फलौदी माता के दरबार में एक कुम्भ यह भी

भारत के प्रतिष्ठित वर्ग में सबसे पहले फलौदी माता के दरबार में प्रति बारहवें वर्ष के कुम्भ में सामूहिक विवाह सम्मेलन की रीति को लागू करने वालों में भी इसी मेड़तवाल समाज को माना जाता है। तब से आज तक इस समाज के लोग सामूहिक विवाह सम्मेलनों में तन-मन-धन से सहयोग करते हैं और अपने स्वजातीय पुत्र-पुत्रियों का विवाह करते हैं, जो वर्तमान भारतीय समाज को एक विशिष्टदेन है।


भारत में बारह वर्ष में एक बार आयोजित होनेवाले प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जयिनी के कुम्भ-पर्वो के बारे में तो हर नागरिक को जानकारी है, परन्तु इन चारों के अतिरिक्त एक और भी कुम्भ है। देश के इस पाँचवें कुम्भ का आयोजन राजस्थान के कोटा जिले के ‘खैराबाद गाँव में स्थित फलौदी माता के दरबार में होता है। यह कुम्भ यहाँ प्रति बारहवें वर्ष वसन्त पञ्चमी के दौरान आरम्भ होकर एक सप्ताह तक चलता है। खैराबाद रामगंज मण्डी रेलवे स्टेशन से मात्र डेढ़ किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। रामगंजमण्डी रेलवे स्टेशन दिल्ली-कोटा-मुम्बई बड़ी रेलवे लाईन पर स्थित है जो कोटा से 65 किमी दूरी पर है। कोटा राज्य के महाराव रामसिंह ने इस स्थान का नाम अपनी स्मृति में रखवाया था, जो पत्थरों (कोटा स्टोन) के व्यवसाय व धनिये की मण्डी के रूप में देश-विदेश में चर्चित हो गया है।



खैराबाद में ही डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर को पाषाण-निर्मित लाखों वर्ष पुराने औज़ार मिले थे। अतः यह स्थान प्राग्मानव की स्थली तो रहा ही है, साथ ही मेड़तवाल-महाजनों का भारत का सबसे बड़ा तीर्थ भी है। आज खैराबाद की ख्याति देश-विदेश में इसी तीर्थ की वजह से है और यह तीर्थ है मेड़तवालों की कुलदेवी ‘फलौदी माता' का।


जनश्रुतियों से ज्ञात होता है कि मारवाड़ में मेड़ता के राजा मेड़तसेन और उनकी रानी चम्पावती ने बारह वर्षों तक भगवान् शिव एवं देवी पार्वती की तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने राजा को व देवी पार्वती ने रानी को दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा। राजा-रानी ने वरदान चाहा कि हमारा नाम संसार में चले तथा वंश-वृद्धि सनातन रहे। तब शिव-पार्वती ने दोनों को वरदान दिया कि तुम्हें पुत्रों की प्राप्ति होगी। पार्वती ने रानी से कहा ''मैं तुम्हारी कुलदेवी के रूप में पूजी जाती रहूँगी।'' पार्वती ने रानी को अमरफल प्रदान किया। उसी समय से देवी पार्वती अमरफल प्रदान करने के कारण ‘फलौदी' कहलाईं और शक्तिरूपा बनकर मेड़तावालों की आराध्या देवी कहलाने लगीं। मेड़तवाल समाज झालरापाटन के प्रवक्ता रामबाबू गुप्ता बताते हैं कि परम्परा में मेड़तवाल महाजन मूल रूप से ‘मेड़तावाले माहेश्वरी महाजनवर्ग से ही अपना उत्स मानते है। अतः माहेश्वरी समाज भी फलौदी माता को अपनी कुलदेवी मानता है। गुप्ता के अनुसार ‘मेड़तावाले माहेश्वरी' शब्द से ही कालान्तर में अपभ्रंशित होकर ‘मेड़तवाल' शब्द बना है।


