अर्थनीति, राजनीति और कूटनीति के समन्वय थे आचार्य कौटिल्य

भारतीय अर्थशास्त्रियों, राजनीतिज्ञों और कूटनीतिज्ञों में अर्थशास्त्र के महान् रचनाकार आचार्य कौटिल्य या चाणक्य का नाम अत्यन्त श्रद्धापूर्वक लिया जाता है। आचार्य चाणक्य के विषय में बौद्ध, जैन एवं अन्य भारतीय ग्रंथों में कहीं-कहीं प्रकाश डाला गया है। जिसके आधार पर उनके जीवन का तानाबाना बुना गया है। चाणक्य के विषय में जितनी जानकारी मिलती है उसके आधार पर कहा जा सकता है कि वह एक गरीब ब्राह्मण थे। उनके जन्म-स्थान एवं जन्मकाल के संबंध में भी ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता, किन्त इतना निश्चित है कि वह मगध नरेश नन्द और चन्द्रगुप्त के समकालीन थे। इस आधार पर कहा जा सकता है कि चाणक्य का जन्म चतुर्थ शती ई.पू. में हुआ था। उनके पिता का नाम संभवतः चणक अथवा शिवगुप्त था। उनकी माता, बहिन, भ्राता एवं अन्य वंशजों की जानकारी इतिहास में अज्ञात है। कौटिल्य आजीवन ब्रह्मचारी रहे थे, सुकरात की भाँति उन्होंने अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली थी तथा सर्दी, गर्मी, वर्षा, भूख आदि पर उन्हें पूर्ण नियंत्रण प्राप्त था।



जन्म-स्थान


कौटिल्य का जन्म-स्थान भी विवादास्पद विषय रहा है। कुछ विद्वान् उनका जन्म-स्थल गान्धार क्षेत्र स्थित तक्षशिला तथा कुछ मगध अर्थात् बिहार मानते हैं। ऐसा भी हो सकता है। कि कौटिल्य पाटलिपुत्र के समीप के निवासी होते हुए भी तक्षशिला, जो तत्समय विद्या एवं चिकित्साशास्त्र का केन्द्र था, अध्ययन करने गए हों। बौद्ध, जैन साहित्य के अनुसार कौटिल्य तक्षशिला के ही निवासी थे। तक्षशिला बौद्ध-दर्शन का भी केन्द्र था। कौटिल्य ने उन वनस्पतियों एवं धातुओं का उल्लेख किया है, जो गान्धार में पाई जाती थी। उस क्षेत्र के संबंध में चाणक्य के द्वारा साधिकार लिखने का यही कारण है कि उनका संबंध उत्तर-पश्चिम क्षेत्र से था तथा उन्होंने वहाँ अध्ययन किया था। दाक्षिणात्य लेखकों का मत है कि चूंकि अर्थशास्त्र की कोई पाण्डुलिपि उत्तर भारत में नहीं मिली है, इसलिए कौटिल्य दक्षिण भारत के ही सिद्ध होते हैं।


नाम :


'कौटिल्य एवं ‘चाणक्य' के नाम से विख्यात इस विद्वान् के नाम के संबंध में भी मतैक्य का अभाव है। हेमचन्द्र ने अपनी रचना अभिधानचिन्तामणि (मर्त्यखण्ड, 518) में लिखा है


'वात्स्यायनो मल्लनाथः कुटिलश्चणकात्मजः।


द्वामिल: पक्षिलस्वामी विष्णुगुप्तोऽगुलश्च सः ॥'


अर्थात्, ‘वात्स्यायन, मल्लनाथ, कौटिल्य, चाणक्य, द्रामिल, पक्षिलस्वामी, विष्णुगुप्त तथा अंगुल- चाणक्य के आठ नाम हैं। 


किन्तु उक्त सभी नामों से विष्णुगुप्त, चाणक्य एवं कौटिल्य ही प्रामाणिक माने जाते हैं। आचार्य कौटिल्य का वास्तविक पितृ-प्रदत्त नाम विष्णुगुप्त था। आचार्य कामन्दक ने नीतिसार में इसी नाम का उल्लेख किया है। शकरैया ने लिखा है कि विष्णुगुप्त नाम एक समारोह में दिया गया है। जबकि चाणक्य व कौटिल्य जन्म एवं गोत्र से संबंधित है। टी. गणपति शास्त्री (18601926) का मत है कि कौटिल्य नाम एककौटिल्य का मुख्य नाम विष्णुगुप्त है। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र के अन्त में लिखा है


दृष्टवा विप्रतिपत्ति बहुधा शास्त्रेषु भाष्कराणाम्।।


स्वयमेव विष्णुगुप्तश्चकार सूत्रं च भाष्यं च॥


अर्थात् जब एक ग्रंथ पर अनेक भाष्यकार भाष्य करते हैं तब अनेकार्थ प्राप्त होते हैं, इस प्रकार ग्रंथकार का मुख्य तात्पर्य भाष्यकारों की लेखनी में सुरक्षित नहीं रह पाया, यह देखकर विष्णुगुप्त ने अपने सूत्रों को। भाष्यकारों की कृपा पर न छोड़कर स्वयं ही उनका भाष्य किया है।


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