आवश्यकता है जल-क्रान्ति की

रेगिस्तानी प्रदेश राजस्थान, जहाँ जल- संकट सदियों से है और चंडीगढ़- स्वतंत्रता के बाद पंजाब की राजधानी के रूप में शिवालिक की तलहटी में बसाया गया आधुनिकतम शहर, जिसके गर्भ में है पानी का अथाह भंडार। घटना इसी चंडीगढ़ की है। मैं उन दिनों चंडीगढ़ में था। एक दिन ऑटो में एक चंडीगढ़वासी मिले जो जयपुर जाने के लिए रेलवे स्टेशन जा रहे थे। चंडीगढ़ की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे वे। मैंने बीच में ही टोका। कहा आप ठीक ही कह रहे हैं, बहुत ही आधुनिक है यह शहर। जयपुर, जहाँ आप जा रहे हैं, वह भी चंडीगढ़ की तरह ही बसाया गया था राजधानी के रूप में। लेकिन इन दोनों शहरों में जमीन-आसमान का अंतर है। यह चंडीगढ़ पानी के ऊपर तैर रहा है, पर यहाँ मीलों चल लीजिए, कहीं एक गिलास पानी पीने को नहीं मिलेगा। इसके दूसरी ओर जयपुर-जहाँ पानी का स्थाई संकट है, पर वहाँ हर सड़क पर प्याऊ मिल जाएंगे, आप प्यासे नहीं रहेंगे, वह भी कोई पैसा दिए बिना। यह अंतर है आधुनिक चंडीगढ़ और पुराने जयपुर में।



यह केवल चण्डीगढ़ और जयपुर का अंतर नहीं है, वरन् उस सत्य से साक्षात्कार है जिस देवभूमि भारत में प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का कार्य माना जाता था, बदले में पैसे लेने का तो प्रश्न ही नहीं, आज उसी धरती पर बड़ी बेशर्मी से पानी की बोतल बेचकर मोटा मुनाफा कमाकर, स्वयं को सफल सिद्ध किया जा रहा है। और यह सब किया जा रहा है ‘पानी के संकट' का हौव्वा दिखाकर। यह सिर्फ पानी बेचने की गाथा नहीं वरन् हमारे 70 साला विकास की करुण गाथा भी है।


पानी की चर्चा जब होती है, तो रहीम की ये पंक्तियाँ सहसा स्मरण हो आती हैं-


रहीमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।


पानी बिना न ऊबरे मोती, मानस, चून।


संक्षेप में कहें तो व्यक्ति का पानी उतर गया तो उसका सब कुछ समाप्त। जल जो हमारी संस्कृति का अटूट अंग रहा, उसे आज कार्पोरेट जगत् के लिए एक कमाडिटी बना दिया गया। कितने हतभाग्य हैं हम कि हम अपने नागरिकों की प्यास भी नहीं बुझा सकते, इस काम के लिए बुला रहे हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों को! महानुभावो, आओ! आकर हमें पानी पिलाकर कृतार्थ करो। धिक्कार है इस विकास पर !!!


बिदेसिया जी आयेंगे, हमें पानी पिलाएँगे। क्या इसीलिए विदेशी शासकों को भगाने के लिए असंख्य कुर्बानियाँ दी गई थीं? हम तो उन कुर्बानियों की संख्या भी नहीं गिन सकते। पर पानी बेचने से कितनी रोकड़ कमाई, इसका हिसाब पाई-पाई का रखते हैं।


बिदेसिया ने हमें आकर बताया कि भारतवर्ष में पानी का संकट है, हमने झट मान लिया कि जी हुजूर आप सही कह रहे हैं!


हमने पूछा कि प्रभु अब क्या करें? उसने कहा, तुम कहो तो हम अपनी बोतल में पानी भरकर तुम्हें पिला देंगे! 


हमने कहा कि बहुत कृपा होगी प्रभु! उसने कहा कि बस अपनी नदी हमें दे दो। ।


हमने कहा कि इतनी सी बात, और। अपनी नदी दे दी।


उसने कहा कि बस जरा जेब ढीली । करनी होगी, पानी की बोतल की थोड़ी-सी कीमत देनी होगी।


हमने कहा कि कोई बात नहीं, बस हमें पानी पिला दो।


उसने कहा कि बस आँखें बंद करो।


हमने कहा कि कर ली।


बस उसने बोतल में पानी भर हमें थमाई और कहा कि सिर्फ बीस रुपये दो।


हमने कहा कि क्या गजब है, लो 20 रुपये क्या जितना चाहे उतना ले लो।


और अब हम गटागट पानी पी रहे हैं। राजपथ से पंचायत तक पानी की बोतल बेधड़क बिक रही है।


क्या देश में पानी की कोई कमी हैकभी इस बारे में सोचा ही नहीं।


आओ जरा देखें कि हमारे देश में कितना पानी उपलब्ध है और कितने की हमें ज़रूरत है। हमारे पास पानी की कोई कमी है भी या नहीं? हमारे पास कितना पानी अतिरिक्त है और हमारा पानी व्यर्थ ही पाकिस्तान की ओर बह रहा है या फिर समुद्र में समा जाता है।


पूरे विश्व में जल के मुख्यतः दो स्रोत हैं- 1. वर्षा से प्राप्त जल, 2. भूमिगत जल।


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