जल पर तैरते डीग के मनोहारी महल

राजस्थान प्रांत के भरतपुर जिले का एक कस्बा है डीग। यह भरतपुर से लगभग 34 किमी. दूर 25°47 उत्तरी अक्षांश तथा 77°32 पूर्वी देशान्तर में स्थित है। अल्पज्ञात होने पर भी यह कस्बा अपने कलात्मक सौन्दर्य, जल-व्यवस्था तथा उद्यानों से सुसज्जित महलों के कारण बहुत ही सुरम्य एवं मनोहारी स्थल है। स्कन्दपुराण तथा भागवतमाहात्म्य में दीर्घ या दीर्घापुर के रूप में इसका उल्लेख है। सम्भवतः यही दीर्घ कालान्तर में ‘डीग' नाम से संबोधित किया जाने लगा। ब्रज की चौरासी-क्रोशीय परिक्रमा में आनेवाला डीग भगवान् कृष्ण की लीलाओं का केन्द्र रहा है, इसे ‘लाठवन' भी कहा जाता है। यहअलवर, मथुरा, दिल्ली, भरतपुर तथा जयपुर आदि नगरों से राष्ट्रीय राजमार्गों द्वारा जुड़ा है।



भरतपुर के जाट-शासक बदनसिंह (1722-1756) ने डीग को भरतपुर राज्य की पहली राजधानी बनाया था। यह कभी भरतपुर के जाट-शासकों का ग्रीष्मकालीन आवास रहा करता था। यह छोटी-सी धार्मिक एवं ऐतिहासिक नगरी अपनी बेजोड़ किलेबंदी, अत्यधिक सुंदर बगीचों एवं भव्य महलों के कारण प्रसिद्ध है।


महाराज बदनसिंह ने इस स्थान पर किला व महल निर्मित करवाए जो उनके सौन्दर्य-बोध का प्रतीक है। बदनसिंह द्वारा 1722 ई. में महल का निर्माण करवाया गया जो ‘पुराना महल' के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में यह महल सरकारी कार्यालय का स्थान ले चुका है। डीग के किले का इतिहास अत्यन्त रोचक है। थून, जाटौली तथा अन्य गढ़ियों के पतन से बदनसिंह के भरतपुर राज्य का उदय हुआ था। 23 नवम्बर, 1722 ई. को थून व जाटौली के पतन के पश्चात् औपचारिक रूप से बदनसिंह ने स्वयं को जयपुर दरबार का निष्ठावान् सामंत बना लिया। इसी के परिणामस्वरूप सवाई जयसिंह ने बदनसिंह को ‘ब्रजराज' की उपाधि तथा नगाड़ा, निशान व पञ्चरंगी झण्डे के प्रयोग की अनुमति प्रदान की।


बदनसिंह ने युद्ध करके राज्य–विस्तार की अपेक्षा शान्ति और राजनीतिक कौशल से काम किया। उन्होंने डीग और भरतपुर के अजेय दुर्ग और सुंदर महलों का निर्माण करवाया। निरक्षर होने के पश्चात् भी बदनसिंह का सौन्दर्य-बोध आश्चर्यजनक था। इन सुंदर उद्यान व प्रासादों की भव्य रूपरेखा उन्होंने ही रची थी। बदनसिंह और सूरजमल ने आगरा व दिल्ली से रोजगार की तलाश में आनेवाले श्रेष्ठ कारीगरों को रोजगार प्रदान किया। उन्होंने कारीगरों तालाब बनाने, ईंटें पकाने, घास के सुंदर मैदान विकसित करने एवं फव्वारे बनानेवालों का काम दिया।


बदनसिंह के पुत्र महाराजा ब्रजेन्द्र सूरजमल बहादुर (1756-1767) ने सन् 1763 तक डीग के प्रसिद्ध भवनों का निर्माण कराया। प्रशासनिक मुख्यालय के रूप में उन्होंने भरतपुर को अधिक महत्त्व दिया, किन्तु डीग की महत्ता स्थापित करने के लिए डीग को दूसरी राजधानी के रूप में स्थान दिया। फलस्वरूप डीग और अधिक आकर्षक तथा समृद्ध होता चला गया। प्रायः ‘जाट-शैली' से विभूषित किए जानेवाले डीग के स्थापत्य का आकलन उसके महलों व भवनों से किया जाता है। डीग की स्थापत्य कला को किन्हीं विशिष्ट चरणों में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता, वरन् इनके निर्माण में विभिन्न शासकों की व्यक्तिगत भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। जहाँ एक ओर बदनसिंह के द्वारा निर्मित पुराना महल विशालता, कम संतुलन, आंतरिक भाग में कम आकर्षण एवं अपेक्षाकृत कम कलात्मक तोड़े व स्तम्भों की विशिष्टता लिए हुए है, वहीं सूरजमल द्वारा निर्मित भवन अपने विभिन्न अवयवों में सामञ्जस्य व आनुपातिक संतुलन व पाषाण पर उत्कीर्णन व दोहरी छत-व्यवस्था द्वारा आकर्षक बन पड़े हैं। डीग स्थापत्य शैली सीधे शहतीरोंवाली शैली है, फिर भी कई उदाहरणों में अनुपाकार शैली का भी प्रयोग हुआ है। अधिकतर मेहराब, स्तम्भों से निकलती अनुकृतियों के जुड़ने से बने हैं। डीग के महलों में वानस्पतिक अलंकरणों को महत्त्व दिया गया है।


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