प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय एक विश्वव्यापी संस्था है। इस संस्था की स्थापना दादा लेखराज खूबचन्द कृपलानी (1876-1969) ने की, जिन्हें संस्था में ‘प्रजापिता ब्रह्मा' के नाम से जाना जाता है। दादा लेखराज अविभाजित भारत में हीरों के व्यापारी थे। वे बाल्यकाल से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। 60 वर्ष की आयु में उन्हें परमात्मा के सत्य स्वरूप को पहचानने की दिव्य अनुभूति हुई। उन्हें ईश्वर की सर्वोच्च सत्ता के प्रति खिंचाव महसूस हुआ। इसी काल में उन्हें ज्योतिस्वरूप निराकार परमपिता शिव का साक्षात्कार हुआ। इसके बाद धीरे-धीरे उनका मन मानव-कल्याण की ओर प्रवृत्त होने लगा। उन्हें सांसारिक बंधनों से मुक्त होने और परमात्मा का मानवरूपी माध्यम बनने का निर्देश प्राप्त हुआ। उसी की प्रेरणा के फलस्वरूप सन् 1936 में उन्होंने इस विराट् संगठन की बुनियाद रखी। इस संस्था की स्थापना के लिए दादा लेखराज ने अपना विशाल कारोबार कलकत्ता में । अपने साझेदार को सौंप दिया। फिर वह अपने जन्मस्थान हैदराबाद (वर्तमान सिंध प्रांत, पाकिस्तान) लौट आये। यहाँ पर उन्होंने अपनी सारी चल-अचल संपत्ति इस संस्था के नाम कर दी। तत्पश्चात्, कुछ वर्षों बाद दादा लेखराज के भौतिक शरीर के माध्यम से परमात्मा शिव ने ज्ञान सुनाना आरंभ किया जो सन् 1969 में दादा लेखराज के देहावसान तक जारी रहा। यह ईश्वरीय परिवार पाकिस्तान से माउंट आबू, राजस्थान स्थानांतरित होने पर 'ॐ मण्डली' के स्थान पर 'प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय' कहलाने लगा। प्रारम्भ में इस संस्था में केवल महिलाएँ ही थींबाद में दादा लेखराज को 'प्रजापिता ब्रह्मा' का नाम दिया गया। जो लोग आध्यात्मिक शान्ति पाने के लिए 'प्रजापिता ब्रह्मा' द्वारा उच्चारित सिद्धान्तों पर चले, वे ‘ब्रह्मकुमार और ‘ब्रह्मकुमारी' कहलाये तथा इस शैक्षणिक संस्था को 'प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय' नाम दिया गया। इस विश्वविद्यालय द्वारा प्रदत्त उपाधियों को वैश्विक स्वीकृति प्राप्त हुई है।



प्रजापति ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय का अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय माउंट आबूराजस्थान में है। आज विश्व के 137 देशों में प्रजापिता ब्रह्मकुमारी की 8,500 अधिक शाखाएँ हैं। इन शाखाओं में 10 लाख विद्यार्थी प्रतिदिन नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण करते हैं।


प्रजापिता ब्रह्माकुमारी का प्रतीक चिह्न है- त्रिमूर्ति शिव का चित्र। इस चित्र में निराकार परमपिता परमात्मा शिव के तीन दिव्य कर्तव्यों के साथ-साथ इस सृष्टि पर सन् 1936-37 से चल रहे ईश्वरीय कार्य के भूत, वर्तमान और भविष्य काल की भी पूर्ण जानकारी है।