सर्वशक्तिमान परमात्मा दूरदर्शी, सबल एवं योग्य नेताओं को ही प्रकृति की निर्धारित योजना के कार्यान्वयन की क्षमता प्रदान करते हैं। सामान्य क्षमतायुक्त व्यक्तियों के द्वारा कठिन, अत्यंत गंभीर उत्तरदायित्वपूर्ण कार्यों का कार्यान्वयन संभव नहीं। विज्ञान एवं अध्यात्म में समन्वय का कार्य अत्यंत विशिष्ट एवं दुर्लभ कार्यों की श्रेणी में गिना जाता है, अतः इसके कार्यान्वयन का दायित्व उपयुक्त गुणों एवं क्षमताओं से युक्त व्यक्तियों को ही दिया जा सकता है।
अब विचारणीय विषय यह है कि वे कौन-से गुण हैं जो एक व्यक्ति को ऐसा योग्य बनाते हैं कि वह कार्य की गंभीरता एवं बारीकियों को समझकर उसे कुशलतापूर्वक कार्यान्वित कर लेता है? क्या ऐसे व्यक्ति विशिष्ट श्रेणी के मानव होते हैं, अथवा मानवों में भी विशिष्ट प्रकार की प्रजाति के होते हैं अथवा उनमें विशेष प्रकार के गुण विद्यमान होते हैं जो सामान्य व्यक्ति में प्रायः नहीं होते अथवा वे विशेष प्रतिभायुक्त सामान्य मानव ही होते हैं। जिनमें तीव्र इच्छाशक्ति, दृढ़ संकल्प तथा लक्ष्य प्राप्ति के लिए अथक परिश्रम करने की क्षमता होती है तथा जो अपनी आंतरिक क्षमताओं एवं बाह्य उपलब्धियों के माध्यम से जीवन में निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति करते हैं?
ऐसा अनुभव में आता हैं कि ऐसे व्यक्ति जन्म से ही अन्यों से भिन्न होते हैं। अथवा जीवन-यात्रा में भिन्न हो जाते हैं। यह विभिन्नता उनके जीवन में पूर्णता लाने की आकांक्षा के कारण होती है। जीवन में निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वे अपनी आंतरिक भावनाओं पर विजयी होने एवं बाह्य उपलब्धियों को प्राप्त करने के लिए अथक प्रयत्न करते हैं।
ऐसे व्यक्ति विशेष रचनात्मक वृत्तिवाले होते हैं यद्यपि सभी प्राणियों में विभिन्न मात्राओं में रचनात्मक क्षमता होती है। रचनात्मकता' की यह विधि सभी प्राणियों में प्रसन्नता भर देती है। ओशो अपनी पुस्तक 'सेक्स टू सुपर कॉन्सीयसनैस' में बताने हैं कि मानवजाति को सेक्स (रतिक्रिया)' अधिकतम प्रसन्नता का अनुभव कराती है। प्रसन्नता के इस अनुभव की तुलना अन्य किसी विधि से प्राप्त प्रसन्नता के अनुभव से नहीं की जा सकती। संभावना है कि पशु-पक्षियों एवं पेड़ पौधों के बारे में भी ऐसी ही प्रसन्नता का अनुभव लगाया जा सकता है। माता बच्चों को जन्म देकर असीम प्रसन्नता का अनुभव करती है। यही कारण है कि वह सदा अपने बच्चों के साथ मन से जुड़ी रहती है। वह अपनी सृजनता की क्षमता पर गर्व भी करती है तथा जीवनभर उस क्षमता के कारण प्रसन्न भी रहती है। सक्षम नेता के पास भी ऐसी ही रचनात्मकता के गुण होते हैं तथा वे ‘रचनात्मक वृत्ति के कारण प्रसन्न रहते हैं।
सक्षम नेताओं के गुणों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि सभी सक्षम नेताओं में ‘संकल्प-शक्ति एवं लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना' सामान्य रूप से होती हैं। कुछ नया करने का, स्वयं को परिपक्व बनाने का, कार्यशैली में परिपक्वता एवं परिवर्तन लाने का संकल्प उनमें विद्यमान होता है। इस तथ्य के प्रमाण इतिहास में उपलब्ध हैं। अर्जुन ‘सत्य की सत्ता में पूर्ण विश्वास रखते थे तथा सत्यमार्ग पर चलना चाहते थे। उन्होंने श्रीकृष्ण से स्पष्ट रूप से कह दिया कि वे कौरवों के विरुद्ध शस्त्र नहीं उठाएँगे, क्योंकि वे कौरवों को अपना समझते थे। उन्होंने कौरवों की हत्या करने से स्वयं की बलि देना श्रेयस्कर माना। ‘सत्य की सत्ता में अटूट विश्वास होने के कारण उन्होंने घोषणा की कि परमात्मा कौरवों के पापों का दण्ड स्वयं देंगे तथा उन्हें कौरवों को नष्ट करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। अतः उन्होंने युद्ध करना अस्वीकार कर दिया। गाँधी जी ने 'अहिंसा सर्वोत्तम साधन है' में अटल विश्वास तथा अटूट श्रद्धा होने के कारण स्वतंत्रता के लिए अहिंसा का मार्ग ही चुना। वीर भगत सिंह ने स्वतंत्रता के लिए बलिदान का मार्ग सर्वोत्तम साधन के नाते स्वीकार किया। सरदार पटेल के मन में भारत को संगठित रखने की आकांक्षा थी। उन्होंने परस्पर वार्ता द्वारा प्रेरित करने तथा शक्ति का प्रयोग करना उचित समझा। स्वामी विवेकानन्द विश्वास करते थे कि भारत के युवकों व युवतियों में आंतरिक कमजोरियों पर विजय प्राप्त करने तथा बाह्य उपलब्धियाँ प्राप्त करने की क्षमता है। उन्होंने युवा पीढ़ी की आंतरिक सुप्त शक्तियों को जगाकर उनका सदुपयोग करने की और ध्यान दिलाया तथा स्वयं भी लोगों में जागृति लाने के कार्य में संलग्न हुए। उन्होंने लोगों को अनुभव कराया कि अंग्रेज़ उन पर अत्याचार कर रहे थे तथा समय की मांग थी कि अंग्रेजों को भारत से बाहर भगाएँ। उन्होंने संसार को संदेश दिया कि प्रकृति का अंतिम उद्देश्य मनुष्य के आध्यात्मिक रूप से जागृत करना है।
‘टाटा समूह' ने विकास हेतु प्रक्रिया में सुधार की ओर ध्यान केंद्रित किया है। उद्योग, व्यापार, संप्रदाय (धर्म), खेल, संगीत, कला एवं विज्ञान आदि क्षेत्रों के नेताओं में एक ही गुण सर्वसामान्य है- वह है ‘पूर्णरूप से एकाग्रचित्त होकर वाञ्छित परिवर्तन लाने की आकांक्षा' ।
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