भारतीय संविधान में है। पूर्वोत्तर के लिए विशेष प्रावधान

भारतीय संघ के उत्तर-पूर्व में सात राज्य हैं जिनके नाम क्रमशः अरुणाचलप्रदेश, आसाम, त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और नागालैण्ड हैं। नागा लोगों का मत है कि वह एक पृथक् राष्ट्र हैं और वे भारत संघ के साथ अपना विलय नहीं मानते। सन् 1929 में जब ब्रिटिश सरकार के साथ भारत के पुनर्गठन की चर्चा हुई थी, तब भी नागालैण्ड की ओर से नागालैण्ड का अलग राज्य स्थापित करने के लिए ज्ञापन दिया गया था। भारत से स्वतंत्रता की उनकी मांग आज भी उठती रहती है। नागा-विद्रोह को समाप्त करने के लिए समय-समय पर केन्द्र सरकार ने विभिन्न प्रकार के प्रयास किए हैं। विद्रोही नेताओं से बातचीत होती रहती है। परंतु सशस्त्र विद्रोह निरन्तर चल रहा है। यद्यपि नागालैण्ड में संवैधानिक रूप में चुनी हुई लोकतान्त्रिक सरकार है, तथापि समानान्तर सरकार चलाने के दावे भी किए जाते रहे हैं।



मणिपुर की दशा भी नागालैण्ड जैसी ही है। वहाँ जन स्वतंत्रता सेना, संयुक्त राष्ट्रीय स्वतंत्रता मय और जन क्रान्तिकारी दल (कांगलेपक) और अन्य संगठन भारतीय संघ का विरोध करते हैं और पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करते हैं। ये संगठन 21 सितम्बर, 1949 को हुए समझौते को नहीं मानते जिसके अनुसार मणिपुर का भारत में विलय हुआ है। एक प्रतिवेदन के अनुसार आतंकवादी संगठन मणिपुर के कई जिलों में समानान्तर सरकार चला रहे हैं। असम में भाषाई और बांग्लादेशी घुसपैठियों के विवाद बहुत पुराने हैं। असम गण परिषद् और अखिल असम छात्र संगठन-जैसे संगठन वहाँ आन्दोलन करते रहते हैं। सन् 1970 के बाद वहाँ बहुत से हिंसक आन्दोलन हुए हैं। सन् 1983 में नेलीय के भयावह जातीय नरसंहार के पश्चात् तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी ने 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसमें वहाँ की सांस्कृतिक और आर्थिक प्रगति से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिन्दु हैं। समझौता असफल होने पर वहाँ उल्फा और बोडो-आन्दोलन जारी है। त्रिपुरा में भी हिंसक आतंकवादी आन्दोलन बहुत लम्बे समय से चल रहे हैं। मिजोरम में भी इस प्रकार की आंतकवादी घटनाएँ घटित होती रहती हैं।


उत्तर-पूर्व के सातों राज्यों की समस्याओं के स्थायी समाधान के लिए भारतीय संविधान में विशेष प्रावधान किए गए हैं। संविधान के अनुच्छेद 371-अ (जो संविधान में जोड़ा गया और 1 दिसम्बर, 1963 से लागू हुआ) में नागालैण्ड राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान किए गए हैं। अनुच्छेद 371-अ (1)(क) के अनुसार संसद का कोई भी अधिनियम, जो नागाओं की सामाजिक और धार्मिक रीति-रिवाजों, नागा प्रथा विधि और प्रक्रिया, नागा प्रथा-विधि के संबंध में दीवानी एवं आपराधिक न्याय शासन प्रणाली और भूमि के स्वामित्व और अन्तरण और इसके संसाधनों के संबंध में बनाया गया हो, नागालैण्ड राज्य की विधानसभा की स्वीकृति के बिना लागू नहीं होगा। अनुच्छेद 371-अ(1)(क) के अनुसार नागालैण्ड राज्य में कानून एवं व्यवस्था की स्थिति के संबंध में नागालैण्ड के राज्यपाल का विशेष उत्तरदायित्व होगा और यदि उनकी राय में यदि राज्य में राज्य स्थापित होने से पहले नागा पहाड़ियों त्वेनसांग क्षेत्र या उसके किसी भाग में होनेवाली आन्तरिक बाधाएँ (गड़बड़ियाँ) जारी रहती हैं, तो राज्यपाल अपने कर्तव्य के निर्वहन में मन्त्रिपरिषद् से सलाह लेने के पश्चात् कार्यवाही करने के लिए अपना व्यक्तिगत निर्णय ले सकते हैं। परंतु यदि प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या कोई विषय इस प्रकार का है या नहीं है कि राज्यपाल उपर्युक्त उपभाग (2) के अंतर्गत व्यक्तिगत निर्णय ले सकते हैं तो उनके द्वारा अपने विवेक के आधार पर लिया गया निर्णय अन्तिम होगा और राज्यपाल द्वारा लिए गए निर्णय को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि उन्हें व्यक्तिगत आधार पर निर्णय लेना चाहिए था या नहीं। परंतु यदि राज्यपाल द्वारा प्रतिवेदन प्राप्त होने पर या अन्यथा राष्ट्रपति सन्तुष्ट हों कि विधि एवं व्यवस्था की स्थिति के संबंध में राज्यपाल के लिए विशेष उत्तरदायित्व कीआवश्यकता नहीं है तो वह आदेश द्वारा निर्देश कर सकते हैं कि आदेश में अंकित तिथि से राज्यपाल का उपर्युक्त विशेष दायित्व समाप्त हो जाएगा।


आगे और------