ऐतिहासिक नगरों की भूमिका

तर्क, नवीनता और विज्ञान के युग में जनसामान्य पुरानी बातों को महत्त्वहीन समझने लगा है, चाहे वह रोग-निदान प्रणाली हो, चाहे व्यापारपद्धति हो, चाहे सामाजिक-पारिवारिक साहचर्य विज्ञान हो या वास्तुकला हो। जबकि सच्चाई यह है कि प्राचीन काल में जो भी कार्य समाज के बड़े हिस्से पर असरकारी होते थे उन्हें गहन मंथन व तर्कोचित तरीके से संपादित किया जाता था। हाँ यह ज़रूर सत्य है कि वह सब उस समय की परिस्थिति, आवश्यकता, सामाजिक रीति-रिवाज व रहन-सहन को पोषित करनेवाला होता था। प्राचीन काल में अनेक नियमों की रचना की गयी जो उन परिस्थितियों के अनुसार थी। 



यदि बात वास्तुकला से जुड़े विषयों की कि जाय, तो वैदिक-पौराणिक ग्रंथों में लंका, अयोध्या, हस्तिनापुर, शृंगवेरपुर, इन्द्रप्रस्थ, मथुरा आदि नगरों का उल्लेख मिलता है तथा काशी, पाटलिपुत्र नामक नगरों के स्थापत्य की जानकारी विभिन्न देशी-विदेशी पर्यटकों के संस्मरणों से प्राप्त होती है। हड़प्पा सभ्यता के मोहनजोदड़ो नगर की योजना को इसकी खुदाई से जाना गया।


उक्त स्रोतों से पता चलता है कि प्राचीन काल में नगरों को बहुत सोच-विचारकर तथा विधिवत् बसाया जाता था। उस समय के नियोजन में अनेक बातें देखने को मिलती हैं।


हड़प्पा सभ्यता के मोहेनजोदड़ो नगर की योजना (उत्खनन से प्राप्त आँकड़ों एवं तथ्यों के आधार पर)


समय काल लगभग 3000 ईसा


पूर्व स्थान : पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के पास


नगर का चयन ऊंची भूमि पर किया गया था ताकि बाढ़ तथा वर्षा के पानी का भरना न हो।


मुख्य नगर के चारों तरफ ऊँची दीवार थी जिससे चोरों तथा आक्रमणकारियों से सुरक्षा होती थी। इसमें आक्रमण का जवाब देने के लिए बुर्ज तथा चौकियाँहोती थीं। दीवार को मजबूत बनाने के लिए पुश्ते बनाए जाते थे।


मुख्य नगर की दीवार के बाहर सामान्य नगर बसा था जो नागरिकों के लिए होता था। जबकि सुरक्षा-दीवार के अन्दर कुलीन वर्ग रहता था।


नगर को सड़कों के जाल से सुव्यवस्थित किया गया था। सड़कें आपस में समकोण पर काटती थी। सड़कों के बीच मोहल्ला बसाया जाता था, इसका आकार 20x800 फुट के आसपास था।


सड़कों की चौड़ाई 33 फुट, 13 फुट, 7 से 12 फुट तथा 4 फुट थी। मकान कम चौड़ाई की सड़कों पर बनाया जाता था। सभी सड़कें सीधी थीं।


मकानों से निकले पानी को सिंधु नदी में विधिवत् गिराया जाता था। इसके लिए सड़कों के दोनों ओर नालियाँ बनायी जाती थीं। घर से निकले पानी को सीधे नाली में न गिराकर पहले एक गड्ढे में डाला जाता था ताकि कचरा तथा गाद नीचे जम जाए तथा सिर्फ पानी ही नदी में जाये।


नालियों को पक्की ईंटों से बनाया जाता था, चिनाई में चूने-गारे का प्रयोग भी किया जाता था।


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