क्या थी रावण की पाँच योजनाएँ?

बच्चो! तुम सबने दूरदर्शन पर रामायण धारावाहिक देखा होगा और रामायण की कथाएँ अपने बड़ों से सुनी व पढ़ी भी होंगी। बात उस समय की है जब राम और रावण का युद्ध समाप्त हो चुका था। रावण मृत्यु की अवस्था में युद्धभूमि पर पड़ा था, परन्तु राम जी के चेहरे पर खुशी के भाव और आँखों में विजय की चमक न थी। यह देखकर लक्ष्मण को बहुत हैरानी हुई। वे राम जी से कुछ पूछते, उससे पहले राम उनसे स्वयं बोल उठे, “लक्ष्मण हमारी विजय अवश्य हुई, परन्तु आज इस संसार का एक महापण्डित और परम विद्वान् संसार छोड़कर जा रहा है। तुम जाकर महान् ज्ञानी रावण से उसके अन्तिम समय में कुछ ज्ञान प्राप्त कर लो।''



लक्ष्मण राम की बात सुनकर अचम्भित रह गये। उन्होंने राम से कहा, “भैया, जिस दुष्ट ने भाभी का हरण किया, उससे मैं ज्ञान प्राप्त करूं?'' तब श्रीराम ने लक्ष्मण से पुनः कहा, “हाँ लक्ष्मण, अभी तुम रावण के पास जाओ, रावण के पापों का दण्ड उसे मिल चुका है। अब वह मृत्यु के समीप है। तुम शीघ्र जाकर उससे कुछ सीख लो। यह अवसर फिर नहीं मिलेगा।''


श्रीराम की बात सुनकर लक्ष्मण ने दर्द से कराहते, रक्त और मिट्टी से सने पहाड़ के समान रावण को रणक्षेत्र में पड़ा देखा। वे अपने अस्त्र-शस्त्र लिए उनके सिरहाने जाकर खड़े हो गए और बोले, “हे महान् विद्वान् रावण! मैं राम का छोटा भाई लक्ष्मण आपका आपसे कुछ ज्ञज्ञन सीखना चाहता हूँ। मुझे कुछ विद्याएँ दीजिए।''


लक्ष्मण की बात सुनकर रावण ने एक बार उसे देखा, लेकिन कोई उत्तर न देकर मुँह फेर लिया। यह देखकर लक्ष्मण क्रोध में भरकर राम के पास गये। उन्होंने कहा, “भैया, रावण तो कुछ कहता ही नहीं, वह कुछ नहीं बताना चाहता।'' तब राम ने लक्ष्मण से कहा, “जब तुम रावण के पास गए थे, तब तुम कहाँ खड़े हुए थे ?'' लक्ष्मण ने कहा, “उसके सिर के पास।'' तब राम ने कहा, ‘‘ज्ञान देनेवाला व्यक्ति गुरु के समान होता है और ज्ञान लेनेवाला व्यक्ति शिष्य के समान। यदि तुम रावण के पास विनम्रतापूर्वक उसके पैर के पास खड़े होते, तो वह अवश्य तुम्हें उत्तर देता। तुम पुनः उसके पास जाओ और पैर के पास खड़े होकर विनम्रतापूर्वक उससे वार्तालाप करना।''


भाई की आज्ञा मानकर लक्ष्मण ने वैसा ही किया। इस बार वह रावण के पैरों के पास जाकर खड़े हुए और ज्ञान के लिए याचना की। रावण ने अपनी आँखें खोलीं। फिर कराहते हुए कहा, “हे लक्ष्मण! तुम ऐसे समय में आए हो, जब मेरा जीवन-दीप बुझने ही वाला है। इस समय मैं तुम्हें कौन-सी विद्या सिखाऊँ, मेरे पास समय बहुत कम है। मैंने अपने जीवन में बहुत ज्ञान अर्जित किया, कड़ी तपस्या करके बहुत-सी शक्तियाँ अर्जित कीं। उन शक्तियों का प्रयोग मैंने अपने स्वार्थ के लिए किया। इससे मेरे अनेक शत्रु हो गए, यहाँ तक कि मेरा छोटा भाई विभीषण भी मेरा विरोधी हो गया। मैंने सदा अपने शत्रु को स्वयं से छोटा और निर्बल समझा। मेरी इसी भूल ने आज मुझे इस स्थिति तक पहुँचाया।''


रावण ने आगे कहा, “सुनो लक्ष्मण, मैं विज्ञान में पारंगत था और संसार के बहुत-से गुप्त रहस्य मुझे मालूम थे। मेरे जीवन में पाँच योजनाएँ थीं, जो मैं आसानी से पूरी कर सकता था, परन्तु मैंने समय का कभी सदुपयोग नहीं किया और अपने कार्यों को कल पर टालता रहा। इसका परिणाम यह हुआ कि जो ज्ञान-विज्ञान मैं जानता था, और जिनसे संसार का भला हो सकता था, वह ज्ञान-विज्ञान मेरे साथ ही संसार से लुप्त हो जायेगा। मेरे आलस्य ने मेरी योजनाओं पर पानी फेर दिया और आज मैं मृत्यु के मुख में पहुँच चुका हूँ।''


लक्ष्मण ने कहा, “आपकी क्या योजनाएँ थीं जिन्हें आप पूरा न कर सके?''


रावण ने कहा, “हे लक्ष्मण, मेरी पाँच योजनाओं में पहली योजना धरती से स्वर्ग तक सोने की सीढ़ी बनाने की थी, जो मैं बना सकता था। दूसरी योजना अग्नि से धुएँ को समाप्त कर देने की थी, जो मेरे लिए बड़ी बात नहीं थी। अग्नि को धुएँ से रहित करने की विद्या मुझे आती थी। तुम्हें जानकर आश्चर्य होगा कि मैं मेरी तीसरी योजना थी काल (मृत्यु) को सदा के लिए नष्ट कर देना। मृत्यु के मर जाने के बाद इस दुनिया में कोई नहीं मरता, सब लोग अमर हो जाते। मृत्यु मेरी दासी थी और उसे मैंने बाँध रखा था। मैं उसे रोज धमकाता था कि मैं तुम्हें मार डालूंगा, परन्तु उसे मारने की बात मैं सदा कल पर टालता रहा। परिणाम यह हुआ कि आज मैं खुद मृत्यु के मुख में जा रहा हूँ। मेरी चौथी इच्छा थी समुद्र का पानी मीठा कर देना। ऐसा कर देने पर धरती पर जल की समस्या सदा के लिए दूर हो जाती। यह कार्य इसे पूरा करने के लिए मेरे पास शक्ति और साधन भी थे। मेरी अन्तिम योजना थी स्वर्ण में सुगन्ध भर देना। यह विद्या भी मुझे आती थी। ऐसा हो जाने पर असली और नकली सोने की पहचान आसानी से हो जाती और संसार का बहुत भला होता। परन्तु मैं सोचता था, जल्दी क्या है, मैं यह काम कर लूंगा।।


“देखो लक्ष्मण, आज मेरा काल आ गया, लेकिन कल कभी नहीं आया। तुम मेरी सीख सदा याद रखना कि आज का काम कल पर कभी मत छोड़ना। शत्रु को कभी छोटा मत समझना और अपने बल और विद्या का उपयोग संसार की भलाई में करना।'' इतना कहते-कहते रावण के नेत्र सदा के लिए बन्द हो गये।