प्रति बारहवें वर्ष वसन्त पञ्चमी पर खैराबाद की इसी फलौदी माता के दरबार में कुम्भ का आयोजन अखिल भारतीय स्तर पर होता है। कुम्भ के समय खैराबाद व रामगंजमण्डी क्षेत्र की रौनक अविस्मरणीय होती है। पूरा क्षेत्र दुल्हन की भाँति जगमगा उठता है। देश के अनेक राज्यों में बसे मेड़तवाल महाजन समाज के परिवार पूरी श्रद्धा के साथ इसमें सम्मिलित होते हैं तो देश के दूरदराज अञ्चलों में बसे मेड़तवाल समाज के अनेक वर्ग के श्रद्धालु अपने परिवार सहित यहाँ आते हैं। ये सभी श्रद्धालु इस बारह-वर्षीय कुम्भ की प्रतीक्षा वर्षभर पूर्व से ही करने लगते हैं। और-तोऔर ये लोग दस-दस माह पूर्व आकर 1,000 से 3,000 रुपये में अपने लिए कमरे सुरक्षित करवा लेते हैं। कुम्भ के समय यहाँ इतनी बड़ी संख्या में लोग आते हैं कि खैराबाद व रामगंजमण्डी से दसपन्द्रह किलोमीटर दूर बसे मोड़क व सुकेत तथा आसपास के कस्बों तक के सारे मकान भर जाते हैं। मण्डी से खैराबाद के मैदानों में टेंट लगाकर समस्या का हल निकालने का प्रयास भी असफल ही रहता है। यहाँ मेड़तवालों के अनेक वर्गों के समाज की जीवन-झाँकी का दर्शन ही सर्वाधिक आकर्षक होता है। इस कुम्भ में अनेक वर्ग के लोग जहाँ एक ओर फलौदी माता के दर्शन करने व समस्या-निदान हेतु प्रार्थना करने आते हैं, वही सारे मेड़तवाल महाजन अपने बच्चों के लिए माता से मन्नतें मांगते हैं, तो अनेक लोग वर-वधु की तलाश में अपने परिचय का दायरा विस्तृत करते हैं। इस कुम्भ में अन्य चार महाकुम्भ की भाँति ही देश के अनेक प्रसिद्ध साधुसन्तों व चमत्कारी शाक्त मत के अनुयायियों का आगमन होता है, जिनके धार्मिक प्रवचन व चमत्कार यहाँ बने विशाल पण्डालों व खुले स्थानों में होते हैं। मेड़तवाल समाज की ओर से बनाई कुम्भ समिति द्वारा यहाँ जल, भोजन, भण्डारों की पूर्ण व्यवस्था होती है। इस कुम्भ में अनेक प्रकार के आयोजन होते हैं, जिनमें सामाजिक बुराइयाँ, दहेज, मृत्युभोज आदि के विरुद्ध जनचेतना तैयार करना, नियम बनाना आदि होता है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि भारत के प्रतिष्ठित वर्ग में सबसे पहले फलौदी माता के दरबार में प्रति बारहवें वर्ष के कुम्भ में सामूहिक विवाह सम्मेलन की रीति को लागू करनेवालों में भी इसी मेड़तवाल समाज को माना जाता है। तब से आज तक इस समाज के लोग सामूहिक विवाह-सम्मेलनों में तन-मन-धन से सहयोग करते हैंऔर अपने स्वजातीय पुत्र-पुत्रियों का विवाह करते हैं, जो वर्तमान भारतीय समाज को एक विशिष्ट देन है। मेड़तवाल समाज का मुख्य व्यवसाय लेन-देन एवं व्यापार है। श्री और समृद्धि से युक्त तथा भारत


श्री और समृद्धि से युक्त तथा भारत के अभिजात्य वर्ग की श्रेणी में आने से, कुम्भ में इन लोगों के रंग-बिरंगे कपड़ों में सजे-धजे स्त्री-पुरुष-बच्चे व अनेक वर्ग के लोगों के पहनावे देखते ही बनते हैं। फिर यहाँ धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन, जिनमें भजन, धौली कलश, यात्रा-बोली, फलौदी माता की प्रतिमा का विशाल जुलूस, अद्भुत राजसी सवारियाँ- सभी कुछ तो दिल हरनेवाले होते हैं। रात्रि को कवि सम्मेलनों का विशाल आयोजन, भजन, प्रवचन व विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों की रंग-बिरंगी प्रस्तुतियाँ जब सतरंगी विद्युतधारा के रंगों में मिलती हैं, तो पूरा क्षेत्र जगमगा उठता है, जिसकी शोभा अन्य चार कुम्भों से किसी प्रकार कम नहीं होती है।


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