एक ऐसी अयोध्या, जो थाईलैण्ड में है।

दक्षिण-पूर्व एशिया-स्थित थाईलैण्ड यानि 'स्याम' अथवा ‘सियाम’ देश के एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आने से बहुत पहले ही इस क्षेत्र में रामायणीय संस्कृति विकसित हो गई थी। अधिकतर थाईवासी परम्परागत रूप से रामकथा से सुपरिचित थे। 1238 ई. में स्वतन्त्र थाई राष्ट्र की स्थापना हुई। उस समय उसका नाम 'स्याम' था। ऐसा अनुमान किया जाता है कि 13वीं शती में श्रीराम यहाँ की जनता के नायक के रूप में प्रतिष्ठित हो गए थे। थाई-नरेश ब्रह्म त्रैलोकनाथ (1448-1488) की राजभवन-नियमावली में रामलीला का उल्लेख है जिसकी तिथि 1458 ई. है। थाई-नरेश ब्रह्मकोत महाधर्मराज द्वितीय (1737- 1758) के राजत्वकाल की रचनाओं में रामकथा के पात्रों तथा घटनाओं का उल्लेख हुआ है। किन्तु रामकथा पर आधारित सुविकसित साहित्य 18वीं शती में ही उपलब्ध होता है।



सुविकसित साहित्य 18वीं शती में ही उपलब्ध होता है। थाई-रामायण को रामाख्यान के अर्थ से ‘रामकिएन' कहा जाता है। इसे 'थाईलैण्ड के राष्ट्रीय महाकाव्य' का सम्मान प्राप्त है। मूल रामकिएन' 1767 ई. में नष्ट हो गया। परवर्ती काल में जब तासकिन (1767-1782) यहाँ के सम्राट् बने, तब उन्होंने 1797 से 1807 के मध्य थाई-भाषा में ‘रामकिएन' को छंदोबद्ध किया, जिसके चार खण्डों में 2,012 पद हैं। पुनः सम्राट् राम प्रथम (जन्म : 1736, निधन : 1809) ने अनेक कवियों के सहयोग से ‘रामकिएन' की रचना करवाई, जिसमें 50,188 पद हैं। यही थाई-भाषा का पूर्ण रामायण है। यह विशाल रचना नाटक के लिए उपयुक्त नहीं थी। इसलिए सम्राट् के पुत्र राम द्वितीय (जन्म : 1767, निधन : 1824) ने रामकिएन का एक संक्षिप्त संस्करण तैयार किया, जिसमें 14,300 पद हैं। राम षष्ठ (1910-1925) ने भी वाल्मीकीयरामायण पर आधारित एक रामलीला लिखी। इसके अतिरिक्त थाईलैण्ड में रामकथा पर आधारित अनेक कृतियाँ हैं। ‘शिल्पतोनू' (शिल्पाधिकरण) नामक जो सरकारी ललितकला-संस्थान थाईलैण्ड में है, वह उन राजलिखित रामकथाओं को विशेष अवसरों पर रंगमंच पर प्रस्तुत करता है।


थाईलैण्ड में रामकथा और रामलीला इतनी लोकप्रिय है कि यहाँ के बहुसंख्य लोगों का विश्वास है कि रामायण के पात्र मूलतः इसी क्षेत्र के निवासी थे और रामायण की सारी घटनाएँ इसी क्षेत्र में घटी थीं। इसलिए यहाँ राम की राजधानी अयोध्या की भी कल्पना कर ली गई है। अयोध्या को यहाँ ‘अयुध्या' कहा जाता है। सन् 1350 से 1463 तक एवं 1488 से 1767 ई. तक ‘अयुध्या' को। थाईलैण्ड की राजधानी होने का गौरव प्राप्त है और थाईलैण्ड के राजा अपने को भगवान् राम का प्रतिनिधि मानते हैं


• रामातिबोधि (1350-1369)


• रामेसुएन प्रथम (1369-1395)


राम राजा (1395-1408)


रामातिबोधि द्वितीय (1491-1529)


• फ्रा फ्रेटराजा रामेसुएन द्वितीय (1688-1703)


• फ्रा फुट्ट योट फा चुलालोक राम प्रथम महान् (1782-1809)।


• फ्रेंडिन-क्लांग राम द्वितीय (1809-1824)


• फ्रा नंग क्लाव राम तृतीय (1824-1851)


• महामोंगकुट राम चतुर्थ (1851-1868)


• चुलालोंगकोर्न राम पंचम (1868-1910) ।


• महा वाजिरवुध राम षष्ठ (1910-1925)


• प्रजाधिपोक राम सप्तम (1925-1935)


• आनन्द महिडोल राम अष्टम (19351946)


• भूमिबोल अतुल्यतेज राम नवम (1946-वर्तमान)


थाईलैण्ड के ‘अयुध्या नगर की स्थापना राजा रामातिबोधि प्रथम(1350-1369) ने सन् 1350 ई. में की थी। ‘अयुध्या' नाम से थाईलैण्ड में एक नगर, एक ज़िला, एक प्रान्त और एक बैंक (बैंक ऑफ अयुध्या पब्लिक लिमिटेड) है। ‘अयुध्या हिस्टॉरिकल पार्क में प्राचीन अयुध्या नगर के भग्नावशेष संरक्षित हैं।


थाईलैण्ड की वर्तमान राजधानी बैंकॉक से 150 किमी उत्तर-पूर्व में “लौपबुरी' (लवपुरी) नाम का भी एक प्रान्त है। इसी नाम की एक नदी भी यहाँ है। लौपबुरी प्रान्त के अंतर्गत वांग-प्र’ नामक स्थान के निकट ‘फाली' (वालि) नामक एक गुफा है। कहा जाता है कि वालि ने इसी गुफा में 'थोरफी' नामक महिष का वध किया था। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि थाई-रामायण ‘रामकिएन' में दुंदुभि दानव की कथा में थोड़ा परिवर्तन हुआ है। इसमें दुंदुभि राक्षस के स्थान पर थोरफी नामक एक महाशक्तिशाली महिष है जिसका वध बालि द्वारा होता है। वालि नामक गुफा से प्रवाहित होनेवाली जलधारा का नाम ‘सुग्रीव है। थाईलैण्ड के ही नखोन-रचसीमा प्रांत के पाक-थांग-चाई के निकट थोरफी पर्वत है जहाँ से वालि ने थोरफी के मृत शरीर को उठाकर 200 किमी दूर लौपबुरी में फेंक दिया था। सुखो थाई के निकट सम्पत नदी के पास ‘फ्रा राम' गुफा है। उसके पास ही 'सीता' नामक गुफा भी है।


आगे और------