मुद्रा : कल, आज और कल

जब अन्य प्राणियों से मनुष्य की श्रेष्ठता एवं विकास की तुलना की जाती है तो ‘मुद्रा द्वारा वस्तुओं का लेन-देन' भी एक बिन्दु होता है। मनुष्य को छोड़कर कोई अन्य प्राणी- समाज मुद्रा का प्रयोग करना नहीं जानता। यह मनुष्य के विकास का एक और प्रतिमान है। जीवविज्ञानी कहते हैं कि मनुष्य के पूर्वज भी प्राचीन काल में अन्य पशुओं की तरह जंगलों में यहाँ-वहाँ खानाबदोश घूमते रहते थे। ऐसे में सहज प्रश्न उठता है कि मुद्रा का आरंभ कब और कैसे हुआ होगा और कैसे यह विश्वव्यापी बन गया।



पाषाणकाल तक मनुष्य अपनी उदर- पूर्ति, शाक-सब्जी, फल-फूल तथा मांसाहार करके करता था। कालान्तर में उसे जीवनभर यहाँ-वहाँ भटकते हुए जीवन व्यतीत करने की अपेक्षा बस्तियों में रहना अधिक सुरक्षित तथा सुविधाजनक लगा। इसी काल में उसने कृषि करना शुरू किया। कृषि-उपज को भण्डारित कर उपयोग करना मानव-सभ्यता का महत्त्वपूर्ण पड़ाव रहा है। इससे भोजन की रोज-रोज तलाश और इसकी प्राप्ति में जान का जोखिम बहुत सीमित रह गया।


भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु साधनों के संग्रह' का प्रथम उदाहरण अन्न-भण्डार बना। भण्डारित अन्न उस समय की सबसे कीमती जमा-पूँजी होती थी।


सौन्दर्य-बोध एवं कलात्मक अभिरुचियों के कारण लोगों ने सुन्दर चमकीले पत्थरों एवं वस्तुओं को पहनना तथा एकत्र करना शुरू किया। शिकार के लिए मेहनत कर औजार तैयार किए जाने लगे। लोग आवश्यकता पड़ने तथा शौक पूरा करने के लिए अपनी-अपनी वस्तुओं को अदलने-बदलने लगे। पालतू पशु तथा अनाज के बदले ही वस्तुएँ खरीदी-बेची जाती थीं।


धीरे-धीरे समाज में कार्य-विशेष में कुशल समूह बनने लगे। कोई कृषि में निपुण था, तो कोई औजार बनाने में, कोई वस्त्रों को तैयार करने में तो कोई कलात्मक सामान तैयार करने में। इससे समाज में एक दूसरे की वस्तुओं एवं सेवाओं के लेन-देन की प्रक्रिया तेजी से बढ़ी। काफी समय तक अनाज, वस्तुओं को खरीदने-बेचने के लिए सर्वस्वीकार्य साधन रहा। परन्तु अनाज की गुणवत्ता का पैमाना उपलब्ध न होने, अनाज की विभिन्न किस्मों का आ जाना, बड़ी खरीद-फरोख्त के लिए अनाज की बड़ी मात्रा की आवश्यकता पड़ना, अनाज को यहाँ-वहाँ लाने-ले जाने में असुविधा होना और सबसे ज्यादा कुछ समय बाद इसके सड़ने-गलने तथा देखभाल के अभाव में शीघ्र खराब होनेजैसे कारणों से इसके बेहतर विकल्प की तलाश की जाने लगी।


पालतु पशु, कीमती, चमकीले पत्थर, औजार इसका विकल्प बनकर उभरे। कालान्तर में कीमती, टिकाऊ तथा सर्वस्वीकार्य वस्तु के रूप में औजारों, चमकीले तथा सुन्दर पत्थरों तथा सजनेसँवरने के सामानों का प्रचलन बढ़ा; क्योंकि पशुओं के लेन-देन में भी कई प्रकार की असुविधाएँ रहती थीं। यहीं से ‘मुद्रा का जन्म माना जा सकता है। मनुष्य को वस्तुओं की खरीद-फरोख्त के लिए हल्की, टिकाऊ, लाने ले जाने में सुविधाजनक वस्तुओं की तलाश थी।


पहले लोहा, फिर तांबा, चाँदी और फिर स्वर्ण, अपनी उपयोगिता एवं सुविधाप्रदत्तता से मुद्रा की आदर्श वस्तु बनकर उभरे। इन धातुओं का उपयोग औजारों, बर्तनों तथा आभूषणों में बहुतायत से होने लगा। मुद्रा के रूप में इनका प्रयोग सरल तथा सुविधाजनक था। धातुएँ सर्वस्वीकार्य, कीमती, टिकाऊ तथा कम आयतन की होने के कारण मुद्रा का मुफीद साधन बन गयीं। इनमें भी सोना तथा चाँदी अधिक प्रचलित हुए।


सभ्यता के विकास-क्रम में जब बाज़ार एवं शासन-प्रणाली ने सुव्यवस्थित आकार ग्रहण कर लिया, तब राजा द्वारा अपने प्रतीक-चिह्नवाले धातु के सिक्के ढलवाकर मुद्रा के रूप में चलवाए गये। राजकीय मुहर एवं कीमतों में विविधता के कारण धातुओं के सिक्के मुद्रा के पर्याय के रूप में स्थापित हो गये।


जब सोना, चाँदी सबसे कीमती धातु बन गयी तो इनसे बने सिक्के बहुत सुविधाजनक सिद्ध हुए। इन। सिक्कों में सस्ती धातुओं की मिलावटकर नकली सिक्के ढालने की प्रवृत्ति बढ़ी तो राजाओं को सिक्के की मुहर एवं आकार में बदलाव करने पड़ते थे। कीमती धातुओं को अपने पूर्ण नियंत्रण/कोष में रखने के लिए कभी-कभार चमड़े के सिक्के भी चलवाये गये। कालान्तर में सोने, चांदी के प्रवाह को नियंत्रित । करने के लिए कागज की मुद्रा प्रचलन में आयी। विगत कुछ सौ वर्षों से कागज की मुद्रा, जिसे नोट कहा जाता है, पूरे विश्व में प्रयोग में लाई जा रही है। परन्तु सबसे पहली मुद्रा अनाज से लेकर नोट तक सभी में मिलावट तथा नकली मुद्रा की समस्या ज़रूर आई है।


इलेक्ट्रानिकी के बढ़ते आयामों के कारण वर्तमान में मानव एक नयी व आकाररहित मुद्रा के उपयोग के मुहाने पर खड़ा है जिसमें हर प्रकार का लेन-देन इलेक्ट्रॉनिक संकेतों से निर्मित मुद्रा के द्वारा होता है। इसे डिजिटल करेन्सी या प्लास्टिक मनी कहा जाता है। क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, स्वीप कार्ड, ऑनलाइन बैंकिंग, कैसलेस आदि इसके विविध आयाम हैं।


कई देशों में अभौतिक मुद्रा का प्रचलन 60 प्रतिशत तक हो गया है। मुद्रा का यह नया प्रारूप इस पारदर्शी लेन-देन, धन की कालाबाजारी व प्रवाहनियंत्रण में बेहतर साबित हो रहा है।


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