निरोग रहने के लिए अपनायें आयुर्वेद

स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणम् :


बारिश में भीगकर सर्दी का उपचार कराने से बेहतर है कि बारिश आने के पूर्व ही छाता लगाकर अपना बचाव कर लिया जाए। रोगी होकर चिकित्सा कराने से अच्छा है कि बीमार ही न पड़ा जाए। आयुर्वेद का प्रयोजन भी यही है।


स्वस्थ के स्वास्थ्य की रक्षा एवं रोगी के रोग का शमन। आयुर्वेद की दिनचर्या, ऋतुचर्या, विहार से सम्बन्धित छोटे-छोटे किन्तु महत्त्वपूर्ण सूत्रों को अपने दैनिक जीवन में सहज रूप से धारण कर हम स्वयं को स्वस्थ एवं निरोगी बनाए रख सकते हैं।



स्वस्थ रहने के स्वर्णिम सूत्र :


सदा ब्राह्ममुहूर्त (प्रातः 4-5 बजे) में उठना चाहिए। इस समय प्रकृति मुक्तहस्त से स्वास्थ्य, प्राणवायु, प्रसन्नता, मेधा, बुद्धि की वर्षा करती


बिस्तर से उठते ही मूत्रत्याग के पश्चात् उषा पान अर्थात्बासी मुँह 2-3 गिलास शीतल जल के सेवन की आदत सिरदर्द, अम्लपित्त, कब्ज, मोटापा, रक्तचाप, नेत्ररोग, अपच सहित कई रोगों से हमारा बचाव करती है।


स्नान सदा सामान्य शीतल जल से करना चाहिए। (जहाँ निषेध न हो)


दिन में 2 बार मुँह में जल भरकर, नेत्रों को शीतल जल से धोना नेत्रदृष्टि के लिए लाभकारी है।


नहाने से पूर्व, सोने से पूर्व एवं भोजन के पश्चात् मूत्रत्याग अवश्य करना चाहिए। यह आदत आपको कमर दर्द, पथरी तथा मूत्र-संबंधी बीमारियों से बचाती है।


सरसों, तिल या अन्य औषधीय तेल की मालिश नित्यप्रति करने से वात विकार, बुढ़ापा, थकावट नहीं होती है। त्वचा सुन्दर, दृष्टि स्वच्छ एवं शरीर पुष्ट होता है।


शरीर की क्षमतानुसार प्रातः भ्रमण, योग, व्यायाम करना चाहिए।


योग, व्यायाम करना चाहिए। अपच, कब्ज, अजीर्ण, मोटापा-जैसी बीमारियों से बचने के लिए भोजन से 30 मिनट पहले तथा 30 मिनट बाद तक जल नहीं पीना चाहिए। भोजन के साथ जल नहीं पीना चाहिए। पूँट-दो पूँट ले सकते हैं।


पूँट ले सकते हैं। दिनभर में 3-4 लीटर जल थोड़ाथोड़ा करके पीते रहना चाहिए।


भोजन के प्रारम्भ में मधुर-रस (मीठा), मध्य में अम्ल, लवण रस (खट्टा, नमकीन) तथा अन्त में कटु, तिक्त, कषाय (तीखा, चटपटा, कसेला) रस के पदार्थों का सेवन करना चाहिए।


भोजन के उपरान्त वज्रासन में 5-10 मिनट बैठना तथा बायीं करवट 5-10 मिनट लेटना चाहिए।


भोजन के तुरन्त बाद दौड़ना, तैरना, नहाना, मैथुन करना स्वास्थ्य के बहुत हानिकारक है।


भोजन करके तत्काल सो जाने से पाचनशक्ति का नाश हो जाता है। जिसमें अजीर्ण, कब्ज, आध्मान, अम्लपित्त-जैसी व्याधियाँ हो जाती हैं। इसलिए सायं का भोजन सोने से 2 घंटे पूर्व हल्का एवं सुपाच्य करना चाहिए।


शरीर एवं मन को तरोताजा एवं क्रियाशील रखने के लिए औसतन 6 7 घन्टे की नींद आवश्यक है।


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