भारतीय किसान संघ क्यों?

आज सभी किसान के हमदर्द बनते हैं। सभी 'राजनीतिक दल तथा उनके अंग के रूप में कार्य करनेवाले किसान-संगठन किसानों के हितों की चर्चा अपने भाषणों में और समाचार-पत्रों के माध्यम से करते रहते हैं। किन्तु सरकारी आँकड़े बताते हैं कि किसान लगातार गरीबी-रेखा के नीचे जा रहा है। आज किसानों का अपना निजी, गैर-राजनीतिक स्तर पर कोई संगठन नहीं है जो उन्हें उनकी उपज का उचित मूल्य तथा सभी प्रकार के सरकारी, अर्ध-सरकारी और गैर-सरकारी शोषणों से मुक्ति दिला सके। स्वाभिमान, सम्मान के साथ अपनी संगठित शक्ति के आधार पर बिना किसी राजनीतिक दल का पिछलग्गू बने, अपनी सभी उचित माँगों को सत्ता से मनवा सके, इस कार्य के लिए भारतीय किसान संघ का निर्माण हुआ है।


स्थापना


उत्तरप्रदेश तथा विदर्भ में किसान संघ का कार्य 1971 में प्रारम्भ हुआ। इसके अतिरिक्त दक्षिण के कुछ प्रान्तों में भी कार्य शुरू हुआ था। संगठन को अखिल भारतीय स्वरूप 4 मार्च, 1979 की कोटा (राजस्थान) के सम्मेलन में दिया गया जिसमें तमिलनाडु व असम को छोड़कर देश के सभी प्रान्तों से किसान-प्रतिनिधि आये थे। 1,500 से ऊपर किसानों ने इस सम्मेलन में भाग लिया। इस अवसर पर भारतीय किसान संघ का एक सुविचारित संविधान भी स्वीकृत हुआ।



‘किसान' की परिभाषा


सन् 1936 के जुलाई माह में बिहार के नियामतपुर में ऑल इण्डिया किसान कमेटी की बैठक हुई जिसमें ऑल इण्डिया किसान सभा का संविधान स्वीकृत किया गया। उसमें किसान की या खेत-मजदूर की परिभाषा नहीं की गई थी। ऑल इण्डिया किसान सभा के प्रथम अधिवेशन के अपने अध्यक्षीय भाषण में स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने कहा कि किसान सब तरह के खाद्यान्न तथा कच्चे माल के उत्पादक तथा आपूरक हैं। जिनके पास जमीन है, वे किसान हैं; और जो भूमिहीन हैं, वे मजदूर हैं। । सन् 1929 में बिहार प्रान्त किसान सभा के संविधान में किसान की परिभाषा करते हुए कहा गया कि वह व्यक्ति किसान है जो खेती पर ही प्रमुख रूप से अपनी आजीविका के लिए अवलम्बित है और वह जो किसानों का संरक्षक है।


मौलिक अधिकारों की सूची स्वीकार करते समय इस सभा ने किसान की यह परिभाषा की कि किसान वह व्यक्ति है जिसके जीविकोपार्जन का प्रमुख साधन खेती है। परिभाषा में आज के रैयत-जैसे छोटे जमींदार भी थे जिनके लिए कृषि एक आवश्यकता है। खेत-मजदूर में उन सबका समावेश होता है जिनको उनके मालिक ने कुछ भूखण्ड़ दिए हैं।


कोमिल्ला-अधिवेशन के अपने अध्यक्षीय भाषण में स्वामी जी ने कहा कि खेतिहर मजदूर भूमिहीन किसान हैं और वे किसान- आन्दोलन के अभिन्न अंग हैं। किसान-आन्दोलन के गया- अधिवेशन में खेतिहर मजदूरों पर एक प्रस्ताव पारित किया गया और किसान-सभाओं को आदेश दिया गया कि वे खेतिहार मजदूरों की मांगें हासिल करने लिए प्रयत्नशील रहें तथा जहाँ-जहाँ खेतिहर मजदूरों की यूनियनें विद्यमान हैं, वहाँ-वहाँ उनके साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बढ़ायें।


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