे राजस्थान को छोड़कर तीनों लोकों में दुर्लभ हैं और इनके स्वाद के लिए देवता भी तरसते हैं।


गुजरात की एक बड़ी आबादी मुख्य रूप से शाकाहारी है, इसलिए गुजराती भोजनशैली पूरी तरह से शाकाहारी है। इसके व्यञ्जनों में ओंधिया, पात्र, खांडवी, थेपला, ढोकला, खमण आदि प्रमुख हैं। गुजराती भोजन आम तौर पर मीठे होते हैं। पारसियों का मुख्य व्यञ्जन धनसख है, जिसे तले हुए प्याज, ब्राउन राइस, दाल, सब्जियों एवं मांस के साथ परोसा जाता है और जो रविवार को तथा सभी त्योहारों पर खाया जाता है।


गोवा की भोजनशैली पर पुर्तगाल का मज़बूत प्रभाव है क्योंकि पहले यह पुर्तगालियों का उपनिवेश हुआ करता था। इस भोजनशैली के व्यञ्जनों में बालकायो, जकाती, विंदालूस, सोरपोटेल एवं मोएलोस प्रमुख हैं। मालवणी और कोंकणी भोजनशैली महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र, गोवा तथा पश्चिम कर्नाटक के उत्तरी भाग के हिंदुओं की मानक भोजनशैली है। मालवणी भोजनशैली के व्यञ्जन ज़्यादातर मांसाहारी होते हैं। मालवणी भोजनशैली में नारियल का भरपूर उपयोग होता है और इसके व्यञ्जन आमतौर पर बहुत मसालेदार होते हैं। हालांकि इस क्षेत्र की कोंकणस्थ ब्राह्मण भोजनशैली शाकाहारी भी है।


महाराष्ट्र के भोजन में पूरणपोली का विशेष स्थान हैचने की दाल, गुड़ या शक्कर के साथ पीसकर बनाया जानेवाला यह व्यञ्जन गुडीपड़वा पर अनिवार्य रूप से हर घर में परोसा जाता है और अन्य त्योहारों पर भी पूरणपोली बनाई जाती है।


भौगोलिक विशेषताओं और क्षेत्रों की विविधता के कारण छोटे-बड़े त्योहार भारत में पूरे साल मनाए जाते हैं, जो लोगों को परंपरागत व्यञ्जनों का लुत्फ़ उठाने के अवसर प्रदान करते हैं। विशेष त्योहारों पर विशेष व्यञ्जन बनाकर संबंधित देवीदेवताओं को अर्पित किए जाते हैं। उदाहरण के लिए दूध का हलवा, मक्खन और दही से बने व्यञ्जन जन्माष्टमी पर बाँटे जाते हैं, जबकि ताजे नारियल के मोदक, मुरूक्कू की क्षेत्रीय वैरायटी, लड्डु और कज्जाया को गणेश का मनपसंद व्यञ्जन माना जाता है और गणेश चतुर्थी को यह भेंट में चढ़ाया जाता है।


भारत में इतनी तरह की मिठाइयाँ हैं कि जब कोई उत्तर से दक्षिण या पूरब से पश्चिम और भिन्न जातीय समुदायों के बीच जाता है तो वह अचम्भित रह जाता है। पश्चिम बंगाल और उत्तर भारत में रसगुल्ला, चमचम, संदेश और लड्डू, गुलाबजामुन, काजू कतली लोकप्रिय हैं जबकि गुजरात और राजस्थान में मेस्सू, मोथार, घेवर, फेणी लोकप्रिय हैं।


भारतीय भोजनशैली दक्षिण-पूर्व एशिया में मज़बूत हिंदू एवं बौद्ध-सांस्कृ तिक प्रभाव के कारण इस क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय है। मलेशिया की भोजनशैली पर भी भारतीय शैली का काफ़ी प्रभाव है तथा यह सिंगापुर में भी लोकप्रिय है। सिंगापुर भोजनशैली के मिश्रण के लिए विख्यात है जिसके तहत सिंगापुर की परम्परागत भोजनशैली का मिश्रण भारतीय भोजनशैली के साथ किया जाता है। एशिया के अन्यभागों में शाकाहार के प्रसार का श्रेय अक्सर हिंदू एवं बौद्ध-प्रथाओं को दिया जाता है जिसका जन्म भारत में हुआ।


भारतीय संस्कृति में भोजन पकाने कटी कला को ‘पाककला' कहा गया है। इस तरह भारतीय भोजन विभिन्न प्रकार की पाककलाओं का संगम ही है। इसमें पंजाबी, मारवाड़ी, दक्षिण भारतीय, शाकाहारी भोजन (निरामिष), मांसाहारी भोजन (सामिष) आदि सभी शामिल हैं। भारतीय भोजन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि कई प्रकार के भोजन न भी मिलें तो भी आम या नीबू के अचार या फिर टमाटर की चटनी से भी भरपूर स्वाद प्राप्त होता है।


ब्रिटिश लोगों ने भारतीयों में चाय पीने की आदत डाली और चाय उगाने के लिए आदर्श जलवायु होने के कारण भारत तेजी से विश्व में चायप्रेमियों की श्रेणी में शामिल हो गया। ब्रिटिश लोगों ने भारतीयों के खाने के ढंग को भी बदलने का प्रयास किया और पहली बार भारत में भोजन के लिए क टे-छुरी-चाकू का इस्तेमाल शुरू हुआ। रसोई में बैठकर खाने की जगह डायनिंग टेबल पर खाने की परम्परा विकसित हुई।


भारतीय भोजन में जड़ी-बूटियाँ और मसाले महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अलग-अलग व्यञ्जनों के मसाले भी अलग-अलग होते हैं। मसालों में गरम मसाला सबसे महत्त्वपूर्ण मिश्रण है और भारतीय भोजन का अत्यन्त आवश्यक अंग है। भारत के प्रत्येक राज्य का गरम मसाले का अपना खास मिश्रण है। मसालों एवं जड़ी-बूटियों की भूमिका केवल भोजन पकाने तक ही सीमित नहीं है। प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में रोग-निदान के इनके गुणों का वर्णन किया गया है। हालांकि आज की पीढ़ी के ज्यादातर लोगों को मसालों और जड़ी-बूटियों के ओषधीय गुणों का ज्ञान नहीं है। खुशबू और स्वाद ज़्यादा हावी हो गया है।