विश्व की मुद्राओं की संस्कृत शब्द-प्रणाली

सापूर्व काल तक सारे विश्व में संस्कृत-भाषा और वैदिक शासन पद्धति ही प्रचलित थी, इसका प्रमाण विविध देशों के सिक्कों में पाया जाता है। विविध देशों की द्रव्यमूल प्रणाली सारी संस्कृत है। कई देशों में ईसाई या इस्लामी शासक अधिकाररूढ़ होने पर भी वैदिक परम्परा के प्रभाव के कारण उन्हें निजी सिक्कों पर संस्कृत-अक्षर और लक्ष्मी आदि की प्रतिमा खुदवानी पड़ती। उदाहरणार्थ महमूद गजनवी के शासन के ऐसे कई सिक्के पाए गए हैं। किन्तु वर्तमान इतिहासकारों ने अज्ञानतावश या जानबूझकर उसका गलत अर्थ लगाया। कोई समझने लगे कि महमूद गजनवी ने भले ही अत्याचार किए हों, मन्दिरों को तोड़ा हो, हिंदुओं का कत्ल किया हो, उन्हें लूटा हो, बन्दियों के गुलामों के नाते बेचा हो, हिंदू-स्त्रियों पर इस्लामी सेना द्वारा सामूहिक बलात्कार करवाया हो, फिर । भी वह संस्कृत का बड़ा भारी विद्वान् था, या संस्कृत-भाषा के प्रति उसका गहरा लगाव था, या वह हिंदू-मुस्लिम एकता का पुरस्कर्ता था, इत्यादि-इत्यादि। गाँधी-नेहरू युग में काँग्रेसी । नेता, काँग्रेस सरकार, मुसलमान जनता आदि को तुष्ट कर धन, उपाधियाँ, अधिकार, पद आदि पाने के लालच में इतिहासज्ञों ने समय का लाभ उठाकर कुछ ऐतिहासिक तथ्यों का ऊपर कहे अनुसार उटपटांग अर्थ लगाकर अपना उल्लू सीधा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।



देशों-प्रदेशों के द्रव्य, सिक्के आदि के नाम संस्कृत में होना कोई आश्चर्य की बात नहीं, जब कृतयुग से कलियुग तक के दीर्घ समय में संस्कृतभाषी वैदिक क्षत्रियों का ही विश्व में शासन रहा। आंग्ल भाषा में सिक्के को क्वाइन (coin) कहते हैं। क्वाइन ‘कनक' (यानि सुवर्ण) शब्द का टेढ़ा-मेढ़ा रूप है। यदि coin शब्द में c का उच्चार ‘स किया जाय तक भी ‘सॉइन्’ यह ‘सुवर्ण' शब्द का ही टूटा-फूटा रूप दीखता है।


प्राचीन काल में जब सर्वत्र समृद्धि होती थी, तो सुवर्ण से ही सारे लेन-देन का मूल्यांकन होता था। ‘सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति' कहावत से भी यही प्रतीत होता काञ्चनमाश्रयन्ति' कहावत से भी यही प्रतीत होता है। जिसके पास अधिक स्वर्ण होता था, उसी को सब प्रकार से बड़ा मानने की बात उसमें कही गई है। 


चलते-चलते हम यहाँ अर्थशास्त्र का एक नियम भी बता दें कि जिस राष्ट्र की आर्थिक अवनति होती है, उसके राष्ट्रीय सिक्के का धातु भी घटिया होने लगता है। उदाहरणार्थ स्वर्ण के सिक्कों का लोप होकर चाँदी के सिक्के बने, फिर तांबे के, अल्युमिनियम, स्टील इत्यादि घटिया धातु या वस्तु के होने लगते हैं।


 नगद पैसे को आंग्ल भाषा में 'कैश' (Cash) कहते हैं जो ‘कांस्य' धातु का अपभ्रंश है। हो सकता है कि प्राचीन काल में आंग्ल भूमि में काँसे के सिक्के बनते हों।


द्रव्य को आंग्ल भाषा में ‘मनि' (money) कहते हैं तो ‘मान' यानि मूल्य का माध्यम या नाप इस अर्थ से रूढ़ हुआ।


रुपये, रुपिया आदि शब्द रौप्य यानि चाँदी पर से पड़े हैं। अतः रुपिया चाँदी का ही होना चाहिए। तथापि वर्तमान आर्थिक अनवति का इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि आजकल के रुपये से चाँदी गायब ही हो गई है।


धन या द्रव्य को भारत में 'पैसा' कहते हैं और किसी एक सिक्के को भी पैसा कहते हैं। कुछ वर्ष पूर्व पैसा ताँबे का होता था। आजकल स्टील का बनता है। व्यक्ति या समाज, संस्थान, संगठन आदि की पूरी पूँजी को भी 'पैसा' कहा जाता है। उसका बिगड़ा रूप फ्रांस में ‘पिऑस्त्र' रूढ़ है। स्पेन में तथा स्पेन का अधिकार जिन-जिन देशों में रहा, उनमें पैसे को या किसी सिक्के को 'पैसो’ कहा जाता है।


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