श्रीराम का गौरव, अयोध्या और भारत

भारतीय इतिहास के मध्य युग में सेमेटिक निराकारवादी इस्लाम का प्रबल प्रचार तथा विस्तार हो रहा था। तबलीग उनका माध्यम था। भारतीय वा हिंदू निम्न वर्ग तथा अतिपिछड़ा वर्ग, जिसे मन्दिर में नहीं जाना था, वे इस द्वंद्व में निराधार हो रहे थे। इसलिए भारतीय निर्गुण भक्ति अद्वैतदर्शन का आधार लेकर अग्रसर हुई। आचार्य रामानन्द ने युग की स्थिति को देखकर इसकी अनुमति दे दी थी। कबीरदास भारतीय निर्गुण भक्ति के प्रमुख संत-भक्त कवि के रूप में अवतरित हुए। इनके पहले महाराष्ट्र के निर्गुण भक्त नामदेव ने पंजाब में जाकर निर्गुण भक्ति को प्रस्तुत किया था। फलतः भारत में एक ओर सेमेटिक निराकारवादी के दबाव से प्रचार चल रहा था। सूफी उसी को प्रेम से रख रहे थे। और दूसरी ओर भारतीय निर्गुण भक्ति-निर्गुण राम की भक्ति का प्रवाह भी चल पड़ा था। यह भी प्रबल हो रहा था।



इस मध्यकालीन सांस्कृतिकसामाजिक द्वन्द्व में तुलसीदास ने वाल्मीकीयरामायण का आधार लेकर श्रीरामचरितमानस की रचना की और सगुण रामभक्ति के उदात्त रूप को लेाकप्रिय भाषा-शैली में प्रस्तुत किया। महाकवि भक्त तुलसीदास ने ‘मानस' के द्वारा भारतीय जीवन में सगुणभक्ति, राम के धीरोदात्त चरित्र तथा उच्चवर्णीय अनुशासन के साथ सबके मर्म को स्पर्श करने का सफल प्रयास किया। तुलसी ने इसके लिए पारिवारिक तथा राष्ट्रीय सन्दर्भ में रामकथा को रखा। राम के धीरोदात्त चरित्र के द्वारा द्वंद्वग्रस्त तथा पतनोन्मुख व्यक्ति तथा समाज के समक्ष उच्चतम शील का व्यावहारिक रूप दिखाया। संपूर्ण रामकथा अवधी भाषा-लोकभाषा एवं प्रचलित दोहा चौपाई शैली- इन तीनों को पूरे परिवार, जनसमाज तथा अखिल भारतीय संदर्भ में अपने महाकाव्य में रखा। मानव के वाचन, गायन तथा नाट्यमंचन- तीनों के द्वारा रामकथा को जन-जन तक पहुँचाया। लोकभाषा में अवतारी श्रीराम की लीला के वर्णन का विरोध काशी के संस्कृतनिष्ठ परंपरावादी पण्डित वर्ग ने कर दिया। ‘मानस' को अस्वीकार कर दिया। परंतु उस युग के विद्वान् मधुसूदन सरस्वती ने ‘मानस' को मान्यता दे दी। अतः सबको मानना पड़ा। विरोध दूर हुआ। और फिर बाद में उस पण्डित वर्ग या उनकी नयी पीढ़ी ने 'मानस' के वाचन, गायन तथा मंचन के लिए अपने को समर्पित कर दिया। रामकथा-मानस की, सर्वाधिक लोकप्रिय सिद्ध हुई । बिहार तथा उत्तरप्रदेश के ग्रामग्राम में मानस-गायन की मण्डलियाँ बन गयीं। पूरा समाज इससे जुड़ गया। रामलीला ने सर्वाधिक प्रभावी लोकनाट्य की शैली में अपने को प्रस्तुत कर मुगल राज्य के भय को दूर कर दिया। राम के रामबाण, लक्ष्मण के क्रोध तथा हनुमान की गदा से दुष्ट-दुर्जन-धर्मविरोधी- सभी भयभीत होने लगे। राम ने उस युग के सर्वाधिक प्रबल साम्राज्यवादी स्वच्छन्द शासक रावण को मार गिराया। यह तो जन जन के समक्ष भक्ति और शक्ति का अद्भुत परिचय था। इसका प्रभाव अप्रतिम था। मुग़ल साम्राज्य तथा क्रूर शहंशाहों का भय समाप्त-सा हो गया। और प्रत्यक्षतः शिवाजी का निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी का व्यक्तित्व लोकप्रिय सिद्ध हो गया।


आज हमें गहरी अनुभूति हो रही है कि तुलसी के ‘सुन्दरकाण्ड' यानी हनुमान- चरित्र के कारण सुदूर दक्षिण के हनुमान उत्तर भारत में सर्वाधिक जनप्रिय देवता बन गए हैं। इसी ‘अतुलित बलधामा' की आवश्यकता थी। आज उत्तर भारत में के हर क्षेत्र में हनुमान विराजमान हैं। विक्रम बजरंगी जो हैं।


तात्पर्य यह है कि तुलसी के मानस के द्वारा मध्ययुगीन अनास्था, अपने धर्म तथा संस्कृति के प्रति, के बदले आस्था का अवतरण हो गया । तुलसी ने सूरदास के साथ सर्वत्र नयी आस्था को जगा दिया। सेमेटिक तौहीद- एकेश्वरवाद का प्रचार थमने लगा। हिंदुओं के अतिपिछड़ा- निम्नवर्ग में उसी समाज के सन्तों-भक्तों ने निर्गुण राम की भक्ति का प्रचार किया। इसका भी प्रभाव बढ़ा। ब्राह्मण वर्ग की अहंमन्यता तथा रूढ़िवादिता पर प्रहार हुआ। सामाजिक क्षेत्र में द्वन्द्व खड़ा हो गया। तुलसी ने ‘मानस' के द्वारा इस द्वन्द्व को रोकने की चेष्टा की। सफलता भी मिली। इसका प्रधान कारण है कि तुलसी के अवतारी राम आकाश के देवता नहीं थे। राजभवन के मात्र सुकुमार राजकुमार नहीं थे। राजभवन के आंतरिक षड्यंत्र के नायक नहीं थे। वे राजकुमारत्व को छोड़कर वनवासी वेष में खाली पैर अयोध्या से दक्षिण समुद्र तक गये। निषादराज से लेकर शबरी और हनुमान् को आत्मीय स्नेह प्रदान किया। तात्पर्य यह है कि दक्षिण भारत के प्रायः सभी जनसमूहों- जनजातीय गणों से अपने को जोड़ा। सेतुबन्ध के तट पर शिवलिंग की प्रतिष्ठा दक्षिण की संस्कृति की प्रतिष्ठा है। शबरी के जूठे बेर खाना शबर जनजाति को हृदय से अपना मानना है। कपि को अपना आदिम उद्भव प्रतीक माननेवाले पर्वतीय-वनवासी समूह से अपने को जोड़कर अपना बनाया। तभी तो उन्हें जानकी के उद्धार के लिए संपूर्ण सहयोग मिला। जानकी का उद्धार हुआ। और यह भी स्मरणीय है कि जनकपुरवाटिका में देवी माँ के पास पहुँचना-उनका समादर विदेह जनपद की आदिम शाक्त चेतना को मान्यता है।


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