दार्जिलिंग उत्तर-पूर्व पर्वतों की रानी

सिक्किम से सटकर और कंचनजंघा- जैसे सुरम्य पर्वत की गोद में बसी " हुई दार्जिलिंग प्रकृति की लाडली पुत्री है। यहाँ प्रकृति का जैसा सजा-सँवरा अनोखा नजारा देखने को मिलता है, वह विश्व के रंगमंच पर कदाचित् दुर्लभ ही है। वस्तुतः गज़ब का शहर है दार्जिलिंग। प्राकृतिक सौंदर्य का आगार। सैलानियों का स्वर्ग। कालिदास-वर्णित अलकापुरी का ऐश्वर्य। यक्षनगरी की विभूति। प्रातःकालीन कोहराविहीन आकाश में जब सूरज की सुनहली किरणें कंचनजंघा के श्वेत शिखरों को नहलाती हैं, तब उस रंग-बिरंगी इन्द्रधनुषी छटा में वनफूलों की मुस्कान अनुपम शोभा बिखेर देती है। स्वर्गिक सौंदर्य के पिपासु और पारखियों ने विस्मयविमुग्ध होकर इसे पर्वतों की रानी कहकर अपनी भावांजलि अर्पित की तो इसमें आश्चर्य की बात क्या है !!! जिसने एक बार भी टाइगर हिल के प्रातःकालीन सूर्योदय के अलौकिक दृश्य का अवलोकन किया, सदा-सदा के लिए अपने मानस के अन्तलक मेंकैद कर लिया। 



देवाधिदेव हिमालय के मनमोहक राजकुमार कंचनजंघा के भव्य आकर्षण के अतिरिक्त दार्जिलिंग की दिव्य पहचान है छुक-छुक करती सानो रेल तथा काले साँपों की तरह बलखाती नीचे की सड़कें। सम्पूर्ण विश्व में सर्वाधिक ऊँचाई पर विद्यमान है। पर्यटकों को मोहित करने के लिए निर्मल कल-कल मचलती तिस्ता नदी का नौकायन, देश-विदेश के फैशनों की सामग्रियों से सजी-धजी लहराती पंक्तियों में शोभती मालरोड की दुकानें, जड़ी-बूटियों का अम्बार, गरम-गरम पकौड़ियों,जलेबियों और चाय का लुत्फ अविस्मरणीय है।


दार्जिलिंग शहर चार उपमण्डलों में विभक्त है- कर्सियांग, कलिंपोङ, सिलीगुड़ी एवं दार्जिलिंग। कर्सियांग में अच्छे शिक्षा-संस्थानों के साथ-साथ कई मनभावन पर्यटन-स्थल भी हैं। डावहिल का डियर पार्क और स्कूल, वन-विभाग का संग्रहालय, चाय के हरे-भरे बागान एवं टी.वी. टावर दर्शनीय हैं। इस टावर से आपको शहर को देखने का एक अलग ही आनन्द मिलेगा। यहीं पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस अपने अज्ञातवास के दौरान कुछ समय ठहरे थे। तेनजिंग के अनुरोध पर निर्मित हिमालय पर्वतारोहण संस्थान तथा पद्मजा नायडू जुलोजिकल पार्क भी विख्यात है। यहीं गोरखा रंगमंच तथा जापानी बौद्ध विहार एवं बतासिया लूप नामक फ़िल्म शूटिंग-स्थल भी है। स्वामी विवेकानन्द की शिष्या सुश्री भगिनी निवेदिता की समाधि यहाँ दिव्य प्रभाव छोड़ती है।


कलिमपोङ एक वैभवशाली नगर है। यहाँ कलिम नाम का पेड़ बहुतायत से पाया जाता है। आर्किड की सैकड़ों प्रजातियाँ एवं कैक्टस यहाँ का मुख्य आकर्षण है। यहाँ से कुछ किलोमीटर दूर मिरिक की झीलों में नौकायन का उन्माद तथा झील के ऊपर बने पुल पर टहलना अपने में एक सुखद अनुभव है। लगभग 4 हज़ार फीट की ऊँचाई पर स्थित यह शहर अपनी चमकीली धूप के कारण पहाड़ी अंचलों में अद्वितीय है। यहाँ के हस्तशिल्प, गुंबा, दूरबीनदाड़ा, सीढ़ीनुमा खेत एवं मनमोहक बाग विख्यात हैं। सिलीगुड़ी दार्जिलिंग का आधार स्टेशन है। इस अंतिम पड़ाव में आप ‘हांगकांग मार्केट के लोभ का संवरण नहीं कर पाएँगे। यहाँ सभी प्रकार के सामान मिलते हैं। वस्तुतः दार्जिलिंग का विलक्षण प्रभाव मन पर चिरस्थायी छाप छोड़ जाता है।


आगे और-----