किसान की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कॊन ?

 उद्योग-व्यवसाय में प्रायः कहा जाता है कि जितना अधिक जोखिम, उतना ही अधिक मुनाफा। परन्तु क्या यह बात कृषि-व्यवसाय पर भी लागू होती है? इस महत्त्वपूर्ण बात को समझने के लिए आपको किसी हार्वर्ड-शिक्षित या किसी नोबेल पुरस्कारप्राप्त अर्थशास्त्री की ज़रूरत नहीं है। इस तथ्य को आप स्वयं प्रत्यक्ष देख सकते हैं, कैसे, आइये आपको बताता हूँ। उदाहरण के लिए पानी की एक बोतल के 20 रुपये बनाम एक किलो गेहूं के 16.25 रुपये। हम सभी जानते हैं कि बाजार में पानी की एक लीटर की बोतल आजकल 20 रुपये में मिलती है। जबकि इस वर्ष के लिए केंद्र सरकार ने गेहूँ का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया है। 1625 रुपये प्रति किंटल, अर्थात् एक किलो गेहूं के लिए किसान को मिलेंगे मात्र 16.25 रुपये। एक लीटर पानी की बोतल की उत्पादन-लागत कितनी होगी? आप कितना भी दिल खोलकर खर्च जोड़ लें, तो भी वह 6-7 रुपये से अधिक नहीं होगा। अर्थात् उत्पादन-लागत का लगभग तीन गुना मुनाफा। जबकि इसकी तुलना में किसान को एक किलो गेहूँ पैदा करने में कितना खर्च करना पड़ता है- कृषि-लागत और मूल्य आयोग की इस वर्ष की रिपोर्ट के अनुसार एक किलो गेहूँ की उत्पादन लागत आती है 12.03 रुपये। इसमें बीमा व बाजार में ले जाने आदि का खर्च जोड़े, तो यह लागत होती है 13.25 रुपये और सरकार इस गेहूँ के लिए किसान को देगी 16.25 रुपये। इस प्रकार किसान को एक किलो गेहूँ पर लाभ मिलेगा केवल 3 रुपये, अर्थात् उत्पादन-लागत का लगभग 20 प्रतिशत मात्र; जबकि पानी की बोतल भरकर बेचनेवाला कमा रहा है 300 प्रतिशत।



अभी रुकिये, क्योंकि अभी व्यवसाय में जोखिम और उत्पादन-क्षमता के आधार पर वार्षिक लाभ का आकलन करना शेष है, जिसके बाद ही आप यह समझ पाएँगे कि किसान की दुर्दशा का वास्तविक कारण क्या है और क्यों पानी की बोतल बेचने का धंधा दिन-दूना और रात चौगुना की गति से कुलाँचे भर रहा है।


खेती में जोखिम


पानी की बोतल भरकर बेचने में जो जोखिम हो सकता है, वह गेहूं की खेती के मुकाबले नगण्य ही कहा जायेगा। जबकि गेहूँ की खेती करनेवाले किसान को, खेत की तैयारी करने से लेकर उपज को बाजार में बेचने तक, कितना जोखिम उठाना पड़ता है और कितनी अनिश्चितता होती है। खेती में, इसका अनुमान संभवतः न तो एयरकंडीशंड कमरों में बैठकर नीतियाँ बनानेवाले नौकरशाहों को है और न ही उस मीडिया को, जो किसी कृषि-उपज के दाम बढ़ जाने पर तो दिन-रात हाय-तौबा मचाने लगते हैं, लेकिन पानी की बोतल 20 रुपये की क्यों बिक रही है, इस पर कभी प्रश्न उठाने की जहमत भी नहीं उठाते।


पानी की बोतल में मुनाफा


उत्पादन-क्षमता के आधार पर आकलन करें, तो 1,000 लीटर प्रतिदिन की क्षमता के आधार पर पानी की बोतलें पैक करनेवाले को 13,000 रुपये रोज का मुनाफा होता है। जबकि एक हेक्टर में 30 किंटल प्रति हेक्टर पैदावार पर किसान को फायदा होगा केवल 9,000 रुपये का। अर्थात एक हेक्टेयर में किसान 5-6 माह तक दिन-रात हाड़-तोड़ मेहनत करने के बाद कमा पायेगा केवल 9,000 रुपये, जो पानी की बोतल भरकर बेचने वाले के एक दिन के मुनाफे से भी कम है। यही नहीं, देश में अधिकांश राज्यों में किसानों के लिए 5 हेक्टेयर अधिकतम कृषि-भूमि रखने की सीमा निर्धारित है। अर्थात एक किसान के पास यदि 5 हेक्टेयर भूमि है तो वह अधिकतम 45 हजार रुपये कमा सकता हैऔर यदि रबी व खरीफ - दोनों फसलों की बात करें तो 1 हेक्टेयरवाला किसान अधिकतम 18 हजार रुपये कमा सकता है। यहाँ यह बात ध्यान रहे कि देश में 70 प्रतिशत किसान ऐसे हैं, जिनके पास 1 हेक्टेयर से भी कम जमीन है। अतः अधिकांश किसानों के लिए अपने खेत से 18 हजार रुपये प्रति वर्ष प्राप्त करना भी एक सपना मात्र है। आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं कि खेती से एक वर्ष में 18 हजार रुपये कमानेवाला किसान कैसे अपना पाँच सदस्योंवाला परिवार चला सकता है।


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