शिक्षा में व्यवधान : ज्योतिष से समाधान

विद्यार्थियों और शिक्षार्थियों की परमाराध्या माँ सरस्वती हैं। तीव्र बुद्धि और मानसिक दौर्बल्य दूर कर विद्याप्राप्ति में सहायता हेतु प्रायः सभी माँ सरस्वती की आराधना करते हैं। साथ ही प्रथम पूज्य गणपति की आराधना भी बुद्धिवर्धन हेतु की जाती है। अभिभावक अपने बच्चे के शिक्षाकाल में उनकी सफलता और भविष्य के प्रति चिन्तित रहते हैं। प्रारम्भिक, माध्यमिक, स्नातक और उच्च शिक्षा का स्तर भी पारिवारिक परिवेश पर बहुत हद तक निर्भर करता है। ज्योतिष के द्वारा बाल्यावस्था में ही ये बातें जानी जा सकती हैं कि बच्चे की शिक्षा कैसी होगी। आजकल तो निजी शिक्षा-संस्थानों में बाकायदा यह पूछा जाता है कि माता-पिता की शिक्षा क्या है। कुछ नामी-गिरामी विद्यालय तो बाकायदा ज्योतिषीय वर्कशॉप आयोजितकर बच्चों की काउंसलिंग की व्यवस्था करते हैं। और परामर्श प्राप्त करते हैं।



आजकल वास्तु-परामर्श का भरपूर चलन है। पूर्व में जनसामान्य तक इसकी पहुँच कम थी, केवल बड़े भवनों, महलों आदि के निर्माण में वास्तु-संबंधी जानकारी ली जाती थी। लेकिन आजकल सामान्य लोग भी छोटे-बड़े निर्माण कार्य के लिए वास्तु- परामर्श अवश्य लेते हैं। इसी प्रकार बच्चे की शिक्षा एवं भविष्य-निर्धारण में वास्तु की महत्ता को नहीं नकारा जा सकता।


भारतीय वास्तुशास्त्र में शिक्षा के लिए मुख्यतः ईशानकोण की पवित्रता, ईशानकोण में टॉयलेट इत्यादि का न होना, पूर्व एवं उत्तर दिशा को प्रमुख स्थान दिया जाता है। इनसे आचरण-संबंधी शुद्धता भी आती है। दक्षिण दिशा में बच्चों का स्थान होने से बच्चे हठी व जिद्दी होते हैं। आपके बच्चे यदि आपसे मन की बात खुलकर नहीं कर पाते, तो उनके सोने की व्यवस्था पश्चिम दिशा में करें। लेकिन उत्तर-पश्चिम (वायव्य) में नहीं; क्योंकि यहाँ सोनेवाले बच्चे घर पर कम टिकते हैं। साथ ही इनकी मित्र-मण्डली बड़ी हो जाती है। ख़ासकर जब बच्चे की जन्म-पत्रिका में चतुर्थ भाव और भावेश दूषित हों, तो वास्तु-दोष अवश्य पीड़ित करते हैं। अध्ययन हेतु प्रशस्त दिशा उत्तर एवं पूर्व का बोध होने पर उनके अध्ययन-कक्ष पर भी ध्यान देना चाहिये। जैसे वह खुला, हवादार, स्वच्छ तो हो ही, साथ ही शोरगुल से भी मुक्त हो। बच्चा नीरोग रहते हुए उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर हो, इसके लिए कमरे का रंग उनके शुभ रंगों के अनुसार हो। पर्यों का रंग दीवार के रंग से गहरा हो, पलंग अथवा बेड अधिक ऊँचा-बड़ा न हो तथा सिरहाना सदैव पूर्व की तरफ रखें। स्टडी-टेबल उत्तर-पूर्व में रखा हो ताकि पढ़ते समय भी मुख पूर्व की तरफ हो। ऐसा होने से बच्चा न केवल कुशाग्र होता है, बल्कि उसकी याददाश्त भी तेज होती है। कंप्यूटर दक्षिण अथवा आग्नेय कोण में हो सकता है। यदि एक ही कमरे में एक से अधिक बच्चे के पढ़ने की व्यवस्था हो, तो बड़े बच्चे के अनुरूप दीवारों का रंग रखें। नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) दिशा में पुस्तकों के रैक तथा उनके कपड़ों की अलमारी रखें जबकि खिड़की, एसी तथा कूलर आदि उत्तर दिशा की ओर ही हो। यथासंभव बच्चे के कमरे की उत्तरी दिशा खाली रखी जाये तथा रोशनी की ऐसी व्यवस्था हो कि दिन में कृत्रिम रोशनी की आवश्यकता न पड़े।


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