असमी लोकसंस्कृति का वैशिष्ट्य : बीहू नृत्य या बीहू गीत

असमी लोकसंस्कृति में ग्रामीणों में गीतों के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। इन गीतों के नाम हैं बीहू-नाम, बीआ-नाम, आई-नाम, नाओखेला गीत, बारामाही गीत, तोकारी गीत, हुकारी नाम, बनगीत, मोनीकोंवर गीत, जोनागभारू गीत आदि। इन सभी गीतों में बीहू गीत अत्यंत लोकप्रिय एवं रोमांचक है। यह बीहू असमी समाज के आकर्षक त्योहारों में गिना जाता है। सामान्यतया बीहू-गीतों की रचना खेती करनेवाले किसानों ने की। किसानों ने इन गीतों के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। इस संदर्भ में लोकसंस्कृति के विशेषज्ञ डॉ. प्रफुल्ल दत्त गोस्वामी का मत है, इसमें कोई संदेह नहीं कि बीहू-गीत विश्व की सुंदरतम कविताएँ हैं।'



यद्यपि बीहू की रचना का ठीक काल अज्ञात है, परंतु विद्वानों का अनुमान है कि लगभग 5वीं से आठवीं शताब्दी के मध्य बीहू की रचना हो गई होगी। संभ्रांत परिवारों के आर्यों ने चैत्र-संक्रांति (मास का प्रथम दिन) को ‘विषुवन संक्रांति' के रूप में मान्यता दी। उस दिन वे गो-पूजा करते थे। इस त्यौहार की सभी रीतियाँ विषुवन' कहलाती हैं।


कुछ विशेषज्ञों का मत है कि ‘बीहा' विषुवन' का अपभ्रंश है। कुछ विद्वानों के अनुसार बीहू त्यौहार आर्यों के विशु पूजा से संबंधित अनार्य त्यौहार है तो कुछ विद्वानों का मत है कि 'बीहू' असम की एक अन्य जनजाति ‘दिमाचा कचारी' की देन है। उनके अनुसार ‘दिभाचाओ के इष्टदेव ब्राईशिबराई' थे। दिमाचा किसान अपनी पूरी फसल को अपने देव को समर्पित करते थे। यहां 'बाई' का अर्थ है ‘प्रार्थना करना' या ‘मांगना' । ‘शा' का अर्थ है ‘शांति एवं समृद्धि' । अतः यह माना जा सकता है कि ‘बीहू' 'विशु' से आया होगा। दूसरी ओर 'बाई' का अर्थ है 'मांगना' तथा 'हु' का अर्थ है ‘देना' ।।


प्राचीन काल (3500 ईसा पूर्व) में बीहू त्यौहार एक माह तक मनाया जाता था। आरंभ में यह त्यौहार चीन में मनाया जाता था। वे वसंत के अवसर पर इस त्यौहार को मनाते थे। इस अवसर पर तरुण एवं तरुणियाँ नृत्य एवं गीत के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त करती थीं। इन गीतों से आसाम के सामाजिक जीवन के रीति-रिवाज, धार्मिक विश्वास, लोककथाएँ, प्रथाएँ तथा जातीय विविधता का बोध होता है। इन गीतों की भाषा सरल, स्पष्ट एवं आसाम की लोक-संस्कृति की प्रतीक है। ये गीत रूपक, उपमा, अलंकार आदि विशेषताओं से युक्त हैं।