मणिपुर महाभारत से जुड़ा हुआ है इतिहास

मणिपुर का इतिहास महाभारत के साथ जुड़ा है। महाभारत में उल्लेख है। कि मणिपुर की राजकुमारी का विवाह अर्जुन से हुआ था। उनका एक पुत्र बभ्रुवाहन महापराक्रमी था। मणिपुर को स्थानीय भाषा में कांगलैपाक' और ‘सनालैबाक' भी बोलते हैं। कैलासवासी शिव-पार्वती ने रासलीला करने के उद्देश्य से पृथ्वी पर उपयुक्त स्थान ढूँढ़ा तो चारों ओरपहाड़ों से घिरा और पानी से घिरा कटोरानुमा जलाशय दिखा। शिव ने अपने त्रिशूल से एक ओर पहाड़ को छेदकर सारा पानी निकाल दिया। उस एकान्त स्थान में शिव-पार्वती का रास नृत्य हुआ। उस विन्यास में माँ पार्वती के पैरों के नूपुर और उसके अंदर की मणियाँ चारों ओर बिखर गयीं। तब से उस प्रदेश का नाम मणिपुर पड़ा।



बभ्रुवाहन के बाद उनके वंश के 104 राजाओं के नाम मणिपुर के प्राचीन साहित्य में मिलते हैं। मणिपुर के उत्तर में नागालैण्ड, दक्षिण में मिजोरम, पश्चिम में असम और पूर्व में म्यांमार है। मणिपुर में मैतेई, नागा, कुकी और पाडल रहते हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया का भारत से संबंध जोड़नेवाला प्रदेश मणिपुर है। 2,500 वर्ष पूर्व से ही मणिपुर का दक्षिण-पूर्व एशिया से आर्थिक संबंध जुड़ा था। लोगों को संस्कृति और धर्म का आदान-प्रदान भी यहाँ से होता था। अभी भी मणिपुर के लोगों का म्यांमार, थाईलैण्ड, कोरिया आदि देशों से आवागमन बहुत अधिक है। वैदिक ग्रंथों में मणिपुर के लोगों को गंधर्व माना गया था जो नृत्य-गान में निपुण थे। मध्यकालीन भोजपत्रों से पता चलता है कि मणिपुर के राजपरिवारों के वैवाहिक संबंध असम, बंगाल, उत्तरप्रदेश और दक्षिण के राजवंशों के साथ होते थे।


17वीं शती में मणिपुर के राजा मेइदिंगुखगेम्बा के शासनकाल में यहाँ वर्तमान बांग्लादेश से मुसलमान आये। मणिपुर और म्यांमार के बीच अविराम संघर्ष के चलते मणिपुर में सांस्कृतिक-धार्मिक जनसंख्या का असंतुलन तथा सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल हुआ।


एक रियासत (राज्य) का । दर्जा कायम रखते हुए मणिपुर को । अंग्रेजों ने अपने अधीन ले लिया। स्वतंत्रता के बाद 1949 में मणिपुर के राजा बोधचन्द्र महाराज को शिलांग बुलाकर भारत में विलय-संधि पर हस्ताक्षर करवाया। अक्टूबर 1949 में मणिपुर भारत का अंतर्भाग बन गया। 1956 में यह केन्द्रशासित प्रदेश घोषित किया गया। 1972 में मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ।


आजादी से पहले भारत में 500 से अधिक छोटी-बड़ी रियासतें थीं। लेकिन उन सभी का भारतीय गणतंत्र में विलय हो गया। कुछ पूर्ण सहमति से, कुछ की सहमति बनाकर, कुछ को विरोध के बावजूद राष्ट्र की अखण्डता एवं दृढ़ता को दृष्टि में रखते हुए सभी का विलय करा दिया गया। लेकिन मणिपुर के कुछ लोग इसके पक्ष में नहीं थे। उनके दिलों में ‘मणिपुर एक स्वतंत्र राष्ट्र हैऐसा प्रगाढ़ संकल्प था। ऐसे लोगों ने 1964 में यू.एन.एल.एफ. संगठन बनाया। ये विलीनीकरण का विरोध करते हुए अलग राष्ट्र की मांग करने लगे। पाँच दशक बीत गए। अलगाववादी संगठन के नाम बदलते गए, नेता बदलते गए, लड़ते-लड़ते कुछ लोग इस दुनिया को छोड़कर चले गए। इस सुंदर धरती को लहूलुहान करके छोड़ दिया। इस गंधर्व भूमि को ‘किलिंग फील्ड्स' बना दिया। लोग आतंक के साये में जी रहे हैं। पूरा देश और दुनिया विकास की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए आसमान को छू रही है, लेकिन मणिपुर भय और अशान्ति में जी रहा है। नागालैण्ड ने संघर्ष का पथ छोड़ दिया है। मिजोरम ने शान्ति समझौता कर लिया है। लेकिन मणिपुर दहक रहा है। दिन-रात किसी-न-किसी मुद्दे को बहाना बनाकर जनभावनाएँ भड काई जाती हैं।


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