जल और ज्योतिष

जिस प्रकार जल को पञ्चमहाभूतों में प्रधानता प्राप्त है, उसी तरह " ज्योतिष में भी जल का स्थान विशिष्ट ही है। जैसे राजा सूर्य अग्नि से सम्बन्धित है, तो ग्रहों में रानी की संज्ञा प्राप्त चन्द्र ग्रह पूर्णतया जल का प्रतिनिधित्व करता है। राशियों में भी कर्क, वृश्चिक, मकर, कुम्भ व मीन को जल- सम्बन्धित राशि कहा जाता है। भावों में 4 चतुर्थ व 8 अष्टम व 12 द्वादश भाव को जलीय भाव माना जाता है। व्यक्ति के जीवन में जब यही जलद्योतक ग्रहों-भावों आदि की प्रमुखता का समय होता है, तो व्यक्ति जल-सम्बन्धित कार्यक्षेत्र का चुनाव करता है। इनके सम्बन्ध जितने दृढ़ होंगे, वे बलाबल के अनुसार अपना फल-प्रदान करेंगे। अल्प बली होने पर भी शुभता के संयोग पर यही ग्रह जलस्थान आदि की यात्रा के योग बनाते हैं। तीर्थ आदि के सेवन में प्रायः ये ग्रह ही अपनी शुभतावश व्यक्ति को तीर्थयात्रा, गंगा, आदि नदियों के स्थान का भ्रमण व स्नान का लाभ दिलाते हैं।



कर्मक्षेत्र से संबंधित होने पर यही ग्रह व्यक्ति को जलीय व्यवसाय अथवा नौकरी प्रदान करते हैं। जलीय व्यवसाय के अन्तर्गत ही दुग्ध, बर्फ का व्यवसाय, सोडावाटर, फैक्टरी इत्यादि, नौकरी के क्षेत्र में जलनिगम भी इन्हीं ग्रहों की अनुकूलता का प्रतिफल होता है। इतना ही नहीं, जब चन्द्र अन्य जलद्योतक अंगों से बल प्राप्त करता हुआ व्यवसायद्योतक अंगों को, विशेषतः कर्मस्थान को प्रभावित करता है, तो यह योग जातक की उच्चाकांक्षाओं की पूर्ति करनेवाला तथा जातक को अत्यन्त प्रतिष्ठित बनाता है। समुद्रपार यात्रादि के लिए भी ज्योतिष में जिन योगों का वर्णन प्राप्त होता है, वे जलीय भाव चतुर्थ, अष्टम व द्वादश के अन्तर्गत आते हैं, विशेषतः जब अष्टम भावाधिपति (जल-द्योतक) का सम्बन्ध तृतीयाधिपति (निज) से सम्बन्ध होता है। तथा इनके दशादि में संयोग होने पर ही समुद्रपार यात्रा का विचार होता है। वायुयान से यात्रा को लाभाधिपति का संयोग सम्पदित करता है। कुल मिलाकर जल का महत्त्व जैसे प्रकृति के लिए अपरिहारणीय है, वैसे ही ज्योतिष में भी जल की स्थिति अतीव महत्त्वपूर्ण है।