भारत में पादप-किस्मों और कृषक-अधिकारो की सुरक्षा

भारत-जैसे देश के लिए विद्यमान अंतरराष्ट्रीय मॉडलों के अतिरिक्त या उनके स्थान पर विभिन्न प्रकार की सुरक्षा की आवश्यकताअनुभवकी गई। कृषि ने हमारे देश की अधिकांश जनसंख्या को रोजगार उपलब्ध कराया है तथा यह इस जनसंख्या की आजीविका का प्रमुख साधन है। उल्लेखनीय है कि देश की कुल खेतिहर जनसंख्या का लगभग 65 प्रतिशत भाग में छोटे और सीमांत किसानों का 82 प्रतिशत है। अतः पादप-प्रजनकों और परंपरागत कृषक-समुदायों के हितों की सुरक्षा के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता थी।


बौद्धिक सम्पदा अधिकार


अर्थशास्त्र पर आधारित ज्ञान के वर्तमान युग में बौद्धिक सम्पदा अधिकार किसी राष्ट्र की प्रगति और विकास के मुख्य उपकरण हैं। व्यापक रूप से बौद्धिक सम्पदा का अर्थ उन कानूनी अधिकारों से है जो औद्योगिक, वैज्ञानिक, साहित्यिक और कलात्मक क्षेत्रों में बौद्धिक क्रियाकलापों के परिणामस्वरूप प्राप्त होते हैं। दो प्रमुख कारणों से देशों के अपने बौद्धिक सम्पदा की सुरक्षा-संबंधी अधिकार हैं। पहला, सृजकों को अपने सृजनात्मक कार्यों तक पहुँचने के लिए नैतिक और आर्थिक अधिकारों की वैधानिक अभिव्यक्ति प्रदान करना और दूसरा, सरकारी नीति के उचित अनुपालन के लिए सृजनात्मकता को बढ़ावा देना और सृजन के परिणामों को लागू करते हुए उन्हें प्रसारित व प्रचारित करना, ताकि ईमानदार व्यापार प्रोत्साहित हो सके जो किसी देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। सामान्य रूप से कहा जाए तो बौद्धिक सम्पदा-संबंधी कानून का उद्देश्य सृजनकर्ताओं तथा अन्य उत्पादों के बौद्धिक सामान्य व सेवाओं को उन उत्पादनों के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए एक निश्चित समय-सीमा के अंतर्गत अधिकार प्रदान करना है।


बौद्धिक सम्पदा अधिकार वे कानूनी अधिकार हैं जिनसे अधिकार प्राप्तकर्ता के प्राधिकार के बिना सुरक्षित विषयवस्तु को एक निश्चित अवधि के दौरान किसी तीसरे पक्ष को उसका उपयोग करने से निषिद्ध किया जाता है।



पौधा-किस्मों पर बौद्धिक सम्पदा अधिकार 


प्रौद्योगिकी के अन्य क्षेत्रों के समान कृषि में भी अनुसंधान और प्रौद्योगिकी-विकास, बौद्धिक सम्पदा की श्रेणी में आते हैं। कृषि, जिसे मानव के निरंतर हस्तक्षेप से विकसित किया गया है, भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। भारत-जैसे बृहत जैवविविधतावाले देश में पौधों में विद्यमान वैविध्य ने कृषि के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आदिवासी तथा कृषक-समुदायों ने अनेक पीढ़ियों से आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण पौधों के सुधार की दिशा में उन्हें उगाने, उनका चयन करने और संरक्षण करने के माध्यम से उल्लेखनीय योगदान दिया है। बदलते हुए वैश्विक पर्यावरण में ऐसी और अधिक प्रतिरोधी किस्मों के विकास की आवश्यकता होगी, जो नये पर्यावरण के प्रति और अधिक अनुकूल हों। इन स्थितियों से पौधों पर अनुसंधान-योग्य अनेक मुद्दे उभरे हैं। उल्लेखनीय है कि ये खाद्य का प्रमुख स्रोत हैं तथा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लोगों के सामान्य आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।


भारत-जैसे देश के लिए विद्यमान अंतरराष्ट्रीय मॉडलों के अतिरिक्त या उनके स्थान पर विभिन्न प्रकार की सुरक्षा की आवश्यकता अनुभव की गई। कृषि ने हमारे देश की अधिकांश जनसंख्या को रोजगार उपलब्ध कराया है तथा यह इस जनसंख्या की आजीविका का प्रमुख साधन है। उल्लेखनीय है कि देश की कुल खेतिहर जनसंख्या के लगभग 65 प्रतिशत भाग में छोटे और सीमांत किसानों का भाग 82 प्रतिशत है। अतः पादप-प्रजनकों और परंपरागत कृषक-समुदायों के हितों की सुरक्षा के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता थी। ट्रिप्स-समझौते के अनुच्छेद 27(3)(बी) के अंतर्गत राष्ट्र की आवश्यकता तथा अंतरराष्ट्रीय उत्तरदायित्वों को ध्यान में रखते हुए भारत में पादप-किस्मों की सुरक्षा के लिए एक सु जेनेरिस-प्रणाली अपनाई और भारत सरकार ने ‘पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण (पीपीवी और एफआर) अधिनियम, 2001' लागू किया। यह अधिनियम न केवल पादप-किस्मों को बौद्धिक सम्पदा के अधिकार प्रदान करने की दृष्टि से अपनी किस्म का पहला अधिनियम था, बल्कि इसके अंतर्गत किसानों को भी उनकी नई, विद्यमान और कृषक किस्मों की सुरक्षा के अधिकार प्रदान किए गए। इसके अंतर्गत पादप आनुवंशिक संसाधनों पर खाद्य एवं कृषि संगठन की अंतरराष्ट्रीय संधि तथा जीवविज्ञानी विविधता के समझौते की भावना को ध्यान में रखते हुए किसानों के अधिकारों पर सकारात्मक अधिकारों के रूप में बल दिया गया।


पीपीवी और एफआर-नियमावली 12 सितम्बर, 2003 को अधिसूचित हुई और पीपीवी और एफआर विनियम 7 दिसम्बर, 2006 को अधिसूचित हुए।


अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों को लागू करने के लिए केन्द्र सरकार ने 11 नवम्बर 2005 को 'पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण' की स्थापना की जिसका कार्यालय नयी दिल्ली में है। पादप-किस्मों के पंजीकरण में सुविधा प्रदान करने के लिए प्राधिकरण ने पादप किस्म पंजीकरण के दो शाखा-कार्यालय खोले हैं, एक बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, राँची में और दूसरा, असम कृषि विश्वविद्यालय, गुवहाटी में। हाल ही में भारत सरकार ने तीन नये शाखा- कार्यालय, शिमोगा (कर्नाटक), पालमपुर (हिमाचलप्रदेश) तथा पुणे (महाराष्ट्र) में स्थापित किये हैं।


आगे और----