चिकनगुनिया बुखार

आजकल सबसे ज्यादा दो ही बुखारों की चर्चा चल रही है- डेंगू और चिकनगुनिया। दोनों ही बुखार खतरनाक हैं- एक जानलेवा तो दूसरा असहनीय कष्टकारी। इन दोनों बुखारों का कारण एक ही तरह का मच्छर है। एडिस एजिप्ट (Asdes aegypti) तथा एल्बो-पिक्टस (albopictus) नामक इन मच्छरों के काटने पर अल्फा वायरस (Alpha Virus) होने से बुखार होता है।



विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 'व्यक्ति को मच्छर काटने के तीन से सात दिन बाद शरीर इसके लक्षण दिखाई देते हैं। इसका प्रकोप अगस्त, सितम्बर और अक्टूबर में अधिक होता है। आयुर्वेद में इसको सन्धि ज्वर कहा जाता है। लक्षणः मरीज को तेज सिरदर्द, खाँसी जुकाम से प्रारम्भ होकर कभी जी मिचलाना, उबकाई आना, मांसपंसियों में दर्द, जोड़ों में दर्द, थकान होना, त्वचा पर रेसिस, नाक से रक्तस्राव, शरीर टूटना, भूख न लगना तथा लगातार बुखार रहना आदि इसके मुख्य लक्षण हैं।


परीक्षणः इस बुखार का परीक्षण से शेलोजिकल टेस्ट, जैसे- ELISA के द्वारा Antibodies में IgG और IgM तथा RT-PCR ब्लड काउन्ट आदि का पता लगाया जाता है। यदि वायरस से मरीज प्रभावित होता है, तो सकारात्मक रिपोर्ट आती है।


चिकुनगुनिया से बचने के उपाय


यह बुखार मच्छर काटने से होता है, अतः अपने चारों तरफ़ सफ़ाई रखें। कहीं पर पानी जमा न होने दें। कूलर का पानी हर सप्ताह बदलें। शरीर को पूरा ढककर रखें, मच्छरनाशक दवाई छिड़कें, मच्छरदानी लगाकर सोयें। रात्रि में शरीर पर ऑडोमॉस का लेप करके सोयें अथवा व्यवस्था न होने पर सरसों का तेल शरीर में लगाकर सोयें। रात्रि में मच्छरनाशक टिक्की या रीफिल आदि का प्रयोग करें। घर में सुबह-शाम धूप बत्ती जरूर जलायें। घरों में खिड़की में परदे तथा जालियाँ लगायें। मच्छर जहाँ दिखे, उसेतुरन्त नष्ट कर दें।


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