सतरंगी इन्द्रधनुष भारत का उत्तर-पूर्वांचले

हिमालय  की ऊँची-ऊँची बर्फीली चोटियाँ, उन चोटियों से निःसृत होकर तीव्र वेग से ब्रह्मपुत्र नद की ओर कूदती नदियाँ, बादलों के बीच बसी बस्तियाँ, असंख्य पशु-पक्षी, पेड़-पौधों से भरे घने जंगल, कोसों दूर तक फैले चाय- बगान, रंग-बिरंगी वेश-भूषा में सज्जित लोग, चित्र-विचित्र बोली-भाषाएँ, पारंपरिक परिधान में वाद्ययंत्रों की धुन पर थिरकते युवा- ऐसा धरती पर स्वर्ग-भारत का ईशान्य क्षेत्र। इस पूर्वोत्तर दिशा में प्रवेश करने का सड़क व रेल मार्ग है- सिलिगुड़ी। यह पश्चिम बंगाल में है। यह एक बहुत ही संकरा गलियारा है। ऊपर नेपाल और नीचे बांग्लादेश की सीमाओं से दबे हुआ इस सामरिक स्थान को ‘चिकन नेक' अर्थात् मुर्गे का गला कहते हैं। सिलिगुड़ी से आगे श्रीरामपुर रेलवे स्टेशन से असम की सीमा प्रारंभ होती है। भारत का पूर्वोत्तर भाग, जिसका क्षेत्रफल देश के कुल क्षेत्रफल का 8 प्रतिशत है, जिसकी 98 प्रतिशत भूमि नेपाल, भूटान, चीन, म्यांमार और बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से सटी है- अत्यंत सामरिक महत्त्व एवं अति संवेदनशील क्षेत्र में 8 राज्य हैं। जिनमें से 5 पूर्णतः पर्वतीय व जनजातीय हैं।



अरुणाचलप्रदेश, नागालैण्ड, मिजोरम, मेघालय और सिक्किम में कोई समतल भूमि नहीं है। जबकि असम, त्रिपुरा और मणिपुर में मैदान और पहाड़- दोनों हैं। साल में लगभग छः महीने धुआँधार वर्षा के कारण सर्वत्र हरियाली दिखती है। पहाड़ों में झूम खेती और घाटी में पानी में होनेवाली खेती की जाती है। धान की खेती, सरसों, सब्जियाँ मुख्य रूप से उगाते हैं। जमीन बहुत उपजाऊ होने के कारण फसलें अच्छी हो जाती हैं। अदरक, हल्दी, इलायचीजैसे मसाले; अनानास, किवी, संतरे-जैसे फलों की खेती के लिए जमीन अत्यंत उपजाऊ है। केले, नारियल और गन्ना भी खूब होता है। अधिकतर लोग मांसाहारी होने के कारण मछलीपालन, मुर्गीपालन, बकरी, सूअर आदि का पालन सर्वत्र होता है। साधारण भोजन के लिए आवश्यक खाद्य-सामग्री के लिए पूर्वांचल क्षेत्र को परावलंबी होने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।


रामायण और महाभारत काल के इतिहास से यहाँ का समाज जुड़ा हुआ है। सीता की खोज में वानरराज सुग्रीव ने अपनी सेना को चारों दिशाओं में भेजा। एक टुकड़ी जो पूर्वदिशा में गयी, वह सुदूर पूर्वोत्तर में भी सीता को खोजने में लगी। लेकिन जब उसे सीता नहीं मिली तो वापस नहीं लौटी और वहीं बस गयी। ये किष्किन्धावासी कावेरी नदी के किनारे रहे थे। जब वे असम में छोटी-छोटी पहाड़ियों पर । रहने लगे तो उनकी पहचान ‘कावरी' शब्द से होती थी। कावरी' शब्द का ही रूपान्तरण कारबी' हुआ। कारबी आंगलांग में रहनेवाले कारबी जनजाति के लोग अपनी भाषा में रामायण गाते हैं। मिजो रामायण के अनुसार राम ने उन्हें धान की खेती सिखाई। कई साल पहले उत्तरपूर्वांचल की जनजातियों में रामकथा नामक शीर्षक पर गुवाहाटी में आयोजित संगोष्ठी में आइजाल के एक मिजो प्रोफेसर ने इस तथ्य को प्रस्तुत किया। आज की महानगरी गुवाहाटी नरकासुर की राजधानी प्राग्ज्योतिषपुर थी। असम का तेजपुर नगर शोणितपुर के नाम से भी जाना जाता है। यह बाणासुर की राजधानी रही। श्रीकृष्ण का पौत्र एवं प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध का विवाह बाणासुर की पुत्री उषा से हुआ। स्वयं श्रीकृष्ण ने अरुणाचलप्रदेश की ईदुमिश्मि जनजाति की राजकन्या रुक्मिणी का हरण किया। महाबली भीम ने डिमासा कारबारी राजा की बेटी हिडिम्बा से विवाह किया और उनका पुत्र महापराक्रमी घटोत्कच और उससे भी बड़ा योद्धा उनका पौत्र बर्बरीक हुए। अर्जुन ने नागकन्या उलूपि, मेघालय की प्रमीला और मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा से विवाह किया। अर्जुन और चित्रांगदा के पुत्र प्रतापी बभ्रुवाहन ने स्वयं अपने पिता को ही परास्त किया। इक्कीस बार क्षत्रियों का संहार करनेवाले परशुराम ने अरुणाचलप्रदेश के एक स्थान पर अपना परशु (कुल्हाड़ी) धोया था। वही स्थान ‘परशुराम कुण्ड' के नाम से प्रसिद्ध है। घटोत्कच से लेकर 107 डिमासा राजाओं के नाम और बभ्रुवाहन से लेकर 104 मणिपुर राजाओं के नाम वंशावली में अंकित हैं। गुवाहटी में माँ कामाख्या का मन्दिर है जो 52 शक्तिपीठों में परिगणित है। असम का शिवसागर, अरुणाचल का तवांग मोनेस्ट्री, जीरो का 20 फुट ऊँचा शिवलिंग, लीकाबाली में मालिनीथान, तेजु में परशुराम कुण्ड, डिमासा-राजाओं की राजाधनी नागालैण्ड का डिमापुर (हिडिम्बापुर), मणिपुर के इम्फाल में श्रीगोविन्द मन्दिर, त्रिपुरा में माता त्रिपुरसुन्दरी- ये सभी स्थान पुराण, इतिहास एवं धार्मिक साहित्य के उल्लेखों की पुष्टि करते हैं।


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