कृषि-कार्यो के भविष्य की चुनौती जल संकट

भोजन जीवन के लिए मूलभूत, शाश्वत, तथा विकल्पहीन आवश्यकता है। इसकी आपूर्ति का मुख्य स्रोत कृषि है। इसलिए मनुष्य के विकसित समाजों में कृषि-कार्यों का सदैव मुख्य स्थान रहा है। वर्तमान में जिस तेजी से इनसान की आबादी बढ़ रही है, उससे कृषि का क्षेत्र और अधिक महत्त्वपूर्ण होनेवाला है।


औद्योगिक एवं वैज्ञानिक क्रन्ति के कारण कृषि-कार्यों में मशीनों, रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, शोधित बीजों तथा सुनिश्चित एवं नियन्त्रित सिंचाई का प्रयोग कर विकसित देश परम्परागत खेती की तुलना में कई गुना अधिक उपज ले रहे हैं,



जिसे हमारा देश भी अपनाने को प्रयासरत है। परन्तु आर्थिक एवं वैज्ञानिक प्रगति के अभाव में यह फलीभूत नहीं हो पाया है। अभी भी देश की 60 से 70 प्रतिशत खेती परम्परागत तरीके से हो रही है, जिसमें फसलों की सिंचाई मुख्यतः वर्षा से तथा कुछ नहरों एवं नलकूप सहित अन्य साधनों से होती है। इस तरीके में देशी खाद एवं किसानों द्वारा एकत्र बीज और साधारण कृषि-यंत्रों का प्रयोग किया जाता है। फलस्वरूप उत्पादन सन्तोषजनक नहीं होता।


पृथिवी की जलवायु तथा पर्यावरण बदल रहा है, जिसमें वैज्ञानिक खेती में भी निरन्तर अध्ययन एवं निवेश की आवश्यकता है। परम्परागत खेती के लिए तो आनेवाला समय और अधिक चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि इसे आधुनिक बनाने के लिए पर्याप्त आधारभूत ढाँचा मौजूद नहीं है। हमारे देश के सन्दर्भ में विगत कई वर्षों से सिंचाई के अभाव (सूखे से) में असंख्य किसानों को मौत को गले लगाना पड़ा है। हाल के वर्षों में बारिश में आई कमी ने सिंचाई को अनिश्चितता प्रदान की है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो देश में कृषि को उन्नत तथा आधुनिक बनाने के लिए आधारभूत ढाँचे को विकसित करना बहुत जरूरी है, खासकर सिंचाई-व्यवस्था को।


उपर्युक्त परिस्थितियों के सन्दर्भ में कृषि-कार्यों की बेहतरी तथा उत्तरोत्तर विकास पर चिन्तन-मनन आज की महती आवश्यकता है, ताकि हमारी उभयजीविता तथा देश की अर्थव्यवस्था के स्तम्भ क्रमशः खाद्यान्न और कृषि-कार्यों के अस्तित्व पर कोई गम्भीर संकट न आये।


अच्छी कृषि एवं सुनिश्चितगामी उपज, निम्न प्रमुख तथ्यों पर आधारित होती है : 1. अच्छा बीज, 2. सिंचाई हेतु पानी, 3. उपज प्रेरक (खाद, कीटनाशक, आदि), 4. खेती की सम्यक् रीति और 5. अनुकूल जलवायु। वर्तमान परिदृश्य में सिंचाई हेतु पानी एवं जलवायु को छोड़कर अन्य सभी बातों पर काफी हद तक कृषि-विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिक, नियन्त्रण तथा अध्ययन रखते हैं। निरन्तर हो रहे शोधों एवं अनुसंधान के चलते इनके सस्ते, सुलभ तथा अधिक उपयोगी रूप से आने की सम्भावनाएँ भी तेजी से बढ़ रही हैं, परन्तु सिंचाई हेतु पानी की कमी मनुष्य की चहुँमुखी प्रगति के बाद भी लाइलाज़ संकट बनने की ओर है।


यूँ तो पृथिवी की सतह का 70 से 72 प्रतिशत हिस्सा समुद्र के रूप में अथाह जलराशि से आच्छादित है, परन्तु खारा होने की वजह से कृषि-कार्यों तथा पीने के लिए अनुपयोगी है। पृथिवी पर इस योग्य जल की मात्रा मात्र 2 से 3 प्रतिशत ही है। इसमें भी ज्यादातर ग्लेशियरों के रूप में जमा है। इस तरह अच्छे पानी की उपलब्धता बहुत ही कम है।


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