उत्तर-पूर्वांचल : जैसा मैंने देखा

सेवन सिस्टर्स के नाम से विख्यात देश के उत्तर-पूर्वी भाग के सात राज्यों के नाम भी हम भारतवासियों को ठीक से याद न होना विडम्बना ही है। इन राज्यों की भौगोलिक स्थिति के बारे में वहाँ जाए बिना ठीक सेकल्पना नहीं की जा सकती। इन राज्यों की सीमाएँ भूटान, बांग्लादेश, चीन और सिक्किम, म्यांमार तथा पश्चिम बंगाल से मिलती है। प्रदेश पहाड़ी तथा दुर्गम होने से पिछड़ा हुआ है। हर प्रांत में अलग-अलग जनजातियों का बाहुल्य है। सभी जनजातियों के पहनावे, रीति-रिवाज, खानपान में नितांत भिन्नता है। हाँ, एक बात ज़रूर सामान्य है। देश की मुख्य भूमि से दूरी, दूरस्थ व दुर्गम क्षेत्र होने के कारण सम्पर्क का अभाव और विकास-कार्यों के समुचित विस्तार न होने के कारण ईसाइयत का बहुत ज्यादा प्रभाव, असम को छोड़कर शेष राज्यों में 50 प्रतिशत तथा कुछ जनजातियों में इससे से भी अधिक लोगों का धर्मातरण किया जा चुका है। सड़क, बिजली, पानी जैसी आधारभूत संरचना एवं शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार के बहुत कमजोर हालात हैं। ऊपर-ऊपर से शहरी क्षेत्रों में सब ठीक दिखता है, पर ग्रामीण क्षेत्रों में जाने और गहराई से देखने पर स्थिति अनुमान से भी ज्यादा खराब है।



इतनी खराब स्थिति होने के बावजूद पूरे देश का ध्यान इस समस्या की ओर न के बराबर है। आर्यसमाज, वनवासी कल्याण परिषद्, विवेकानन्द केन्द्र, नवटर भाई ठक्करजैसे गाँधीवादी, डी.ए.वी. विद्यालय समिति, दयानन्द सेवाश्रम संघ तथा विश्व हिंदू परिषद् के अनेक पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं को अनेक बार अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में कार्य करना पड़ता है। चर्च द्वारा पिछली एक शताब्दियों से भी अधिक सालों से शिक्षा, स्वास्थ्य की सुविधा देने के बदले जनजातियों से उनके पूर्वजों का धर्म-परिवर्तन करने का कुचक्र अभी भी चल रहा है। विकास की मूलभूत सुविधाओं का अभाव इन्हें तेज गति से भारत से दूर कर रहा है अलगाववादियों और आतंकवादियों के प्रभाव को बढ़ाने में यह स्थिति खाद का काम कर रही है।


गुवाहाटी में कामाख्या शक्तिपीठ और कुछ अन्य तीर्थस्थानों को देखने के बाद मैं पूर्व-परिचित नागालैण्ड दयानन्द सेवाश्रम संघ के कार्यकर्ता डॉक्टर शिरोमणि शास्त्री के निमंत्रण पर गुवाहाटी से रेल द्वारा दीमापुर पहुँचा। दीमापुर नागालैण्ड-असम की सीमा पर नागालैण्ड का सबसे बड़ा व्यवसाई-केंद्र है। राजमार्ग पर ही डी.ए.वी. विद्यालय दीमापुर है। छोटा-सा विद्यालय, दो कमरों का छात्रावास यज्ञशाला, भोजनशाला तथा कार्यकर्ता-आवास हैं। भोजन व विश्राम के पश्चात् हम नागालैण्ड के ग्रामीण क्षेत्र में निकले, धनसरी नदी के किनारे चारों और हरियाली। एक आश्रम में 10 बालक, एक शास्त्री गुरुकुल ब्रह्मचारी मिले। गुरुकुल काँगड़ी की चाय से स्वागत हुआ। एम.डी.एच. के महाशय धर्मपाल गुलाटी के सहयोग से यहाँ एक विशाल आवासीय विद्यालय का निर्माण हो रहा है। बच्चों ने गायत्री मंत्र, प्रार्थना मंत्र सुनाये। 'वन्देमातरम्' और 'कृण्वन्तो विश्वमार्यम्' का उद्घोष सबने किया।


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