इक तो गाँव तुम्हारा, प्यारा

इक तो गाँव तुम्हारा, प्यारा उस पर मेरा, मन बंजारा काली-काली घटाओं के संग बंजारा मन, हवा में उड़ा जाये रे काली काली...


बहें सर, सर, सर-सर्द हवाएँ घूघट कलियों के उड़ जायें। पंखुड़ियाँ फूलों की उड़ उड़ देख रहीं भंवरों को मुड़ मुड़ राह भटकी बदरियों के संग अवारा बादल इश्क लड़ाये रे काली काली...



यहाँ झूल रहीं, हवाएँ झूले बादल आकर रास्ता भूले शाम संवर के नदिया किनारे जल में अपना रूप निहारे नदियां की लहरों पर चढ़ कर बंजारा मन लहरों पर लहराये रे काली काली...