उपचार के कितनेआधार?

चिकित्साविज्ञान की विभिन्न पद्धतियों की बात करें तो नये परिदृश्य में आयुर्वेद चिकित्सा-पद्धति हर मर्ज के कारगर उपचार के रूप में तेजी से उभर रही है। चिकित्सा-क्षेत्र के विश्लेषकों का कहना है कि, 'इसका सीधा श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और आयुष मंत्री श्रीपद यासो नाइक को जाता है।


चिकित्साविज्ञान के अनगिनत सितारों में ‘एलोपेथी' एक ऐसा सितारा है जो सबसे ऊँचे पायदान पर है। ऐसा क्यों है ? इसका उत्तर पूरी तरह तार्किक है कि, चिकित्साविज्ञान की इस पद्धति में नित नये अनुसंधान और रोगों के निदान के निरंतर प्रयास से लोगों की जिन्दगी बेहतर हुई है। वैक्सिनेशन की वजह से चेचक-जैसी महामारियों को इतिहास के पन्नों में समेट दिया गया है। इतना ही नहीं, इससे लोगों की औसत आयु में इजाफा हुआ है। इस समय दवा- उद्योग का परिदृश्य समझे तो देशभर में एलोपैथी दवाओं का बाजार 30 हजार करोड़ रुपयों का है। इसकी तुलना में आयुर्वेद का बाजार दस हजार करोड़ से भी कम है। चिकित्साविज्ञान की विभिन्न पद्धतियों की बात करें तो नये परिदृश्य में आयुर्वेद चिकित्सा-पद्धति हर मर्ज के कारगर उपचार के रूप में तेजी से उभर रही है। चिकित्साक्षेत्र के विश्लेषकों का कहना है कि, ‘इसका सीधा श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और आयुष मंत्री श्रीपद यासो नाइक को जाता है। उनकी सोच में कितना दम है ? इस बात का खुलासा इसी दावेदारी से हो जाता है कि, “अब कैंसर-जैसी लाइलाज़ बीमारी का इलाज आयुर्वेद ने खोज लिया है। आयुष मंत्री श्रीपद यासो नाइक का कहना है कि, आयुर्वेद में उपचार की जबरदस्त क्षमता है, इसकी श्रेष्ठतम ढंग से प्रस्तुति जरूरी है।' यह कहते हुए श्रीपद बेहद आशावादी नज़र आते हैं कि, ‘कैंसर-जैसी घातक बीमारी के उपचार की दिशा में आयुर्वेद में पर्याप्त अनुसंधान के प्रयास किए जा रहे हैं।'



चिकित्साविज्ञान में एलोपेथी उपचार- पद्धति को किस प्रकार पारिभाषित किया जा सकता है? इसकी विशद व्याख्या समझें तो, ‘चिकित्सा की ऐसी विधा जो व्यक्ति को बीमारियों का प्रतिकार करने और उबरने में मदद करती है। उपचार के दौरान उत्पन्न होनेवाले विभिन्न प्रभावों का भी शमन करती है। चिकित्सा की इस विधा को ठोस धरातल पर उतारने का काम और उसे 'एलोपेथी के रूप में अलंकृत करने का काम सी.एफ.एस. हैनीमन ने 1842 में किया। ‘होम्योपेथी की प्रतिद्वंद्विता में इस पद्धति को ओषधिशास्त्र की इस अवधारणा पर आधारित बताया कि चिकित्साविज्ञान की इस विधि से मरीज़ को दवाइयों की मामूली खुराक देकर चंद मिनटों में भला-चंगा किया जा सकता है । यही वजह है कि मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में अस्पताल और दवा-उद्योग एक दूसरे के पूरक हो गए हैं। यदि दवा-उद्योग दवाइयों के विकास और अनुसंधान पर भारी-भरकम निवेश करता है, तो उसकी वजह समन्वित रूप से चिकित्सा-उद्योग को संबल प्रदान करना ही है। तत्कालीन कालखण्ड में चिकित्साविज्ञान के अभिनव नवाचार में 'एलोपैथी' की सर्वांग परिभाषा करते हुए कहा गया कि, ‘दवाओं की पद्धति अथवा दवाओं की संबद्धता का मूल उद्देश्य दवाइयों तथा सर्जरी के माध्यम से बीमारियों को निष्प्रभावी करना है। साथ ही उन स्थितियों से मरीज़ को उबरना है जो उसे सामर्थ्यहीन बनाती है।' चिकित्सावज्ञान में उपचार-विधा में विभेद करने की परिस्थितियाँ यूरोप और उत्तरी अमेरिका में 19वीं शताब्दी की शुरूआत में तब हुई जब एलोपैथी और होम्योपैथी को अलग-अलग पारिभाषित करने की आवश्यकता हुई। ‘एलोपाथ' टर्म का इस्तेमाल हैनीमैन तथा अन्य होम्योपैथिकों ने उस कालखण्ड में तब किया जब लोग इन पद्धतियों को लेकर दिग्भ्रमित होने लगे थे। चिकित्साविज्ञान की एलोपैथी पद्धति में प्रैक्टिशनर्स को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है। पहला-एलोपैथिक फिजीशियन (एमडी) दुसरा-ऑस्टोपैथिक फिजीशियन। दोनों ही लाइसेंसशुदा फिजीशियन होते हैं, तथा रोगों का निदान खोजने तथा बीमारियों के निवारण और बचाव के उपाय के लिए अधिकृत होते हैं।


आगे और---