सनातन-धर्म ही हमारे लिए राष्ट्रीयता है”

विवेकानन्द के समान ही श्रीअरविन्द ने भी कहा कि जिसे हम हिंदू-धर्म कहते हैं वह वास्तव में सनातनधर्म है, क्योंकि यही वह विश्वव्यापी धर्म है जो दूसरे सभी धर्मों का आलिंगन करता है। यदि कोई धर्म विश्वव्यापी न हो तो वह सनातन भी नहीं हो सकता। कोई संकुचित धर्म, सांप्रदायिक धर्म, अनुदार धर्म कुछ काल और किसी मर्यादित हेतु के लिये ही रह सकता है। यही एक ऐसा धर्म है जो अपने अंदर विज्ञान सायंस के आविष्कारों और दर्शनशास्त्र के चिन्तनों का पूर्वाभास देकर और उन्हें अपने अंदर मिलाकर जड़वाद पर विजय प्राप्त कर सकता है। यही एक धर्म है जो मानवजाति के दिल में यह बात बैठा देता है कि भगवान् हमारे निकट हैं, यह उन सभी साधनों को अपने अंदर ले लेता है जिनके द्वारा मनुष्य भगवान् के पास पहुँच सकते हैं। यही एक ऐसा धर्म है जो प्रत्येक क्षण, सभी धर्मों के मानते हुए इस सत्य पर जोर देता है कि भगवान हर आदमी और हर चीज में हैं तथा हम उन्हीं में चलतेफिरते हैं और उन्हीं में हम निवास करते हैं। यही एक ऐसा धर्म है जो इस सत्य को केवल समझने और उसपर विश्वास करने में ही हमारा सहायक नहीं होता बल्कि अपनी सत्ता के अंग-अंग में इसका अनुभव करने में भी हमारी मदद करता है। यही एक धर्म है जो संसार को दिखा देता है कि संसार क्या है- वासुदेव की लीला। यही एक ऐसा धर्म है जो हमें यह बताता है कि इस लीला में हम अपनी भूमिका अच्छीसे-अच्छी तरह कैसे निभा सकते हैं, जो हमें यह दिखाता है कि इसके सूक्ष्म-सेसूक्ष्म नियम क्या हैं, इसके महान्-से-महान् विधान कौन-से हैं। यही एक ऐसा धर्म है जो जीवन की छोटी-से-छोटी बात को भी धर्म से अलग नहीं करता, जो यह जानता है कि अमरता क्या है और जिसने मृत्यु की वास्तविकता को हमारे अंदर से एकदम निकाल दिया है।



श्रीअरविन्द ने गर्व से कहा है कि जब यह कहा जाता है कि भारतवर्ष ऊपर उठेगा तो उसका अर्थ होता है सनातन-धर्म ऊपर उठेगा। जब कहा जाता है कि भारतवर्ष बढ़ेगा और फैलेगा तो इसका अर्थ होता है सनातन-धर्म बढ़ेगा और संसार पर छा जायेगा। धर्म की महिमा बढ़ाने का अर्थ है देश की महिमा बढ़ाना। श्रीअरविन्द के अनुसार यह हिंदू-जाति सनातन-धर्म को लेकर ही पैदा हुई है, उसी को लेकर चलती है और उसी को लेकर पनपती है। जब सनातन-धर्म की हानि होती है तब इस जाति की भी अवनति होती है और जब सनातन-धर्म का उत्थान होता है, तब इस जाति का भी उत्थान होता है। सनातन-धर्म ही हमारे लिए राष्ट्रीयता है। धर्म के लिये और धर्म के द्वारा ही भारत का अस्तित्व है।