त्रिपुरी हिन्दुत्व

त्रिपुरा भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र कर वह राज्य है जिसका तीन-चौथाई क्षेत्र बांग्लादेश से घिरा हुआ है। राज्यकीय ऐतिहासिक राजवंशावली के अनुसार यहाँ द्वापरयुग से अब तक 185 राजाओं ने राज्य किया। प्राचीन काल से ही त्रिपुरावासी यहाँ के वासी हैं जिसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। उनकी अपनी परंपराएँ व धार्मिक विश्वास हैं जो परंपरागत हिंदुत्व से भिन्न दिखती हैं। इसी कारण भारत को तोड़नेवाली शक्तियाँ पढ़े- लिखे त्रिपुरावासियों के मन में यह विचार भरती रही कि वे हिंदू नहीं, बल्कि प्रकृति पूजक हैं। उनका धर्म अलग है। तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवियों के बहकावे में आकर कहने वे मानने लगे हैं। कि वे हिंदू नहीं। परिणाम यह हुआ है कि सेक्युलर शिक्षा-पद्धति द्वारा शिक्षित लोग भ्रमित होकर विदेशी मतावलंबियों के षड्यंत्रों का शिकार हो मत-परिवर्तन का मार्ग चुन लेते हैं। तथ्य यह है कि त्रिपुरावासियों का इतिहास लिखनेवालों ने स्वीकार किया है कि त्रिपुरी हिंदू ही हैं। यहाँ हम त्रिपुरावासियों के सिद्धांतों, धार्मिक रीति-रिवाजों तथ रहन-सहन के बारे में वे तथ्य रखेंगा जिनसे सिद्ध होगा कि वे सब हिंदुत्व की मुख्य जीवनधारा से ही एकरस हैं।



बहुदेववादी विश्वास


त्रिपुरी लोग अनेक देवी-देवताओं को मानते हैं। गोरिया, कालिया, थुमनैरोक, बोनीरोक, आदि देवता हैं तथा मैलुमा, खुलूमा, नोकसूमा आदि देवियों के नाम हैं। वास्तव में देवी-देवताओं की संख्या इतनी अधिक है कि सामान्य व्यक्ति गिन भी नहीं सकता। बहुदेववादी दृष्टिकोण तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं के दृष्टिकोण से पूरी तरह से मिलता-जुलता है।


स्वशक्तिमान परमात्मा में विश्वास


बहुदेववादी होने के साथ ही त्रिपुरी लोग ‘सुबराय’ सा 'शिव' के रूप सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, सर्वज्ञ परमात्मा में विश्वास करते हैं। 'शिव' ही परमात्मा हैं जिन्होंने सारी सृष्टि की रचना की है। अन्य सभी देवी-देवता उनके अधीनस्थ हैं, इसीलिए उन्हें ‘मुत्ताई कोटोर' या ‘महादेव' कहते हैं। संग्रगमा देवी ‘सुबराय' अथवा 'शिव' की पत्नी है। अब हैं। ‘सर्वशक्तिमान' महादेव की संगिनी हैं तथा सदा उनके साथ ही रहती हैं। वह पृथिवी पर 'भगवती देवी हैं। जल में ‘त्विसंग्रगमा' अर्थात् ‘जल की शक्ति के रूप में उपस्थित हैं।


संग्रोगमा के अनेक रूप व नाम हैं। वे हचुकमा' या पार्वती, भद्रकाली, रक्षाकाली, निशिकाली आदि अनेक रूप व नामों से जानी जाती हैं। उल्लेखनीय है कि जिस मंदिर में 'शिव' की पत्थर की मूर्ति होगी, वहाँ साथ में शक्ति की प्रतीक माँ की मूर्ति भी अवश्य होगी।


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