भारत माँ के लाल प्रेरणा-पुरुष श्री लालकृष्ण आडवाणी

श्री लालकृष्ण आडवाणी, देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठतम चेहरा हैं। श्री अटल विहारी वाजपेयी तथा श्री आडवाणी के बिना हम भारतीय जनता पार्टी की कल्पना भी नहीं कर सकते। भारतीय जनता पार्टी की नींव रखने में इन दो राजनीतिज्ञों का विशेष योगदान रहा है।


श्री वाजपेयी तो अब सक्रिय राजनीतिक जीवन से संन्यास ले चुके हैं, परन्तु श्री आडवाणी 1951 से अब तक भारतीय जनता पार्टी में एक सक्रिय राजनेता की भूमिका निभा रहे हैं। इस प्रकार श्री आडवाणी का राजनीतिक सफर बहुत लम्बा और उतार-चढ़ाव से भरपूर रहा है। वे भारतीय राजनीति के सर्वाधिक आदरणीय चेहरों में एक हैं। श्री आडवाणी का राजनीतिक सफर विवादों से भरपूर रहा है- चाहे जिन्ना प्रकरण हो, हवाला काण्ड हो या फिर अयोध्या में विवादित ढाँचे का विध्वंस। किन्तु श्री आडवाणी ने अपने उच्च बौद्धिक स्तर, अडिग सिद्धान्त और आदर्शो से इन सारी परिस्थितियों से मुकाबला किया और अपनी राजनैतिक महत्त्वाकांक्षाओं को नयी ऊँचाइयों ले गये। श्री आडवाणी का व्यक्तित्व प्रभावशाली और दृढ़ निश्चय से भरपूर है। और इसी वजह से उन्हें 'लौहपुरुष भी । कहा जाता है। आज भी वह हमारे प्रेरणा-स्रोत हैं।



प्रारम्भिक जीवन


श्री लालकृष्ण आडवाणी का जन्म अखण्ड भारत के कराची के सिंधी परिवार में 08 नवम्बर, 1927 को हुआ। उनके पिताजी श्री किशनचन्द आडवाणी एक व्यापारी थे। लालकृष्ण आडवाणी की स्कूली शिक्षा सेंट पेटिक्स हाईस्कूल, कराची से हुई। बाद में उन्होंने हैदराबाद (पाकिस्तान) के गिडूमल नेशनल कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की। आजीवका के लिए उन्होंने कराची के मॉडल हाईस्कूल में अंग्रेजी, गणित, इतिहास और विज्ञान-जैसे विषय भी पढ़ाए। पाकिस्तान से भारत आने पर उन्होंने बम्बई विश्वविद्यालय के गवर्नमेंटलॉ कॉलेज से वकालत की पढ़ाई की।


विवाह


सन 1965 में फरवरी में आडवाणीजी का विवाह कमला देवी से हुआ। उनकी दो सन्तानें हुईं- पुत्र जयन्त आडवाणी तथा पुत्री प्रतिभा आडवाणी। प्रतिभा आडवाणी टीवी सीरियल्स की निर्माता होने के साथ-साथ अपने पिता की राजनैतिक क्रियाकलापों में सहायिका भी हैं। श्री आडवाणी की धर्मपत्नी का हृदयाघात से अचानक अप्रैल 2016 में निधन हो गया।


संघ प्रवेश


सन् 1942 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक के रूप में उन्होंने सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया। कराची में संघ के प्रचारक के रूप में देशसेवा करते हुए उन्होंने संघ की कई शाखाएँ स्थापित कीं। फिर भारत-विभाजन के बाद भारत आने पर उन्हें संघ-कार्य हेतु राजस्थान । भेजा गया। वहाँ वह 1951 तक अलवर, भरतपुर, कोटा, बूंदी और झालावाड़ के कार्यवाह के कार्यवाह के रूप में संघ-कार्य किया।


 भारतीय जनसंघ


सन् 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने संघ के साथ मिलकर भारतीय जनसंघ की स्थापना की। संघ के स्वयंसेवक होने के नाते श्री आडवाणी भी जनसंघ से जुड़ गये। उन्हें राजस्थान में जनसंघ के श्री सुन्दर सिंह भण्डारी के सचिव के पद पर नियुक्त किया गया। श्री आडवाणी बहुत ही कुशल राजनीतिज्ञ थे। जल्द ही उन्हें जनसंघ में महासचिव का पद भी। मिल गया। फिर राजनीति में अपना कदम आगे बढ़ाते हुए 1957 में उन्होंने दिल्ली का रुख किया। वहाँ उन्हें दिल्ली जनसंघ का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उन्होंने 1967 में दिल्ली के महानगरीय परिषद् चुनाव लड़े और काउंसिल के नेता बने। राजनीतिक गुण के साथ-साथ श्री आडवाणी में और भी कई प्रतिभाएँ थीं। 1966 में उन्होंने संघ के अंग्रेजीसाप्ताहिक ‘ऑर्गनाइज़र' में उन्होंने संपादक श्री केवल रतन मलकानी की भी मदद की।


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