नागालैण्ड शान्ति के साथ विकास के पथ पर अग्रसर

भारत का 16वाँ राज्य है नागालैण्ड। कभी ऐसा न सोचें कि इंग्लैण्ड, आइलैण्ड, स्कालैण्ड, हॉलैण्ड, पोलैण्ड जैसा कोई लैण्ड होगा नागालैण्ड। भारत के अन्य राज्यों से हटकर इस प्रदेश के नाम के साथ 'लैण्ड' लगा है। नागाओं के लिए यह अपना ‘होम लैण्ड' है। जैसेउत्तर-पूर्वांचल का रामायण और महाभारत से गहरा संबंध रहा, इसमें नागालैण्ड भी अछूता नहीं है। अर्जुन के एक वर्ष का देशाटन इसी क्षेत्र में हुआ। मणिपुर में चित्रांगदा से विवाह किया तो नागाभूमि में उलूपि से ब्याह रचाया। हिडिम्बा के वंशजों ने ‘हिडिम्बापुर' को राजधानी बनाकर राज्य किया। हिडिम्बा की संतान डिम्बासा (डिमासा) काछारी असम और नागालैण्ड में रहते हैं। हिडिम्बापुर कालांतर में डिमापुर बना। डिमापुर आजकल नागालैण्ड में है। और नागालैण्ड का एकमात्र रेलवे स्टेशन है। डिमापुर में काछारी-राजाओं का किला आज भी विद्यमान है जो खण्डहर के रूप में दर्शनीय है। किले के स्तंभ के नीचे में जंगरहित लोहे की सरिया प्रयोग की गई है। यह तकनीक दिल्ली के महरौली-स्थित लौह स्तंभ की तकनीक जैसी ही है।



अंग्रेजों ने सदियों तक भारत पर अपना आधिपत्य कायम करने के लिए देश को अंदर से खोखला करने की योजना बनाई थी। समाज को अंदर से तोड़ा। विन्ध्य पर्वत के उत्तर के निवासियों को 'आर्य' और दक्षिण में रहनेवालों को ‘द्रविड़' बताया। जंगलों में रहनेवालों को ‘आदिवासी' करार दिया और पूर्वोत्तरवासियों को मंगोलियाई बताया। पूर्वोत्तर के वन-पर्वतों में वास करनेवाले रामायण-महाभारतकालीन राजवंशियों की संतान को मंगोलियाई नस्ल का बताकर राष्ट्रीय एकात्म चेतना पर कुठाराघात किया। डेढ़ सौ सालों के निरंतर साजिश का परिणाम यह हुआ कि पूर्वोत्तर की जनजातियाँ स्वयं को भारत की मुख्यधारा से अलग समझने लगीं। शिक्षा और स्वास्थ्यसेवाओं की आड़ में लोगों का मतांतरण हुआ और अंततः मन परिवर्तन। वे सदा के लिए भारतभूमि और भारतवासियों से नफ़रत करने लगे। विदेशी ताकतों के हाथ के खिलौने बनकर देश को तोड़ने के लिए तैयार हो गए। देश जब आज़ाद हुआ, तब पूर्वांचल के मिजो और नागा स्वतंत्र राष्ट्र की मांग को लेकर भारत सरकार के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष करते रहे। सरदार वल्लभभाई पटेल की सूझबूझ और सख्त रवैये ने देश को बचाया। उत्तर-पूर्वांचल भारत का हिस्सा बनकर रहा।


लेकिन नागालैण्ड के लोगों की भावनाओं को भारत के खिलाफ भड़काया जाना बन्द नहीं हुआ। भूमिगत आतंकवादियों को विदेशी चर्च और पैसे तथा चीन और बर्मा से भरपूर मात्रा में आधुनिक हथियार मिलते रहे। बर्मा और बांग्लादेश में आतंकवादियों के प्रशिक्षण शिविर चलते रहे। स्वतंत्र भारत की सरकार ने इस समस्या पर गंभीरता से विचार नहीं किया। समस्या पनपती गई और जटिल बनती गयी। इसका नतीजा नागालैण्डवासियों को भुगतना पड़ा। पाँच दशकों तक नागालैण्ड अशांत रहा। स्वतंत्र- सार्वभौमिक नागा राष्ट्र के लिए सशस्त्र संघर्ष में भारतीय सेना के जवान मारे गए। सेना की कार्रवाई में स्थानीय लोग भी मरे।


नागालैण्ड के सीमाओं के बाहर असम, अरुणाचलप्रदेश, मणिपुर में भी नागा जनजाति के लोग रहते हैं। बृहत् नागालैण्ड-नागालिम' के लिए भी मांग हुई। नागालैण्ड और नागा आबादीवाले अन्य राज्यों में इलाकों को इस नक्शे में शामिल किया गया। लंबे समय तक खूनी लड़ाई के बाद भारत सरकार और नागा-संगठनों के बीच ‘युद्धविराम' हुआ। शांति के कारण नागालैण्ड विकास कपथ पर अग्रसर हो रहा है।


उत्तर-पूर्वांचल, विशेषकर ‘नागा' लोगों के प्रति सरकार और समाज का दृष्टिकोण बदलना चाहिए। यहाँ की नयी पीढ़ी शांति और विकास चाहती है। धीरे-धीरे देश के अन्य भागों में नागा युवकयुवती काम की तलाश में जा रहे हैं। आम लोग उत्तरपूर्वांचलवासियों के बारे में हलकी टिप्पणियाँ कर जाते हैं। इससे आहत होकर असमिया, नागा, मणिपुरी, अरुणाचलवासी, त्रिपुरी आदि-आदि लोगों के मन में भारत और भारतवासियों के प्रति नफ़रत की भावना पैदा होती है। कभी उनकी शक्ल-सूरत को देखकर, बोली-भाषा सुनकर, खान-पान के बारे में बिना सोचेसमझे उनका दिल दुःखानेवाली बातें करते हैं। समय बदल रहा है। समय के अनुसार हमें बदलना होगा। देश की अखण्डता, सुरक्षा, विकास को दृष्टि में रखते हुए उत्तरपूर्वांचल और वहाँ के लोगों से नाता जोड़ना चाहिए। अतीत में हमारे द्वारा किए गए गलत व्यवहार के कारण ईशान्य भारत में अलगाववाद फैल रहा है। देश का प्रत्येक व्यक्ति अपना नजरिया बदले और देश के अंदर कोई और ‘लैण्ड न बनने दे।


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