वर्मी-कम्पोस्ट खाद : धरती को नया जीवन

कुछ दशकों के बाद रासायनिक खादों का जहर जब अपना असर दिखाने लगा तो अब न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में जैविक खेती जैविक खाद आदि की चर्चा जोरशोर से शुरू होने लगी। वर्तमान में जैविक खेती इस देश की सबसे बड़ी जरूरत है। इस जरूरत की अनदेखी करना रासायनिक खाद खेतों में डाल कर कृषि आधारित भारत को पूरी तरह बर्बाद करने की साजिश, भारत के मानुष और मिट्टी को क्रमशः मौत की ओर ले जाने वाले अपराध का जिम्मेवार आखिर कौन है? जनता की अदालत में जनता का अपराधी कौन है? इस देश की भावी पीढ़ी को जन्म से बीमार बनाने का अपराधी कौन है? आखिर इन अपराधों के लिए किस पर या किस-किस पर चलाया जाएगा मुकदमा?



वर्मीकम्पोस्ट के उत्पादन के सम्बन्ध में सबसे सकारात्मक पहलू यह है कि इसके लिए कच्चा माल (Raw material) आसानी से गाँव-घरों से प्राप्त हो सकता है। अतः गोबर, कचरे एवं पशुजनित अवशेषों के संकलन में वर्मीकल्चर मिलाकर एक सुगम तकनीकी के माध्यम से वर्मीकम्पोस्ट उत्पादित किया जा सकता है। इस प्रकार तुलनात्मक रूप से साधारण गोबर की खाद की तुलना में केंचुओं द्वारा निर्मित वर्मीकम्पोस्ट में लगभग 6 गुना अधिक नाइट्रोजन, 7 गुना ज्यादा फास्फोरस, 11 गुना ज्यादा कैल्शियम तथा 2 गुना ज्यादा कैडमियम पाया जाता है। इसके अतिरिक्तसूक्ष्मजीवियों की संख्या में भी कई गुना अधिक वृद्धि होती है। अन्य खादों जैसे गोबर खाद, पोल्टी बीट आदि में किण्वन (फरमेंटेशन) होने के चलते उसकी मूल प्रवृत्ति अधिकांशतः गर्म होती है परन्तु केंचुआ-जनित गतिविधियों के कारण वर्मीकम्पोस्ट का अंतस ठण्डा माना जाता है। जिससे मिट्टी की वायुवीय एवं जलधारण संरचना का विकास होता है।


वर्मी-कम्पोस्ट से लाभ


1. मिट्टी की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक दशा में सुधार


2. कृषि में प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन को बढ़ावा


3. टिकाऊ(सस्टेनेबल) कृषि प्रबंधन का प्रमुख आधार


4.  घरेलू, कृषिगत अथवा औद्योगिक अवशेषों का वृहद रूप में चक्रीय प्रबंधन तथा इनसे प्राप्त पदार्थों का मृदा संवर्धन में समायोजन


5. व्यवसायिक उत्पादन द्वारा ग्रामीण विकास में योगदान


6. पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि ।


फसल उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ वर्मीकम्पोस्ट मृदा में पौधों की नीमोटोड (कृमि) जनित बीमारियों के प्रबंधन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। टर्की में टमाटर, अंगुर, काली मिर्च एवं स्ट्रॉबेरी जैसी व्यवसायिक फसलों पर वर्मीकम्पोस्ट के प्रभावों का अध्ययन किया गया। इन प्रयोगों में केंचुओं के प्रभाव से मृदा में नीमेटोड (कृमिओं) की संख्या में अप्रत्याशित रूप से कमी दर्ज की गयी जिसके कारण इन कृमिओं द्वारा होने वाली बीमारियों की रोकथाम एवं प्रबंधन में मदद मिलती है। अमेरीका को फहूँद-जनित पौध-रोगों की रोक-थाम में भी सहायक बताया गया है। इसके प्रयोग से पिथियम, राइजोक्टोनिया तथा वर्टिसिलियम जैसे रोगकारी फर्फीदों की वृद्धि में कमी आती है और स्वस्थ पौधे प्राप्त किए जा सकते हैं। निष्कर्ष रूप में, वर्मीकम्पोस्ट मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणधर्म में वृद्धि के साथ-साथ पौध रोगों के उपचार एवं प्रबंधन में भी सहायक सिद्ध हो सकता है।


वर्मीकम्पोस्ट की सरल उत्पादन विधियों, आसानी से उपलब्ध कच्चे माल, समय एवं श्रम-साध्य उत्पादन एवं मृदा तथा पौधों की बढ़वार में इसके विशिष्ट योगदान के चलते कार्बनिक कृषि के बढ़ते चलन में इसके उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। फाउण्डेशन फॉर एग्रो-टेकनॉलाजी डेवलपमेंट एवं रिसोर्स मैनेजमेंट, वाराणसी द्वारा इसकी उत्पादन तकनीकियों को ग्रामीण विकास के हित में जन-जन पहुँचाने की पहल की गयी है। इसके अतिरिक्तअन्य कई स्वैच्छिक संगठनों, किसानों एवं स्वयं-सहायता समूहों तक इसके प्रयोग की जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं। आवश्यकता इस बात है कि जन-सहयोगी सेवाओं से जुड़ी संस्थाओं के इन प्रयासों का किसान लाभ उठाकर अपने खेतों में वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग को बढ़ावा दें जो न सिर्फ फसलोत्पादन के लिए बल्कि स्व-रोजगार को भी बढ़ावा देने हेतु सर्वोत्तम प्राकृतिक उपाय है।