मेघालय यात्रा बादलों के बीच की

आसमान में काले बादल, नीले बादल, रंगीन बादल, सफेद बादल चित्र-विचित्र आकृतियों को बनाते हुए कभी स्थिर, कभी चलते और कभी दौड़ते हैं- यही है न बादलों की दुनिया ! बादलों को छूने की इच्छा बचपन में कई बार हुई होगी। कल्पना कीजिए- आप पहाड़ों की चोटियों के बीच में खड़े हों और बादल आपको छूकर आर-पार चले जा रहे हैं और आपका तन-मन ठण्ढक से आह्लादित हो रहा हो। यह कल्पना साकार होती है- मेघालय की पहाड़ियों पर। शिलांग मेघालय की राजधानी है। गुवाहाटी से साढ़े तीन-चार घंटे लगते हैं- शिलांग पहुचने के लिए कैब और बस से जाया जा सकता है। ब्रिटिश काल में (पूर्वोत्तर भारत) की राजधानी शिलांग रही। ठंढी जगह होने के कारण अंग्रेजों ने वहाँ अपना केन्द्र बनाया।



इस वजह से यहाँ काफी तरक्की हुई है। शिलांग के अलावा चेरापूंजी एक स्थान है। जो विश्व में अत्यधिक वर्षा होने के कारण प्रसिद्ध है। पूर्वांचल के सभी राज्यों के लोग पढ़ाई के लिए शिलांग जाते रहे हैं।


‘मेघालय' नाम भी कितना सुंदर है। पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों के नाम कितने अच्छे लगते हैं- अरुणाचलप्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा और मेघालय, एक अलग पहचान बनाए हुए हैं। राज्य बनने से पहले खासी हिल्स, गारो हिल्स और जयंतिया हिल्स होते थे। यहाँ की प्रमुख जनजातियों के वासस्थान होने के कारण इन पहाड़ों को उनके नाम से जाना जाता है। बहुत समय तक शिलांग पूरे क्षेत्र में सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र रहा। नॉर्थ ईस्ट हिल यूनिवर्सिटी शिलांग में स्थित है। पूर्वोत्तर में 8वें राज्य सिक्किम के जुड़ने से पहले यह भूभाग सेवन सिस्टर्स' कहलाता था- सात राज्य होते थे। मेघालय की राजधानी शिलांग में डॉन बास्को’ और ‘लिटिल फ्लावर्स' स्कूल में सभी राज्यों के बच्चे आकर पढ़ते थे। अब अन्य राज्यों में भी अच्छे-अच्छे विद्यालय खुलने लगे। पूर्वांचल के अन्य राज्यों की तरह मेघालय भी कृषिप्रधान प्रदेश है। 80 प्रतिशत लोग कृषि पर आश्रित हैं। धान की खेती के अलावा फल एवं मसाले अच्छी मात्रा में उगाए जाते हैं। अनानास, संतरे, नींबू, अमरूद, लीची, केले और कटहल बड़ी तादाद में पैदा किए जाते हैं। मेघालय का अनानास बहुत ही स्वादिष्ट होता है। यहाँ आलू भी बहुत होते हैं। हल्दी, अदरक, काली मिर्च, सुपारी, तेजपत्ता, पानपत्ता-जैसी व्यापारिक फसलें यहाँ के लोगों की आमदनी का मुख्य स्रोत हैं। हल्दी में पाए जानेवाले करकुमिन रसायन से अनेक असाध्य व्याधियों का इलाज़ होता है। विश्व में सर्वाधिक करकुमिन की मात्रा मेघालय की हल्दी में है।


विश्व में सर्वाधिक वर्षा मेघालय की चेरापूंजी में होती है- 12000 मि.मी.। झूमखेती यहाँ की कृषि-पद्धति है। जंगल को जलाना, जड़ों को उखाड़कर जमीन खोदकर खेती करना, चार-पाँच साल के बाद दूसरी जगह चले जाना- यह झूम खेती कहलाती है। खासी जनजाति की प्राचीन धार्मिक कहानियों के अनुसार देवीदेवताओं द्वारा उन्हें यह आदेश दिया गया है। मेघालय में छोटी-छोटी बरसाती नदियाँ बहती हैं जिसके कारण अनेक सुंदर दर्शनीय जलप्रपात भी हैं। मध्य और पूर्व पठार में खी, डिगारू उनियम, किनशी, मॉपा, उम्नगोट, मिन्नू नदियाँ हैं। गारो पहाड़ियों से दारिंग, सांडा, बांद्रा, भोगाय, दारेंग, सिमसाङ्, निताय, भूपाय नदियाँ बहती हैं। जैसे भारत के कई राज्यों में वनों को देवी-देवताओं का वासस्थान ‘पवित्र वन' माना जाता है, वैसे ही मेघालय में धार्मिक वन हैं। मेघालय के जंगलों में कीटभक्षक पौधे पाए जाते हैं।


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