बुद्धों का काल

बुद्धवंश के अध्याय 27 में 28 बुद्धों की सूची में सिद्धार्थ तथा गौतम की गणना अलग-अलग की गई है, पर उनको एक ही मानकर सिद्धार्थ को ज्ञानप्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध माना जाता है। ज्ञान के बाद उनके बुद्ध होने का वर्णन है, पर गौतम बुद्ध होने का कहीं उल्लेख नहीं है। गौतम बुद्ध तथा उनके पूर्व के 27 बुद्धों के जीवन के बाद इसमें भविष्य के मैत्रेय बोधिसत्त्व का भी उल्लेख है। थेरावाद (स्थविर) मत के 3 मुख्य ग्रन्थों में सुत्तपिटक (सूत्र या सूत-पुराण क्रम) हैजिसके खुद्दकनिकाय (क्षुद्रक = प्रकीर्ण) का एक अंश है बुद्धवंश। इसके अतिरिक्त गौतम बुद्ध ने पिछले कल्प के कई अन्य बुद्धों का भी उल्लेख किया है। बुद्धवंश में वर्णित 28 बुद्धों की सूची इस प्रकार है : 1. तहॅकर बुद्ध, 2. मेधंकर बुद्ध, 3. शरणंकर बुद्ध, 4. दीपङ्कर बुद्ध, 5. कोण्ड् बुद्ध, 6. मङ्गल बुद्ध, 7. सुमन बुद्ध, 8. रेवत बुद्ध, 9. सोभित बुद्ध, 10. अनोमदस्सी बुद्ध, 11. पदुम बुद्ध, 12. नारद बुद्ध, 13. पदुमुत्तर बुद्ध, 14. मेध बुद्ध, 15. सुजात बुद्ध, 16. पियदस्सी बुद्ध, 17. अत्थदस्सी बुद्ध, 18. धम्मदस्सी बुद्ध, 19. सिद्धत्थ बुद्ध, 20. तिस्स बुद्ध, 21. फुस्स बुद्ध, 22. विपस्सी बुद्ध, 23. सिख बुद्ध, 24. वेस्संभू बुद्ध, 25. ककुसन्ध बुद्ध, 26. कोणागमन बुद्ध, 27. कस्सप बुद्ध, 28. गोतम बुद्ध और 29. मैत्रेय बुद्ध (भविष्य में होंगे).



सिद्धार्थ बुद्ध महाभारत-युद्ध (1610-3139 ईसा पूर्व, कलि पूर्व 37 की कार्तिक अमावस्या) को आरम्भ होने के 68 दिन बाद 24-12-3139 ईसा पूर्व को सूर्य का उत्तरायण आरम्भ होने पर भीष्म ने देह त्याग किया था। उसके 5 दिन पूर्व 17-12-3139 ईसा पूर्व को युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ था। इसी दिन से अबुल फजुल ने अकबर के दीन-एइलाही आरम्भ होने के वर्ष-मास-दिन की गणना की है। 36 वर्ष शासन होने पर 17-2-3102 ईसा पूर्व में भगवान् कृष्ण का देहान्त होने पर कलियुग का आरम्भ हुआ। उसके 6 मास 11 दिन बाद परीक्षित का अभिषेक हुआ जिससे पुराणों में नन्द काल तक की गणना की गई है। परीक्षित अभिषेक के 89वें वर्ष प्लवंग संवत्सर की पौष अमावास्या (27-11-3014 ईसा पूर्व) सोमवार, सूर्यग्रहण के अवसर पर जनमेजय ने सर्पयज्ञ के प्रायश्चित्त के लिए केदारनाथ तथा अन्य 4 क्षेत्रों में भूमिदान किया था, जो पट्टे अभी भी मान्य हैं। इसी महाभारत-युद्ध में मारे गए सूर्यवंशी राजा बृहद्बल की 24 पीढ़ी बाद सिद्धार्थ का जन्म शुद्धोदन के पुत्र के रूप में हुआ। इनका उल्लेख सभी पुराणों में है। इनके जन्म की सभी मुख्य घटनाएँ वैशाख पूर्णिमा (बुद्ध पूर्णिमा) को हुईं। जन्म 313-1886 ईसा पूर्व, शुक्रवार, वैशाख शुक्ल पूर्णिमा, 59-24 घटी तक। कपिलवस्तु के लिए प्रस्थान 29-51859 ईसा पूर्व, रविवार, आषाढ़ शुक्ल 15। बुद्धत्वप्राप्ति 3-4-1851 ईसा पूर्व, वैशाख पूर्णिमा सूर्योदय से 11 घटी पूर्व तक। शुद्धोदन का देहान्त 25-6-1848 ईसा पूर्व, शनिवार, श्रावण पूर्णिमा। बुद्ध निर्वाण 27-3-1807 ईसा पूर्व, मंगलवार, वैशाख पूर्णिमा, सूर्योदय से कुछ पूर्व। इनकी जन्म-कुण्डली-लग्न 3-10- 2', सूर्य 0-40-54', चन्द्र 6-280-6', मंगल 11-280-24', बुध 11-100 30', गुरु 5-80-12', शुक्र 0-230- 24', शनि 1-160-48', राहु 2-150- 38', केतु 8-150-38'। ये सभी तिथि- नक्षत्र-वार बुद्ध की जीवनी से हैं।


गौतम बुद्ध-सामान्यतः 483 ईसा पूर्व में जिस बुद्ध का निर्वाण कहा जाता है, ये वही बुद्ध हैं जिनका काल कलि की 27वीं शताब्दी (500 ईसा पूर्व से आरम्भ) है। इन्होंने गौतम के न्यायदर्शन के तर्क द्वारा अन्य मतों का खण्डन किया तथा वैदिक मार्ग के उन्मूलन के लिए तीर्थों में यन्त्र स्थापित किये। गौतम मार्ग के कारण इनको गौतम बुद्ध कहा गया, जो इनका मूल नाम भी हो सकता है। स्वयं सिद्धार्थ बुद्ध ने कहा था कि उनका मार्ग 1,000 वर्षों तक चलेगा पर मठों में स्त्रियों के प्रवेश के बाद कहा कि यह 500 वर्षों तक ही चलेगा। आज की धार्मिक संस्थाओं में भ्रष्टाचार उनकी नज़र में था। गौतम बुद्ध के काल में मुख्य धारा से द्वेष के कारण तथा सिद्धार्थ द्वारा दृष्ट दुराचारों के कारण इसका प्रचार शंकराचार्य (509-477 ईसा पूर्व) में कम हो गया। चीन में भी इसी काल में कन्फ्यूशस तथा लाओत्से ने सुधार किये।


(भविष्यपुराण, प्रतिसर्गपर्व 3, अध्याय


21-सप्तविंशच्छते भूमौ कलौ सम्वत्सरे गते॥21॥ शाक्यसिंह गुरुर्गेयो बहु माया प्रवर्तकः॥3॥ स नाम्ना गौतमाचार्यो दैत्य पक्षविवर्धकः। सर्वतीर्थेषु तेनैव यन्त्राणि स्थापितानि वै॥31॥


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