दशनामी संप्रदाय और नागा साधुओं का चित्र-विचित्र संसार

आद्य शंकराचार्य से शैव तपस्वी संन्यासियों के दशनामी-सम्प्रदाय का प्रचलन हुआ। इनके चार प्रमुख शिष्य थे और उन चारों के कुल मिलाकर दस शिष्य हुए। इन दसों के नाम से संन्यासियों की दस पद्धतियाँ- 1. गिरि, 2. पर्वत, 3.सागर, 4. पुरी, 5.भारती, 6. सरस्वती, 7.वन, 8. अरण्य,9. तीर्थ और 10. आश्रम विकसित हुईं।


दशनामी-संप्रदाय शैव तपस्वी संन्यासियों का सम्प्रदाय है जिसकी स्थापना सनातन-धर्म की रक्षा के लिए आद्य शंकराचार्य (509-477 ई.पू.) के प्रयास से हुई थी। इस सम्प्रदाय के संन्यासी विशेष प्रकार के भगवे वस्त्र धारण करते हैं, लेकिन कट्टर दशनामी निर्वस्त्र रहते हैं जिन्हें नागा-साधु कहा जाता है। इस सम्प्रदाय के अनुयायी सिर तथा शरीर के अन्य भागों पर श्मशान की भस्म से तीन धारियों का तिलक लगाते हैं और गले में 54 या 108 रुद्राक्षों की माला पहनते हैं। वे अपनी दाढ़ी बढ़ने देते हैं और बाल खुले रखते हैं, जो कंधों तक आते हैं या उन्हें सिर के ऊपर बांधते हैं। कुम्भ मेलों में इस सम्प्रदाय के अनुयायियों की भीड़ उमड़ पड़ती है। दशनामियों को धर्म की सर्वाधिक समझ इसलिए होती है क्योंकि आद्य शंकराचार्य के काल में ब्राह्मणजन उन्हीं से दीक्षित और शिक्षित होते थे। साधुओं के इस समाज की हिंदूधर्म में सर्वाधिक प्रतिष्ठा है। इस समाज में अदम्य साहस और नेतृत्व-शक्ति होती है। कुम्भ के सबसे पवित्र शाही स्नान में सर्वप्रथम स्नान का अधिकार इन्हें ही मिलता है। इस सम्प्रदाय में महंत, आचार्य और महामण्डलेश्वर आदि पद होते हैं।



'दशनामी' कहने से यह दस संप्रदाय होते हैं। प्रत्येक संप्रदाय स्थान विशेष और वेद से संबंध रखता है।


शंकराचार्य के चार प्रमुख शिष्य थे और उन चारों के कुल मिलाकर दस शिष्य हुए। इन दसों के नाम से संन्यासियों की दस पद्धतियाँ विकसित हुई। शंकराचार्य ने चार मठ स्थापित किए थे जो दस क्षेत्रों में बँटे थे जिनके एक-एक मठाधीश थे। संक्षेप में इनका विवरण इस प्रकार है :


1. गिरि, 2, पर्वत, 3. सागर-मठ : ज्योतिर्मठ (बद्रिकाश्रम), ऋषि : भृगु, वेदः अथर्ववेद, महावाक्य : अयमात्म ब्रह्म 4. पुरी, 5. भारती, 6. सरस्वती-मठः श्रृंगेरी शारदा मठ (श्रृंगेरी), ऋषि : शाण्डिल्य, वेद : यजुर्वेद, महावाक्य : अहं ब्रह्मास्मि 7. वन, 8. अरण्य-मठ : गोवर्धन मठ (पुरी), ऋषि : काश्यप, वेद : ऋग्वेद, महावाक्य : प्रज्ञानम् ब्रह्म 9. तीर्थ और 10. आश्रम-मठ : द्वारका शारदा मठ (द्वारका), ऋषि : अवगत, वेद : सामवेद, महावाक्य : तत्त्वमसि


दीक्षा के समय प्रत्येक दसनामी को, दीक्षा के समय प्रत्येक दसनामी कोजैसा कि उसके नाम से ही स्पष्ट है, उपर्युक्त नामों- गिरि, पुरी, भारती, वन, अरण्य, पर्वत, सागर, तीर्थ, आश्रम या सरस्वती में से किसी एक नाम से विभूषित किया जाता है या वह पहले से ही उसी समाज से संबंधित रहता है। किसी एक नाम और परंपरा का साधु बनकर वह किसी एक अखाड़े का सदस्य बनता है।


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