टकसाल (मिंट) जहाँ होती है सिक्कों की ढलाई

 किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में - कागजी मुद्रा के साथ-साथ सिक्कों का भी बहुत महत्त्व होता है। छोटे मूल्य-वर्ग के ये सिक्के बहुत उपयोगी होते हैं; क्योंकि इनके लेन-देन की आवृत्ति इतनी अधिक होती है कि कागज़ के बने नोट पूर्णतः अव्यावहारिक से हो जाते हैं और जल्द ही बेकार हो जाते हैं। सिक्के टकसालों में ढलते हैं और देश की भारत सरकार, वर्तमान में देश में सिक्कों की आवश्यकता-पूर्ति हेतु ढलाई के लिए चार टकसाल (मिंट) का संचालन कर रही है।


मुम्बई-मिंट :


यह 1829 में बम्बई प्रांत के गवर्नर जॉन मैलकम द्वारा स्थापित किया गया था। यह दक्षिणी मुम्बई के फोर्ट एरिया में भारतीय रिज़र्व बैंक के सामने अवस्थित है। यहाँ स्मारक और विकासोन्मुखी सिक्कों की ढलाई होती है। मुंबई टकसाल भारत की सबसे पुरानी टकसालों में से एक है। इसके इतिहास की जड़े 17वीं शताब्दी के अन्तिम 25-30 वर्षों से जुड़ी हैं। सिक्कों की तरह टकसाल का इतिहास भी शताब्दी-दर- शताब्दी चलता रहा। एक छोटी-सी जगह में छेनी-हथौड़ी से ठोंक-पीटकर सिक्के बनाए जाने से लेकर, क्वाइल मशीन में डालने पर छपे-छपाए तैयार सिक्के निकलने तक की विकास गाथा मे कई रोचक कहानियाँ शामिल हैं जैसे प्राचीन काल में सिक्कों का वजन ग्राम से नहीं बल्कि अनाज के दानों से निर्धारित किया जाता था।



मुंबई में पहली टकसाल गवर्नर जेराल्ड ऑन्गियेर ने रुपये, पाइयाँ और बज्रक ढालने के लिए स्थापित की थी। बम्बई-टकसालका पहला रुपया 1672 में ढाला गया था। ये सिक्के बम्बई-किले में ढाले गए थे। यह किला उस जगह स्थित था जहाँ आज टाउन हॉल के पास आई.एन.एस. आंग्रे स्थित है। आज जहाँ भारतीय रिजर्व बैंक की बहुमंजिली इमारत खड़ी है, उस जगह एक तालाब था।


वर्तमान टकसाल 1824 से 1830 के बीच बॉम्बे इंजीनियर्स के कैप्टन हॉकिंस ने बनवाई थी। जनवरी, 1830 में मि, जेम्स फेरिश, मास्टर ऑफ़ द मिंट नियुक्त किए गए। कई वर्षों तक भाप के तीन इंजनों द्वारा प्रतिदिन डेढ़ लाख सिक्कों का उत्पादन होता रहा। 1863 में कर्नल बैलार्ड बम्बई मिंट के मिंट मास्टर बने। मि. बैलाई लोकप्रिय ब्रिटिश मिंट मास्टर थे। उन्होंने बम्बई में समुद्र को पाटकर जमीन निकाली थी जो आजकल 'बैलार्ड पियर' के नाम से जानी जाती है।


बम्बई-टकसाल प्रारम्भ में गवर्नर ऑफ बॉम्बे प्रेसीडेंसी के नियंत्रण में थी। इसके बाद वित्त-विभाग ने संकल्प क्र. 247, दिनांक 18.5.1876 द्वारा इसे भारत सरकार को हस्तांतरित कर दिया। 1893 तक भारतीय टकसालें भारतीय सिक्का ढलाई अधिनियम XVII-1835, XIII-1862 तथा XXIII-1870 द्वारा नियंत्रित थीं। नये सिक्का ढलाई अधिनियम 1906, समय-समय पर यथासंशोधित, के अनुसार भारतीय टकसालों में एक हजार मूल्य-वर्ग तक के सिक्के ढाले जा सकते हैं। 


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