मिजोरम विकास की दौड़ में अग्रणी प्रदेश

मिजो बेम्बू डान्स टीवी चैनलों एवं अन्य सामाजिक उत्सवों में कभी-कभी देखने को मिलता है। पुरुष लोग अपने दोनों हाथों में एक-एक लंबे बांस पकड़कर जमीन पर उकडू बैठते हैं और समान समयांतराल में बांसों को जोड़ना और खोलना- यह उनका काम है। जुड़ते- खुलते बांसों के बीच सुंदर कपड़े पहने और स्कार्फ या बांस के मुकुट से सजी हुई युवतियाँ लयबद्ध रीति से अपने पैरों को बचाती हुई कूदती हैं। नृत्य को देखने से हीमजा आता है। बिना थके और बिना रुके विभिन्न दिशाओं में विन्यास करती हुई थिरकनेवाली मिजो-युवतियों का नृत्य- कौशल देखकर लोग दंग रह जाते हैं। इसे मिजो भाषा में 'चेरॉव' कहते हैं। लोगों का मानना है कि चेरॉव पहली शती ईसवी में शुरू हुआ। उस समय मिजो लोग चीन के युनान प्रांत में रहते थे। 13वीं शताब्दी में ये लोग चिन हिल्स आकर बसे। धीरे-धीरे भारत की ओर बढ़कर मिजोरम की पहाड़ियों में आए। दक्षिण-पूर्व एशिया में रहनेवाली जनजातियों के लोगों में भी ऐसे नृत्य पाए जाते हैं। इसमें भाग लेनेवाली लड़कियों का पहनावा है पुआनचेई, कॉबर्वेई, वाकिरिया और थिहना। यह चेरॉव नृत्य आजकल सभी सामाजिक संदर्भो में प्रदर्शित किया जा रहा है। अब यह एक मुख्य आकर्षण बन गया है। ‘खुल्लम' नृत्य अतिथियों का नृत्य है जो खुआचानि पर दर्शाते हैं। समाज में प्रतिष्ठा और स्वर्ग में स्थान पाने के लिए योग छुआह उपाधि प्राप्त करना आवश्यक है। दो तरीकों से यह उपाधि प्राप्त की जा सकती है। पहला तरीका है- युद्ध में पराक्रम प्रदर्शित करना या शिकार में जंगली सुअर, भेड़िए, काला सांप आदि जानवरों को अधिक संख्या में मारना। दूसरा तरीका है-नृत्य या शारीरिक विन्यासों के प्रदर्शन से। दूसरी पद्धति को खुआङ्चावि बोलते हैं। खुआचावि में दूर-दूर के गाँवों से लोग आते हैं। उनके द्वारा किए जानेवाले नृत्य को खुल्लम कहते हैं। पारंपरिक रंगबिरंगे वस्त्र ‘पुआनदुम' को कंधों पर लेकर लहराते हुए लोग ड्रम बीट पर बड़ी संख्या में नाचते हैं जो बहुत ही आकर्षक होता है।



कई इतिहासकारों का मानना है कि पूर्वोत्तर के अन्य भागों जैसे ही मिजो लोग भी मंगोलियाई समूह के हैं जो चीन से भारत में आकर बसे। हो सकता है कि ये लोग चीन में यालुंग नदी के किनारे शिनलुङ् या लुशान के रहनेवाले हों। 16वीं शताब्दी के मध्य में ये शान प्रांत में आए और वहाँ से कानो घाटी में पहुँचे। भारत में सर्वप्रथम कदम रखनेवाले मिजो को कुकी नाम से जाना जाता है। दूसरा समूह ‘नव कुकी' । कहलाने लगा। सबसे अंत में लुशाई आये।


18वीं और 19वीं शताब्दी का मिजो- इतिहास आपसी संघर्ष, अस्तित्व और वर्चस्व की लड़ाई का था। अंत में 1895 में मिजो हिल्स ब्रिटिश भारत का हिस्सा बन गया। 1898 में उत्तर और दक्षिण का पर्वतीय क्षेत्र लुशाई हिल्स जिला बना जिसका मुख्यालय ऐजाल था। असम के जनजातीय बहुल इलाकों में ब्रिटिश शासन को मजबूत करने का काम 1919 में शुरू हो गया। लुशाई हिल्स को ‘पिछड़ा क्षेत्र में शामिल किया गया। 1935 में असम के जनजातीय जिलों को ‘वर्जित क्षेत्र घोषित किया गया जिसमें लुशाई हिल्स भी शामिल था। धीरे-धीरे मिजो लोगों में राजनैतिक चेतना जागृत होने लगी। 09 अप्रैल, 1946 को मिजो कॉमन पीपुल्स यूनियन की स्थापना की गई। बाद में इसका नाम मिजो यूनियन में बदला गया। भारत की संविधान सभा में । गोपीनाथ बोरदोलाई के नेतृत्व में एक उप समिति का गठन किया और पूर्वोत्तर के जनजातीय इलाकों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया। इस बीच मिजो हिल्स में एक नयी पार्टी का उद्भव हुआयूनाइटेड मिजो फ्रीडम ऑर्गनाइजेशन। इस पार्टी ने लुशाई हिल्स को बर्मा में करने की मांग की। बोरदोलाई समिति के सुझावों के मद्देनजर 1952 में लुशाई हिल्स ऑटोनॉमस डिस्ट्रिकट काउंसिल बनाई गई और संविधान की छठी अनुसूची में सम्मिलित की गयी। 1972 तक मिजोरम असम का एक ज़िला था। 1972 में केन्द्रशासित प्रदेश बना और 20 फरवरी, 1987 को एक पूर्ण राज्य बन गया।


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