रुपये का नया प्रतीक चिह्न और डॉ. डी. उदय कुमार

आज लिखित संवाद-प्रेषण में चित्र- Vil संकेतों का उपयोग बड़ी साधारण- सी बात हो गई है। छोटे-छोटे संदेशों में तो चित्रात्मक संकेत बड़े ही प्रभावी तरीके से कहनेवाले की बात कह देते हैं। इंटरनेट और मोबाइल की दुनिया में हर दिन नये-नये चित्र-संकेत अस्तित्व में आ रहे हैं। यदि आप किसी से मोबाइल पर सन्देश के माध्यम से पूछना चाह रहेहैं कि तुम क्या कर रहे हो तो उसके लिए सन्देश के रूप में केवल एक प्रश्नवाचक-चिह्न ही काफ़ी है और यदि उत्तर देनेवाला उस समय किताब पढ़ते हुए चाय पी रहा हो तो वह प्रत्युत्तर में केवल एक किताब और एक चाय के प्याले का चित्र भेज दे तो प्रश्न पूछनेवाले को समझ में आ जाएगा कि वह किताब पढ़ते हुए चाय पी रहा है। चित्र-संकेतों के माध्यम से बात करना कोई नयी बात नहीं है। सच तो यह कि चित्र-संकेतों के माध्यम से बात करना पुरातन काल के प्राचीनतम सभ्यताओं की बात है जब भाव चित्रात्मक लिपि का प्रयोग किया जाता था। चीनी मूल की लिपियाँ तो अभी भी चित्रात्मक हैं। जैसे-जैसे भाषा का उद्भव होता गया, वैसे-वैसे चित्र-संकेतों का उपयोग उसी अनुपात में कम होता गया, लेकिन अब इस बदलते दौर में जहाँ लोगों के पास समय की कमी है, चित्र-संकेत पुनः लिखित संवाद में प्रभावी होते जा रहे हैं। अपने अति महत्त्वपूर्ण वस्तुओं को चित्र- संकेत के माध्यम से दिखाने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि देखनेवाला भाषा को जानने और उसे याद रखने की दुविधा में नहीं पड़ता। सभी देश, संस्थाएँ और यहाँ तक कि एक छोटी-सी दूकान भी अपने-आपको चित्र-संकेत के माध्यम से व्यक्त करना चाहती है।



मुद्रा किसी भी अर्थव्यवस्था का वह घटक है जिसके बिना अर्थव्यवस्था मूल्यांकित हो ही नहीं सकती। हर देश की अपनी-अपनी मुद्रा है और समान नाम की मुद्रा का कई देशों में मान्य होना भी देखा ‘रुपया' का इतिहास बहुत पुराना है। यह संस्कृत के 'रूप्यकम्' शब्द से लिया गया है जिसके विभिन्न अर्थ लिए जाते रहे हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि शेरशाह सूरी द्वारा प्रथम बार जारी किए गए चाँदी के सिक्कों का नाम ‘रुपिया' था और उसी नाम पर भारत की वर्तमान मुद्रा का नाम रुपया पड़ा। इसके चित्र-संकेत के रूप में 'Rs अथवा 'Re' का उपयोग 2009 तक किया गया। हालाँकि ‘RS' अथवा 'Re'- दोनों को चित्र-संकेत नहीं माना जा सकता। मूलतः ये क्रमशः मुद्रा के लिए उपयोग किए जानेवाले अंग्रेजी शब्दों- ‘Rupees' अथवा ‘Rupee' के संक्षिप्त नाम हैं। इसलिए रुपये का प्रतीकचिह्न चुनने के लिए फरवरी 2009 में तत्कालीन केन्द्र सरकार ने आम भारतीयों से सुझाव माँगे। चयन के लिए रिजर्व बैंक के डिप्टी-गवर्नर की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई जिसमें संस्कृति मंत्रालय के प्रतिनिधि, इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नयी दिल्ली के प्रतिनिधि, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिजाइन, अहमदाबाद के प्रतिनिधि, जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स के प्रतिनिधियों समेत कई अन्य लोग शामिल थे। वित्त मंत्रालय ने आवेदन पत्र मांगते समय कहा था कि प्रतीक-चिह्न के डिजाइन, विषय-वस्तु और परिकल्पना को देखकर ही ज्यूरी विजेता का चुनाव करेगी। पूरे देश से इसके लिए 3,331 डिजाइन आए और इनमें से अन्तिम 5 लोग चुने गए। इन्हें 25,000 और इनमें से अन्तिम विजेता को ढाई लाख रुपए का पुरस्कार दिया गया। इस प्रतियोगिता में चयन-समिति के मापदण्डों पर खरे उतरनेवाले सौभाग्यशाली व्यक्ति थे- डॉ. डी. उदय कुमार।


