भारतीय खेल कुश्ती

कुश्ती एक प्रकार का द्वंद्वयुद्ध है, जो बिना किसी शस्त्र की सहायता के केवल शारीरिक बल के सहारे लड़ा जाता है। यह पूरे विश्व में खेले जानेवाले प्रमुख खेलों में से एक है। यह खेल इंसानी दमखम को प्रदर्शित करता है। कुश्ती का आरंभ संभवतः उस युग में हुआ होगा, जब मनुष्य ने शस्त्रों का उपयोग न जाना था। उस समय इस प्रकार के युद्ध में पशुबल ही प्रधान था। पशुबल पर विजय पाने के लिए मनुष्य ने विविध प्रकार के दाँव- पेंचों का प्रयोग सीखा होगा और उससे मल्लयुद्ध अथवा कुश्ती का विकास हुआ होगा।


पौराणिक उल्लेख


रामायण और महाभारत में कुश्ती की पर्याप्त चर्चा हुई है। रामायण से बाली-सुग्रीव का युद्ध और महाभारत से भीम-जरासंध के मल्लयुद्ध का उल्लेख उदाहरणस्वरूप दिया जा सकता है। इस प्रकार के द्वंद्वयुद्ध की अपनी एक नैतिक संहिता थी, ऐसा इन युद्धों के वर्णन से प्रकट होता है। उसके विरुद्ध आचरण करनेवाला निन्दनीय माना जाता था। श्रीकृष्ण के संकेत पर भीम द्वारा जरासंध की संधियों के चीरे जाने और दुर्योधन की जाँघ पर प्रहार करने की निन्दा लोगों ने की है।



मल्लयुद्ध का आयोजन


पुराणों में इसका उल्लेख मल्लक्रीड़ा के रूप में मिलता है। इन उल्लेखों से ज्ञात होता है कि इसके प्रति उन दिनों विशेष आकर्षण और आदर था। विशिष्ट उत्सव-प्रसंगों पर राजा लोग मल्लयुद्ध का आयोजन किया करते थे और प्रसिद्ध मल्लों को आमन्त्रित करते थे। मल्लक्रीड़ा आरंभ होने से पूर्व धनुर्यज्ञ होता था, जिसमें मल्ल लोगों को अपनी शक्ति का परिचय देने के लिए एक भारी धनुष की प्रत्यञ्चा खींचकर चढ़ानी होती थी। ऐसे ही एक उत्सव-प्रसंग पर मथुरा के राजा कंस ने कृष्ण और बलराम को आमंत्रित कर उनकी हत्या का षड्यंत्र किया था, किंतु कृष्ण- बलराम ने कंस के मल्ल चाणूर और मुष्टिक को अपने मल्ल-कौशल से पराजित कर दिया था। इसी प्रकार जिन दिनों पाण्डव छद्मवेश में विराटनगरी में रह रहे थे, उन दिनों वहाँ ब्रह्मोत्सव का आयोजन हुआ था। उसमें भीम ने जीमूत नामक मल्ल को परास्त किया था।


विजयनगर-नरेश कृष्णदेवराय के राजदरबार में नित्य मल्लयुद्ध का प्रदर्शन होता था। पेशवा-परिवार के लोग मल्लयुद्ध प्रवीण थे, ऐसा तत्कालीन आलेखों से ज्ञात होता है। जॉर्ज थॉमस (1756-1802) नामक आयरिश सेनाधिकारी ने ग्वालियर-नरेश दौलतराव सिंधिया (1794-1827) के सैनिकों के बीच मल्लविद्या के प्रचार का विस्तृत वर्णन किया है। पेशवा-काल में स्त्रियाँ भी मल्लयुद्ध में भाग लेती थीं और वे इस कला में इतनी प्रवीण होती थीं कि वे पुरुषों को चुनौती देती थीं और पुरुष पराजित होने की आशंका से उनकी चुनौती स्वीकार करने में संकोच करते थे।


जातककथाओं में उल्लेख


बौद्ध जातककथाओं में भी कुश्ती के उल्लेख प्राप्त होते हैं। उनमें अखाड़े, अखाड़े के सामने प्रेक्षकों के बैठने की जगह, उसकी सजावट, मल्लयुद्ध आदि के संबंध में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। विनयपिटक में उल्लिखित एक प्रसंग से ज्ञात होता है कि स्त्रियाँ भी मल्लयुद्ध में भाग लेती थीं। उसमें शेवती नामक एक मल्ली के भिक्षुणी हो जाने का उल्लेख है। जैनियों के प्रसिद्ध ग्रंथ कल्पसूत्र से ज्ञात होता है कि राजा लोग भी कुश्ती में भाग लेते थे।


विशुद्ध व्यायाम और खेल


शत्रुता-निवारण के इस द्वंद्वयुद्ध ने विशुद्ध व्यायाम और खेल का रूप ले लिया है। इस खेल अथवा व्यायाम से शरीर के सभी स्नायु एवं इंद्रियाँ सबल और कार्यक्षम होती हैं। इस खेल की कला से परिचित व्यक्ति कम शक्तिवाला होकर भी अधिक शक्तिशाली व्यक्ति पर विजय प्राप्त कर सकता है। कुश्ती से न केवल शरीर बनता है, वरन मानसिक विकास भी होता है और आत्मविश्वास बढ़ता है। धैर्य, अनुभवशीलता, चपलता आदि अनेक बातें पैदा होती हैं।


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