“अर्थतंत्र में फैली गंदगी की सफाई के लिए उठाया गया है विमुद्रीकरण का कदम”

। अब जबकि विमुद्रीकरण की मियाद 30 दिसम्बर को समाप्त हो रही है, क्या सरकार को इसके वाञ्छित परिणाम मिलने की उम्मीद है?


500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने की घोषणा 8 नवम्बर को की गई थी। इस पूरे प्रयास का उद्देश्य वर्तमान अर्थव्यवस्था में गहराई तक समाए काले धन के साम्राज्य को समाप्त करना, नकली नोटों के माध्यम से आतंकी गतिविधियों को मिल रही आर्थिक मदद करनेवाले तंत्र को पूरी तरह नेस्तनाबूद करना तथा भारतीय मुद्रा के हो रहे अन्य दुरुपयोगों को रोकना है। करीब 86 प्रतिशत मूल्य की मुद्रा अर्थतंत्र से वापस ली गई है। वर्तमान नोटबंदी का व्यापक असर हुआ है क्योंकि इसका दायरा काफी व्यापक है। विश्व बैंक द्वारा वर्ष 2010 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2007 में भारतीय अर्थव्यवस्था में काली अर्थव्यवस्था का आकार पूरी अर्थव्यवस्था का करीब 23.2 प्रतिशत था। इस प्रयास का दूसरा महत्त्वपूर्ण उद्देश्य अर्थतंत्र में नकदी के चलन को कम करना है। पुरानी मुद्रा को वापस लेकर 10 नवम्बर से 500 और 2,000 के नये नोट बाजार में उतारे गए हैं। इस पूरे प्रयास में सरकार को समाज के सभी वर्गों के सक्रिय सहयोग की अपेक्षा है।



यह सही है कि इस निर्णय के कारण विकास की गति को अल्पकालिक झटका लग सकता है। लेकिन यह कदम अर्थतंत्र में फैली गंदगी की सफाई के लिए उठाया गया है ताकि सम्पूर्ण तंत्र को दीर्घकालिक फायदा हो सके। मैं पूर्ण विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि इन सभी प्रयासों से भारत को दीर्घकालिक लाभ होगा। ।


। आज जब सभी विपक्षी दल सरकार के इस निर्णय की आलोचना कर रहे हैं। ऐसे में ओडिशा और बिहार के मुख्यमंत्रियों द्वारा सरकार के निर्णय का समर्थन करने को आप किस दृष्टि से देखते हैं?


आप किस दृष्टि से देखते हैं? हमें उम्मीद है कि सरकार द्वारा लिए गए इस निर्णय के पीछे की मंशा को विपक्षी दल सही अर्थ में समझने का प्रयास करेंगे और इस प्रयास को फलीभूत करने के लिए वे सभी सरकार की मदद करेंगे।


। आर्थिक मोर्चे पर केन्द्र सरकार ने दो बड़े निर्णय लिए हैं। एक है जीएसटी विधेयक पर सर्वसम्मति तथा दूसरा है काले धन के खिलाफ ठोस कार्रवाई। आनेवाले दो सालों में इन दोनों ही निर्णयों पर आप कैसा महसूस कर रहे हैं?


अर्थतंत्र से काले धन के सफाए और अप्रैल 2017 से जीएसटी लागू होने से अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को लाभ होगा, ऐसी हम उम्मीद कर सकते हैं। हालांकि वैश्विक स्तर पर विकासविरोधी माहौल है, फिर भी हमें उम्मीद है कि आनेवाले दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास-दर 7 प्रतिशत से अधिक ही रहेगी।


। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का मानना है कि सरकार के इस कदम से विकास-दर कम-सेकम दो प्रतिशत प्रभावित होगी। एक अन्य वरिष्ठ अर्थशास्त्री का कहना है कि विमुद्रीकरण का निर्णय तीव्र गति से दौड़ रही कार के पहियों में जान-बूझकर पंचर कर देने जैसा है। देश के वित्त मंत्री होने के नाते आप क्या सोचते हैं?


विमुद्रीकरण के कारण वर्तमान तिमाही में कुछ मंदी ज़रूर दिखेगी और हो सकता है कि इसका असर अगली तिमाही पर भी हो। लेकिन हमें उम्मीद है कि उसके बाद अर्थव्यवस्था फिर से विकास की दिशा में मजबूत छलांग लगाएगी।


लगाएगी। । विमुद्रीकरण के कारण हुई तमाम तरह की परेशानियों के बावजूद आम आदमी ने अनुकरणीय धैर्य का परिचय दिया है। क्या सरकार आनेवाले दिनों में गरीबों के हितों में कुछ विशेष कदम उठाएगी?


विशेष कदम उठाएगी? आर्थिक सुधारों का निर्णय ही आम आदमी के जीवन में गुणात्मक सुधार लाने के लिए लिया गया है। इससे उनका सामाजिक और आर्थिक विकास होगा। सरकार ऐसे आर्थिक सुधारों को अन्य क्षेत्रों में भी जारी रखेगी।


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