ब्रह्मचर्य द्वारा स्वास्थ्य-रक्षा

ब्रह्मचर्य अर्थात् संयम। ब्रह्मचर्य से मन, वचन, इन्द्रियों के कार्यों की मनमानी पर संयम तथा कर्म की पवित्रता का बोध होता है। ब्रह्मचर्य का अर्थ केवल इन्द्रियों को काबू करना ही नहीं है अपितु ब्रह्मचर्य एक अच्छे स्वास्थ्य, एक अच्छी सोच, तन-मन की पवित्रता तथा आध्यात्मिक जगत् की ओर उन्मुख होने तथा जीवन को सफल बनाने की कुञ्जी है। जिन्होंने ब्रह्मचर्य को साधा है और जीवन में नियमी-संयमी रहे हैं, उनका अपना इतिहास एवं अपनी गाथा है। चाहे ब्रह्मचर्य व्रतधारी हनुमान्, भीष्म पितामह, अर्जुन, लक्ष्मण, शंकराचार्य, स्वामी दयानन्द, स्वामी विवेकानन्द, आदि इन सभी महापुरुषों ने अपने वीर्य को ऊर्ध्वगामी किया था तभी अपने-अपने क्षेत्र में महान् कहलाये। महिलाओं में मीरा, सुलभा, गार्गी, अनसुइया आदि तपोधारिणी ब्रह्मचारिणी रही हैं।


ब्रह्मचर्य दो प्रकार का होता है : एक शारीरिक दूसरा मानसिक। शारीरिक ब्रह्मचर्य साधना तो आसान है परन्तु मन से कामुक विचारों से अपने को दूर रखना कठिन है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है


ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्ते सूपजायते। संगात्सज्जायते कामः कामाक्रोधोऽभिजायते॥ -गीता, 2.62


अर्थात् विषयों का चिन्तन करने में पुरुष की उन विषयों में आसक्ति, आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है। और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है।


महर्षि याज्ञवल्क्य ने जी ब्रह्मचर्य के विषय में एक जगह कथा थाकायेन मनसा वाचा सर्वावस्थानु सर्वदा।। सर्वत्र मैथुन त्यागो ब्रह्मचर्य प्रचज्ञते॥ अर्थात् शरीर, मन और वचन से सब स्थानों एवं सब स्थितियों में मैथुन से सदा बचे रहना ब्रह्मचर्य है।


ब्रह्मचर्य की महत्ता


ब्रह्मचर्य तन, मन एवं बुद्धि से पूर्ण स्वस्थ रहने के लिए जीवन में सफलता के लिए तथा भक्ति व मोक्ष प्राप्त करने के लिए जीवन का मूल आधार है। ब्रह्मचर्य शरीर के अन्दर इन्द्रियों द्वारा प्रोत्साहित काम, क्रोध, अहंकार, लोभ, मोह-जैसे शत्रुओं से लड़ने के लिए एक अमोघ, अचूक शस्त्र है।



ब्रह्मचर्य में बाधाएँ


ब्रह्मचर्य का पालन करना कोई आसान काम नहीं है। इस व्रत, इस संयम में पगपग पर बाधाएँ हैं। कामदेव हर जगह धनुष पर बाण चढ़ाए खड़ा है कि आप चूके नहीं कि उसने निशाना साध लिया। कुछ बाधाएँ इस प्रकार वर्णित की जा सकती हैं।


कामुक चिन्तन : मन बड़ा चंचल एवं नटखट है। वह कामवासना के विचारों, संकल्पों के सहारे भी भोग लेता है। स्त्री-चिन्तन, रति-क्रिया चिन्तन, स्मरण एवं विचारों की हवा में मन साथ देता है और मन में आसक्ति पैदा होने से कामना अपना डेरा डाल देती है। अतः कामुक विषयों पर चिन्तन नहीं करना चाहिए। अतः, अन्तःकरण में कामुक भाव, कामुक संकल्प की लहरें नहीं उठने देनी चाहिए। ब्रह्मचारी को सदैव सजग रहना चाहिए।


स्पर्श- स्त्री के पास बैठने, उसके साथ संवाद करने तथा स्पर्श करने की इच्छा भी बहुत खतरनाक है। स्त्री स्पर्श जमे हुए घृत को अग्नि स्पर्श कराने की तरह पुरुष का वीर्य पिघल जाता है। अतः ब्रह्मचारी को भूलकर भी स्त्री का स्पर्श नहीं करना चाहिए। यदि माँ, बहन, मौसी, बुआ आदि घनिष्ठ रिश्तों को छोड़कर किसी को स्पर्श करें तो मन में माँ या बहन समझकर चरण ही स्पर्श करें अन्य अंग न स्पर्श करें, न ही आलिंगन करें।


केलि : स्त्रियों के साथ मज़ाक करना, नयन, होठों से इशारा करना, बुरे हावभाव करना, हाथापाई करना आदि ब्रह्मचारी व्रतधारी के लिए सख़्त मना होता है।


गलत पठन-पाठन : ब्रह्मचर्य-साधक के लिए अश्लील चित्र देखना, अश्लील साहित्य पढ़ना, अश्लील फिल्म देखना बहुत हानिकारक होता है। अतः इनसे बचना चाहिए।


प्रेक्षण : जीव-जन्तुओं, जानवरों, पक्षियों को भोग-विलास करते नहीं देखना चाहिए। स्त्री-पुरुष की प्रेमलीलाओं के दृश्यों को नहीं देखना चाहिए। ऐसे दृश्य देखने से काम वासना जाग्रत् होती है।


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