छत पर फल, साग-सब्जी एवं औषधीय पौधों की खेती

बढ़ती जनसंख्या की कृषि के अतिरिक्त अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति से जमीन की उपलब्धता, समय के साथ-साथ कम होती जा रही है, जिसका प्रभाव हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों के अतिरिक्त शहरों में भी दिखाई दे रही है। खासकर बड़े शहरों के आसपास तो खेती की जमीन कंक्रीट के जंगलों में तब्दील होती जा रही है। इससे शहरी क्षेत्र के पर्यावरण में प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है, हरियाली की कमी से तापमान में वृद्धि हो रही है। कृषि- उत्पाद, खासकर साग-सब्जी एवं फलों की बढ़ती मांग से महंगाई में भी वृद्धि हो रही है। शहरी क्षेत्रों में खेती/घरेलू बागवानी (किचन गार्डन) हेतु भूमि की उपलब्धता अत्यन्त सीमित है। इस परिप्रेक्ष्य में घरों की छत पर साग-सब्जी, फल-फूल की खेती को आधुनिक कृषि-तकनीक का उपयोग करते हुए बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे प्रत्येक परिवार की आवश्यकता की पूर्ति हेतु उच्च गुणवत्तायुक्त जैविक कृषि-उत्पाद प्राप्त किया जा सकता है। इससे घरेलू कार्बनिक कचरा-निपटान के साथ ही शहरी वातावरण को स्वच्छ बनाकर हरियाली में वृद्धि करते हुए स्थानीय पर्यावरण को अच्छा बनाया जा सकता है।



छत की खेती की उन्नत तकनीक/नवाचार तरीकों की चर्चा से पूर्व जैविक खेती के लाभ पर प्रकाश डालना आवश्यक है। बड़े शहरों, कस्बों व ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत लोग ऐसे हैं जिनके पास सब्जियों के उत्पादन के लिए पर्याप्त स्थान उपलब्ध नहीं है। इन परिस्थितियों में मकान की छत, छज्जों व मकान के चारों ओर की खाली जगह में जैविक विधि से कुछ मात्रा में सब्जियों का उत्पादन किया जा सकता है। विशेष रूप से छत का क्षेत्र काफी बड़ा एवं खुला होता है, जहाँ सूर्य का प्रकाश पर्याप्त मात्रा में पहुँचता है। इससे घर के सदस्यों को कुछ काम मिलेगा और घर का वातावरण हरा-भरा भी रहेगा; साथ ही, बच्चों को पेड़-पौधों के विषय में जानकारी भी प्राप्त होगी।


आजकल बाजार और मंडी में मिलनेवाली सब्जियाँ व फल विभिन्न प्रकार के कृषि-रसायनों के दुष्प्रभाव से ग्रसित हैं। जो मानव-सेहत के साथ-साथ वातावरण के लिए भी खतरनाक बनते जा रहे हैं।


फसलों पर कीटों व बीमारियों के भारी प्रकोप को देखते हुए किसान इस रसायनों को आवश्यक मात्रा से अधिक इस्तेमाल करते हैं। इसके अतिरिक्त मण्डियों में भी फल व सब्जियों पर कृषि-रसायनों का उपयोग आम बात होती जा रही है। इससे उत्पाद की गुणवत्ता में भारी गिरावट देखने को मिल रही है। शहरी क्षेत्रों से लगे पानी की निकासी के नालों के गंदे जल द्वारा सिंचित साग- सब्जी, विशेषकर पत्तेदार (भाजी) सब्जियों में हानिकारक भारी तत्त्वों की निर्धारित सीमा से अधिक होना मानव-स्वास्थ्य हेतु अत्यधिक हानिकारक है। जहर की अधिक मात्रा मानव-देह में प्रवेश करती जा रही है। शहरी क्षेत्रों में घरेलू कार्बनिक कचरा (साग-सब्जी के छिलके, बचे हुए खाद्य-सामग्री आदि) भी आसपास के वातावरण को गंभीर रूप प्रभावित करती है। साथ ही, स्वच्छता-अभियान में भी एक रुकावट का कार्य करती है। उपर्युक्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों के साथ ही शहरी क्षेत्रों में भूमि एवं जल-प्रबंधन के माध्यम से कृषि-क्षेत्र में उत्पादन को बढ़ाने हेतु पारम्परिक एवं नवाचार-पद्धतियों को अपनाया जाना ज़रूरी है।


आगे और-----