जल-संस्कृति को प्रतिबिम्बित करती फ़िल्म मोहेनजोदड़ो

मोहेनजोदड़ो  फ़िल्म का निर्माण विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक सिंधुघाटी सभ्यता के एक अति महत्त्वपूर्ण नगर मोहेनजोदड़ो की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर किया गया है। चर्चित निर्माता, निर्देशक और पटकथाकार श्री आशुतोष गोवारिकर ने गहन अध्ययन और शोध के बाद नवीनतम कंप्यूटर-ग्राफिक्स के द्वारा अपनी कल्पना को एक प्रेमकथा के रूप में प्रस्तुत किया है। इसे पीरियड ड्रामा लव स्टोरी भी कहा जा सकता है। फिल्मकार आशुतोष ने इस फ़िल्म में अपनी बौद्धिक क्षमता का जबरदस्त परिचय दिया है। ये अपने मज़बूत ('लगान', 'जोधा-अकबर') और कमजोर (‘वाट्स योर राशि', 'खेलें खेल जी जान से' ) फिल्मों से चर्चा में रहे हैं। ये अपनी फिल्मों में भव्यता के लिए चर्चित हैं। इन्होंने 2600 ई.पू. से 1700 ई.पू. की अवधि में मोहेनजोदड़ो को केन्द्र में रखकर पुरातत्त्व विभाग के सहयोग से संभवतः पहली बार ऐसी फिल्म बनाने का साहस किया है।



ज्ञात हो कि विश्व की पुरानी सभ्यताओं में प्राचीन भारत (सिंधुघाटी सभ्यता), मिस्र, चीन, मेसोपोटामिया, बेबीलोन, असीरिया और मय-सभ्यताएँ महत्त्वपूर्ण हैं। सिंधुघाटी सभ्यता के हड़प्पा, लोथल, कालीबंगा, धौलावीरा आदि नगरों में से मोहेनजोदड़ो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगर माना जाता है। सर अलेक्जेंडर कनिंघम (1814-1893) के निर्देशन में 1871 ई. में स्थापित भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण में 1902 ई. में सर जॉन मार्शल महानिदेशक बने। उनके नेतृत्व में राखालदास बनर्जी (1885-1930) ने 1922 ई. में मोहेनजोदड़ो की नगर-सभ्यता की खोज की थी। सम्प्रति मोहेनजोदड़ो पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में स्थित है। इसे यूनेस्को द्वारा 1980 ई. में ऐतिहासिक धरोहर की सूची में सम्मिलित किया गया है। विश्व की प्रमुख एवं चर्चित पत्रिका 'नेचर' में प्रकाशित एक शोध-लेख में प्राचीन भारत की सभ्यता को विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता माना गया है। यह सभ्यता कम-से-कम 8 हजार वर्ष पुरानी है। हरियाणा के पुरातत्त्व-विभाग द्वारा कराए गए उत्खनन से पता चलता है कि हिसार ज़िलांतर्गत कई हज़ार वर्ष पूर्व स्थापित सिंधु या सरस्वती घाटी की सभ्यता थी। प्राचीन सभ्यताओं का विकास नदीतट पर ही हुआ है। हरियाणा के आदिबद्री (यमुनानगर) से छः किमी दूर, मात्र आठ फीट की खुदाई के बाद ही विलुप्त सरस्वती नदी का जल निकला। ऋग्वेद के अनुसार भी सतलुज और यमुना के बीच एक नदी हिमालय से अरब सागर तक प्रवाहित होती थी। हरियाणा में उत्खनन के बाद प्राप्त सामानों का कार्बन-14 विधि से परीक्षण किया गया था।


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