उदय डॉ. डी. उदय कुमार के बारे में जितना भी कहा जाए, कम है। वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं और वर्तमान में आई.आई.टी., गुवाहाटी में सह-प्राध्यापक के पद पर सुशोभित हैं। वह तमिलनाडु के रहनेवाले हैं। और राजनैतिक दल द्रविड़ मुनेत्र कषगम के भूतपूर्व विधायक एन. धर्मलिंगम् के सुपुत्र हैं। चेन्नई से विद्यालय की पढ़ाई के बाद उन्होंने वास्तुकला में स्नातक किया। उन्होंने आई.आई.टी., मुम्बई के इण्डस्ट्रियल डिजाइन सेंटर से डिजाइन में पीएच. डी. की उपाधि भी हासिल की। उन्होंने कंप्यूटर से संबंधित पत्रिका 'इंटेलीजेंट कंप्यूटिंग चिप' में वरिष्ठ डिजाइनर और मुख्य डिजाइनर के तौर पर काम करते हुए मुद्रण, सज्जा, छपाई, टंकण-कला, अक्षर-सज्जा जैसे विषयों पर बहुत अनुभव हासिल किया। जब वित्त मंत्रालय द्वारा इस प्रतियोगिता की घोषणा हुई, तब कोई नहीं जानता था कि अपनी परिकल्पना, सज्जा और विषयवस्तु को भारतीय मुद्रा, रुपये के प्रतीक-चिह्न के रूप में अमिट पहचान देनेवाले डॉ. डी. उदय कुमार होंगे। उन्होंने रुपये के प्रतीक-चिह्न पर काम करते समय बहुत-सी बातों का ध्यान रखा। उनके बनाए प्रतीक-चिह्न में हिंदी का ‘र' भी दिखता है और अंग्रेजी का 'R' भी। उसके साथ-साथ अब यह मात्र शब्द-संक्षेप न होकर चित्र-जैसा या चिह्न-जैसा दिखता है। उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में कहा कि इसके डिजाइन पर काम करते समय उन्हें भारत के राष्ट्रध्वज का भी ध्यान रहा। इस डिजाइन को ध्यान से देखने पर आप पायेंगे कि कैसे उन्होंने इसमें हिंदी-वर्णमाला का ‘र', अंग्रेज़ी-वर्णमाला के 'R' को एक-दूसरे में पिरोया है। ऐसा लगता है कि अंग्रेजीवर्णमाला के ह्यफ्ह के आरम्भ में रहनेवाली ऊर्ध्वाधार रेखा को उठाकर उन्होंने क्षैतिज स्थिति में हिंदी-वर्णमाला के 'र' के ऊपर रहनेवाली रेखा के समानान्तर रखा ताकि उस हिस्से को देखने से तिरंगे के डिजाइन का भी। आभास हो। डॉ. डी. उदय कुमार के इस कलात्मक योगदान को भारत के इतिहास में हमेशा स्मरण किया जायेगा। हम आशा करते हैं कि उनकी कल्पनाशीलता और कलात्मक अभिव्यक्ति से हम आगे भी लाभान्वित होते रहेंगे।


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