नगर-निवेश और खगोलशास्त्र के पण्डित थे। महाटाजा सवाई जयसिंह द्वितीय

भारतवर्ष के राजपूत शासकों और राजाओं में कई राजा और शासक अपनी युद्धक्षमता, निर्भीकता और शौर्य के कारण बड़े ही प्रसिद्ध हुए, लेकिन सवाई जयसिंह द्वितीय राजस्थान के उन महत्त्वपूर्ण और प्रसिद्ध राजाओं में से थेजिनकी प्रसिद्धि न केवल शासक अपितु विद्वान्, कलापूजक, धरोहरप्रेमी, अति कल्पनाशील, विज्ञान-समर्थक और योजनाकर्ता के रूप में भी थी। मुगलों के शासनकाल में वे अपनी पिछली पीढ़ी से अधिक प्रतिष्ठित मुकाम पर थे और शायद इसी कारण औरंगजेब ने उन्हें 'सवाई' की उपाधि से सम्मानित किया। 'सवाई' का अर्थ है ‘सवा' अर्थात एक सौ पच्चीस प्रतिशत। यह उपाधि सवाई जयसिंह द्वितीय की योग्यता का परिचायक है। प्रारम्भ में वह औरंगजेब के सामन्त थे जिनका दरबार में बोलबाला था। उनका यह बोलबाला उनके तीक्ष्ण मस्तिष्क, साहसी व्यक्तित्व और उच्च बौद्धिक स्तर के कारण था। यद्यपि उनका जीवन हमेशा खतरों से घिरा रहा, तथापि उन्होंने अपने व्यक्तित्व के सारे गुणों को अपने दृढ़ निश्चय से बहाल रखा। कहा जाता है कि उनकी वैज्ञानिक रुचि को 12वें मुगल शासक मुहम्मद शाह (1719-1748) ने बहुत समर्थन दिया और इस कारण उन्होंने प्रथमतः दिल्ली, जयपुर, वाराणसी, उज्जैन और मथुरा में वेधशालाओं का निर्माण कराया। कुछ ज्ञात सूत्र यह भी कहते हैं कि उनकी मंशा भारतवर्ष के हर नगर में वेधशाला निर्माण की थी ताकि भारतवर्ष में खगोलशास्त्र एक बड़े लक्ष्य तक पहुँच सके।



महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय का जन्म 03 नवम्बर, 1688 को हुआ और वह आम्बेर की गद्दी पर मात्र तेरह वर्ष की उम्र में 1699 में आरूढ़ हुए। लगभग नौ वर्षों तक उनका समय आकस्मिक और निश्चित खतरों से निपटने में बीता और 1719 में उन्हें अपने प्रान्त पर पूर्ण नियन्त्रण पाने में सफलता मिल गयी। उनकी इस योग्यता की ख़बर मुहम्मद शाह को बराबर मिलती रही थी और उसने जयसिंह की शासकीय योग्यता का लाभ उठाने के लिए उनको 1719 में आगरा का राज्यपाल नियुक्त किया। बाद में मुहम्मद शाह ने उन्हें मालवी पर नियन्त्रण करने का अधिकार भी सौंप दिया। सवाई जयसिंह द्वितीय की शासन-प्रणाली ने उन्हें महज एक योद्धा या लड़ाका से ऊपर एक राजनेता का दर्जा दिलवाया।


सवाई जयसिंह ने सन् 1728 में जयपुर को अपनी राजधानी बनाई जो प्रारम्भ से ही वास्तुशास्त्र, शिल्पकारी और भवन-निर्माण कला का प्रमुख केन्द्र थी। शहर का बसने और योजनाबद्ध तरीके से बसने में सबसे बड़ा अंतर यह होता है कि योजनाबद्ध रूप से बसे शहरों में सुविधाओं का विस्तार कम-से-कम तोड़-फोड़कर हासिल किया जा सकता है। मान लीजिये किसी शहर में सड़कों की चौड़ाई बहुत कम हो और भले ही वर्तमान जनसंख्या और आवागमन के परिप्रेक्ष्य में उतनी चौड़ाई भी बहुत हो तो उस समय शहर का शासक या योजनाकर्ता क्या करेगा जब कालांतर में शहर की जनसंख्या तिगुनी या चौगुनी हो जाए और शहर में सवारियों और आवागमन के साधनों की संख्या भी उसी अनुपात में बढ़ जाए। स्वाभाविक हैकि ऐसी स्थिति में चौड़ीकरण करने के लिए सड़क के किनारे बनी इमारतों को तोड़ना पड़ेगा। इस आनेवाली समस्या को एक कुशल योजनाकर्ता की तरह सवाई जयसिंह द्वितीय ने पहले ही भाँप लिया और जयपुर को उसी तरह बसाया ताकि जनसंख्या के बढ़ते दवाब के बाद भी सुविधाएँ बहुत तेजी से कम न हों। उन्होंने जयपुर को ऐसे बुनावट की तरह बसाया कि आतंरिक और बाह्य- दोनों जगहों पर विस्तारीकरण की सम्भावना बनी रहे।


आगे और----