छात्रों के प्रेरणा-स्रोत डॉ. कलाम

वर्तमान जब सृजन करता है, तब उसे खुद भी नहीं आभास होता कि उसके सृजन का भविष्य क्या है। किन्त समय के साथ जब भविष्य की कड़ियाँ एक-एक कर खुलने लगती हैं। तब जाकर वास्तव में उस युग-सन्दर्भ की । पहचान होती है जिसके बीच वर्तमान ने सृजन और उसका सृजन और उसका पोषण किया था। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में 1931 का वर्ष बड़े ही संघर्ष का वर्ष था। भगत सिंह और उनके साथियों की फाँसी से जहाँक्रान्तिकारी आन्दोलन आहत था वहीं कांग्रेस, ब्रिटिश गोलमेज सम्मेलनों के व्यूह में फँसती जा रही थी। इसी वर्ष 15 अक्टूबर, 1931 को माँ भारती के सुदूर अंचल रामेश्वरम् ने धनुषकोड से एक साधारण नाविक के घर वह संतान दी जिसने आगे चलकर माँ भारती को उन अस्त्रों से सुसज्जित किया जिससे फिर किसी की भी उस पर कुदृष्टि डालने की हिम्मत न हो सके। हाल में जब भारत ने अपनी खुद की जी.पी.एस. प्रणाली प्रारंभ की, तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस भारतीय प्रणाली को ‘नाविक' नाम दिया। वस्तुतः भूत-वर्तमान और भविष्य का यह बहुत सुखद और मिश्रित संयोग है। अब्दुल नाम का यह बालक आगे चलकर भारत का ‘मिसाइल मैन' और 'जनता के राष्ट्रपति' के तौर पर विख्यात हुआ।



तीन परिवारों के संयुक्त परिवार में जिसमें दस भाई-बहनों के बीच एक साधारण ‘नाविक' से 'राष्ट्रपति' तक कासफर आसान नहीं था। किन्तु ज्ञान की जिजीविषा ऐसी कि विद्यालय के उपरान्त अखबार बेचने से लेकर प्रत्येक वह कार्य करते जिससे उनके परिवार को आर्थिक सम्बल मिल सके और वह शिक्षा प्राप्त करते रहें। अब्दुल कलाम ने प्रारम्भिक शिक्षा श्वार्ज मैट्रीकुलेशन स्कूल में पूरी करने के बाद तिरुचनापल्ली के सेंट जोजेफ़ कॉलेज में दाखिला लिया जहाँ से 1954 में भौतिक विज्ञान में स्नातक हुए। 1955 में कलाम मद्रास आ गये तथा यहाँ मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से 1960 में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की शिक्षा पूरी की। इसके पश्चात् रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन (डी.आर.डी.ओ.) में वैज्ञानिक हुए। इस बीच कलाम नेहरू द्वारा गठित ‘इण्डियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च के सदस्य भी रहे। 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) आ गये। यहाँ भारत के प्रथम उपग्रह ‘रोहिणी' के स्थापना में योगदान दिया। 1982 में पुनः डी.आर.डी.ओ. लौटे तथा 'इंटिग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलेपमेंट प्रोग्राम के मुख्य कार्यकारी के तौर पर कार्य किया। यहाँ ‘अग्नि' और 'पृथ्वी' मिसाइलों को आधुनिकतम रूप देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। कलाम 1992 से 1999 तक प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार रहे। 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण कार्यक्रम में आर. चिदम्बरम् के साथ परियोजना के समन्वयक की भूमिका निभायी। यह अब्दुल कलाम के लिए बड़े ही निर्णायक क्षण थे जब पहली बार देश और विदेश की मीडिया ने उनके बारे में खूब लिखा। उनके माँ भारती के प्रति त्याग, समर्पण और इससे होनेवाली प्रसिद्धि ने प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी द्वारा राष्ट्रपति के रूप में उनके चुनाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। वर्ष 2002 से 2007 तक ए.पी.जे. अब्दुल कलाम भारत के 11वें राष्ट्रपति रहे।


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